बुंदेलखंड : एक सांस्कृतिक परिचय - बुन्देलखण्ड का अंग्रेजी साहित्य (English Literature of Bundelkhand)
बुंदेलखंड : एक सांस्कृतिक परिचय
बुन्देलखण्ड का अंग्रेजी साहित्य (English Literature of Bundelkhand)
अंग्रेजी सम्पन्न समाज की भाषा है। डॉ. हरी सिंह गौर ने लॉ आफ ट्रॉन्सफर,(Law of Transfers) ट्रांसफर आॅफ प्रापर्टी(Transfer of Property) के अतिरिक्त हिज ओनली लव --उप(His Only Love up)--, रैण्डम राइम्स,(Random Rhymes) रिनैसाँ आॅफ इण्डिया, (Renaissance of India)रैशनलिज्म एण्ड रिलीजन,(Rationalist and Religion) दि स्प्रिट आॅफ फ्रीडम,(The Spirit of Freedom) सेवन लाइव्ज(Seven Lives) --आत्मकथा-- लिखी। डॉ रघुनाथ विनायक धुलेकर ने "पिलर्स आॅफ वेदान्त'(Pillars of Vedanta) पुस्तक लिखी। बांदा निवासी श्री द्वारिका प्रसाद श्रीवास्तव ने "न्यूपिटल आॅफ राम'(Newpitle of ram) श्रवण कुमार आदि रामचरित मानस के प्रसंग पांच खण्ड में छपाये। श्री इन्द्रजीत सिंह सत्संगी --बांदा ने-- उद्धव शतक तथा श्री केदारनाथ अग्रवाल की कविताओं का अंग्रेजी में अनुवाद किया। श्री विन्दा प्रसाद खत्री --बाँदा- ने गोस्वामी तुलसीदास के प्रमुख काव्य ग्रन्थों का अनुवाद अंग्रेजी में किया --प्रकाश्य--। "बाँदा ली लैण्ड आॅफ राम'(Banda Lee Land of the Rama) श्री भटनागर जी ने लिखा। विभिन्न विषयों के शोध प्रबन्ध अंग्रेजी माध्यम में लिखे गये यथा डॉ. हरीराम मिश्र ने "थ्योरी आॅफ रस इन संस्कृत'(Theory of Rasa in Sanskrit)। श्री धुलेकर जी --झांसी-- ने "फ्री इण्डिया'(Free India) कानपुर से प्रकाशित कराया जो चार वर्ष तक छपा। श्री पन्नलाल श्रीवास्तव --दमोह-- ने अनेक वर्षों तक "लीडर',(Leader) "अमृत बाजार पत्रिका', "नार्दन इण्डिया(Nordan India) पत्रिका' के सह सम्पादक के रुप में सराहनीय कार्य किया। अनेक शोधपरक पुस्तकें अंग्रेजी माध्यम से प्रकाशित हुई। अनेक हिन्दी पुस्तकों का अनुवाद भी अंग्रेजी में हुआ यथा श्री दशरथ जैन लिखित "मोनोमेन्ट्स आॅफ खजुराहों'(Monoments of Khajuraho) स्तुति विद्या आदि। बुन्देलखण्ड का अंग्रेजी साहित्य हिन्दी तथा उर्दू साहित्य की तुलना में नगण्य है।
बुन्देलखण्ड
तेरी मिट्टी से प्रकट हुये हरदौल सरिस त्यागी प्रचंड।
ओ वीर देश बुन्देलखण्ड ओ भव्य देश बुन्देलखण्ड।।
अगणित अरि दल में कूद पड़े देवी दुर्गा को मुण्डमाल।
लेकर फिर कर में तीक्ष्ण तेग खुलखुल कर खेली रुण्डमाल।।
रखके स्वतन्त्र ये जन्म भूमि जननी के पय की रखी लाज।
दुश्मन को आंखे बीच कण्ठ तलवार समझ ली पुष्पमाल।।
तेरे थे ऐसे वीरसिंह जिनसे उज्जवल था भरतखण्ड। ओ वीर देश...
पत्थर पत्थर को डुबा चुका है देश भक्त का रक्त लाल।
कंकड़ कंकड़ पर लाख लाख कट मरे विहसते बीर बाल।।
तेरे कांली ने मारा वह शेरशाह सा शहंनशाह।
क्या कोई दुश्मन परखसका बुन्देलों की तलवार ढाल।।
तेरे पूतों का देख तेज निष्तेज हुआ था मार्तण्ड। ओ वीर देश...
मुगलो की छाती चीर-चीर नरसिंह दहाड़ा दत्रसाल।
कण कण काली सा नाच उठा अरि शोणि पीकर लाल लाल।।
अबला का बल भी उबल पड़ा, बन गयी भवानी बाई साब।
कट गयी फिरंगी फौज खड़ी बच गया रोज भी बाल बाल।।
तेरा था ऐसा सत्य न्याय पा गया राज सुत मृत्यु दण्ड। ओ वीर देश...
है स्वाभिमान रंग रगी हुई तेरी बीहड़ की ढाल ढाल।
तेरी जय की है यादगार हरेक दुर्ग हर ताल ताल।।
निर्वासित भाई प्रिया सहित जिस पर आश्रय ले टिके राम।
तेरे पुनीत उस चित्रकूट को तक झुक जाता भाल भाल।।
तेरा जग से इतिहास अलग तेरा जग में है यश अखण्ड।
- लक्ष्मी प्रसाद शुक्ल "वत्स'
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Courtesy: इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र