पानी,पलायन,प्राणांत और सूखा चुनावी मुद्दा नहीं है…


पानी,पलायन,प्राणांत और सूखा चुनावी मुद्दा नहीं है…


पानी- पानी हो गए नेता जी के वादे ,
बुन्देली समझ न पाए फिर भी सियासत के इरादे !

यूपी विधानसभा चुनाव 2017 का सियासी रण प्रारंभ हो चुका है. राजनीतिक दलों के अपने घोषणा पत्र जोर-शोर से जारी हुए. रोज ही दैनिक समाचार पत्र के विज्ञापन में परिवर्तन लायेंगे- कमल खिलाएंगे,काम बोलता है,बहनजी को आने दो के पंच लाइन से मतदाता को लुभाने का सिलसिला अपनी रफ़्तार से चल रहा है. इस चुनावी माहौल में बुंदेलखंड के यूपी क्षेत्र में चित्रकूट मंडल के चार जिले (चित्रकूट,बाँदा,महोबा,हमीरपुर)और झाँसी मंडल के ललितपुर,जालौन में पानी की नब्ज टटोली है. इस बार के चुनाव में बुंदेलखंड के सूखे का मुद्दा किस पायदान पर है,नेताजी अपने चुनावी प्रचार में इसका जिक्र कर रहे है या चुप है यह समझना ज़रूरी था. पिछले तीन साल के लगातार पड़ने वाले सूखे से आपदा क्षेत्र में बदला बुंदेलखंड गर्मी की दस्तक के साथ पानी,पलायन,प्राणांत और सूखे की गिरफ्त में होता है. इस वर्ष 2016 में गर्मी की भयावह त्रासदी झेलने के बाद अच्छी बारिश ने किसानों को फौरी राहत दी है लेकिन नेता अपने चुनाव में मौत के मंचन पर मौन है ! खेतों में खड़ी फसलों की हरियाली के बीच किसान से जुड़े ये सीधे मुद्दे नदारद है कहीं भी पार्टी प्रत्याशी इस पर बात करता नहीं दिख रहा है वैसे भी चुनाव में सभी दलों ने अपनी क्षमता अनुसार अपराधिक,खनन माफिया,दलबदलू प्रत्याशी मैदान में उतारे है. पार्टी का एजेंडा- घोषणापत्र ही उनका चुनाव अभिमत है. जनता के सवाल पर स्थानीय नेताओं के अपने भाषण में भी पानी के समाधान क्या होंगे ये प्रश्न बौना हो जाता है. पानी खत्म करने की परियोजना पर राजनीति होती है मसलन केन-बेतवा नदी गठजोड़,अर्जुन नदी सहायक बांध योजना का अब तक अधर में लटके रहना और ललितपुर के बांध में सूखे के बाद एक ही साल में बाढ़ आ जाना.

बुन्देलखण्ड में अब तक 21 सूखे पड़े है- यूपी वाले बुन्देलखण्ड के सात जिलों में चित्रकूट,बाँदा,हमीरपुर,महोबा,झाँसी,ललितपुर,जालौन शामिल है. यहाँ अब तक 21 सूखे पड़ चुके है. प्राप्त आंकड़ो के अनुसार वर्ष 1838,1868,1877,1887,1896,1897,1906,1907,1978,1980,1990,1993,202,2004,2005,2006,2009,2013,2014,2015,2016

सूखे के साल रहे. कभी घने वन क्षेत्र वाला बुंदेलखंड ग्रेनाईट की सतह लिए है. विकास के अनियोजन ने समय के साथ जैसे-जैसे यहाँ अपने कदम फैलाए बुन्देलखण्ड जंगल से वीरान होकर परती-चटियल भूमि में तब्दील हो गया.नदी और पहाड़ो के खनन से यहाँ का अनियमित मौसम कभी सूखा तो कभी अतिवर्षा और कभी बाढ़ लेकर आया. सरकारी विकास पत्र में अब इसको आपदा प्रभावित क्षेत्र घोषित किया जा चुका है.पानी से हलकान बुंदेलखंड का ये क्षेत्र यूपी को 510 करोड़ रूपये का सलाना राजस्व खनन से देता है. चंदेल कालीन जल प्रबंधन की विरासत रहे बुन्देलखण्ड में पानी के लिए केंद्र और राज्य सरकारों ने बहुत सी परियोजना,पॅकेज से काम किया लेकिन सब ढाक के तीन पात साबित हुए और बुंदेले प्यासे ही रह गए. पानी पिलाने के नाम पर यहाँ के माननीय रुतबे वाले होते चले गए. इस बार भी पानी का मुद्दा चुनाव से बाहर है. ठीक-ठाक गर्मी अभी दो माह दूर है इसलिए किसान और नेता दोनों जातीय सियासत में सूखे को भूल बैठे है.

बुंदेलखंड पैकेज और पाठा पेयजल योजना से भी नहीं बुझी प्यास- बुन्देलखण्ड के लिए केंद्र सरकार ने विशेष पैकज के साथ वर्ष 1973 में इंद्रा गाँधी की पहल पर चित्रकूट जिले के मानिकपुर लिए पाठा पेयजल योजना भी दी पर स्थानीय जनता की प्यास नहीं बुझी. हाँ सरकारी जल संस्थान के अधिकारी,कार्यदाई संस्था के अच्छे दिन जरुर आ गए. घोटाले दर घोटाले हुए.सरकारों ने जाँच के आदेश दिए पर पकड़ा आज तक कोई नहीं गया. सबने अपनी हिस्सेदारी में ये काम बखूबी किया. मानिकपुर की पाठा पेयजल योजना में 196.485 लाख रूपये खपे. वाल्मीकि-मंदाकनी नदी में डैम बनाकर ये स्कीम पाठा क्षेत्र में पाईप लाइन के जरिये 500 से अधिक ब्राह्मण बाहुल्य,कोल आदिवासी गाँव में पानी पहुँचाने के लिए आई थी. जब कारगर नहीं हुई तो बाद में बुन्देलखण्ड पॅकेज से 25698.58 लाख रूपये और लगाये गए मगर बात नहीं बनी. सूखे ने दी चार हजार से अधिक किसान आत्महत्या-उत्तर प्रदेश बुन्देलखण्ड में पिछले वर्षो के सूखे के चलते करीब साढ़े चार हजार से अधिक किसान आत्महत्या हुई है. प्राथमिक तथ्य पर नजर डाले तो वर्ष 2001-2006 में 1275,2007-2010 में 1351,2011-2012 में 624 किसान मरे है.उधर एनसीआरबी ने अपने जारी किये आंकड़े में वर्ष 2011 में 519,2012 में 745,2013 में 750 और 2014 में 806,2015 में 845,2016 में 905 किसान आत्महत्या किये है.ये आंकड़ा हर साल बढ़ता जा रहा है. पानी की किल्लत से किसान की खेती चौपट हुई,उसने केसीसी से कर्जा लिया तो सूखे,पाला,ओला ने खेती बर्बाद कर दी. किसान कर्ज अदा नहीं कर सका और जब बैंक से रिकवरी का नोटिस आया तो किसान सूली में टंग गया. सरकार ने किसान की अप्राकृतिक मौत को कभी आत्महत्या नहीं माना. ये किसान सिर्फ सूखे से ही नहीं इस बरस अतिवर्षा में खरीफ की फसल उजड़ने से भी मरे है.

3506 करोड़ का विशेष पॅकेज भी पानी न पिला सका- बुन्देलखण्ड विशेष पॅकेज से यूपी वाले हिस्से को कुल 3506 करोड़ का पॅकेज दिया गया. यूपीए सरकार ने अपने कार्यकाल में यह काम किया. जिसको बसपा और समाजवादी सरकार ने जमकर बंदरबाट किया. कुंए,तालाब,नलकूप,पौधरोपण के नाम पर कागजी घोड़े दौड़ाकर रुपया गर्क किया गया. इस धनराशी में आंकड़ो के मुताबिक यूपी वाले हिस्से में सात लाख हेक्येटर कृषि भूमि विकसित करनी थी.इससे जल प्रबंधन के लिए 2940 करोड़,जलस्रोत-ब्लास्ट वेळ कूप पर 2050 करोड़,वन पर्यावरण में 314 करोड़,पशुपालन-अन्ना प्रथा हेतु 200 करोड़ रूपये व्यय किये गए. इस पॅकेज की अभी तक सीबीआई जाँच चल रही है पूरी कब होगी या नहीं ये आप बेहतर समझ सकते है.

मनारेगा योजना के आदर्श तलाब,बंधी भी तमाशाई बन गए- मनारेगा योजना से प्रत्येक जिले में आदर्श तालाब बने. अकेले बाँदा जिले में वर्ष 2009 में 19 करोड़ रूपये से 437 ग्राम पंचायत में ये तलाब बनाये गए ताकि हर गाँव में एक माडल तलाब से स्थानीय ग्रामवासी पानी संकट से निजात पा सके. चित्रकूट में 12 करोड़ से 269 तलाब सृजित किये गए. अन्य जिलों में भी ये तालाब खुदवाये गए पर आज इनकी सूरत देखने काबिल है.इसके अतरिक्त वनविभाग,भूमि संरक्षण विभाग ने ड्राई चेक डैम,बंधी भी करोड़ो रूपये से बनाई है.

समाजवादी दो हजार खेत तलाब योजना का बेड़ागर्क- बुन्देलखण्ड के बीते 2016 के सूखे से चिंतित समाजवादी सरकार ने तत्कालीन मुख्य सचिव अलोक रंजन की सलाह पर दो हजार खेत तलाब योजना का आगाज किया था. एक साल पूरा होने को है ये दो हजार खेत तलाब अब तक नहीं खुद सके. इसके साथ- साथ महोबा-चरखारी में सीएम ने अलग से सौ तलाब जिंदा करने का काम भी किया.ठेकेदारी प्रथा से गहरे हुए इन तलाबों में फ़िलहाल पानी है. दो हजार तालाबों के लिए प्रत्येक जिले का अपना लक्ष्य था. जिसमें झाँसी को 250 तलाब पर 262.50 लाख रूपये,जालौन को 250 तलाब पर 262.50 लाख,ललितपुर को 250 तलाब- 262.50 लाख,बाँदा 230 तलाब-241.50 लाख,चित्रकूट 250 तलाब-262.50 तालाब,हमीरपुर 250 तलाब-262.50 लाख,महोबा 500 तलाब-525.00 लाख रूपये और अन्य बीस तलाब बाँदा के कृषि विश्वविद्यालय को मिले जिसके लिए 21 लाख रूपये स्वीकृत हुए. मजेदार बात है कृषि विश्वविद्यालय ने दो तलाब बनवाकर 14 लाख रूपये खपा दिए. महोबा जहाँ सर्वाधिक चन्देल कालीन तलाब है वही 500 तलाब का खेल मिटटी निकालने के नाम पर किया गया. इस योजना में सीएम के ब्रांड एम्बेसडर राजेन्द्र सिंह राणा रहे जिन्हें बाद में सरकार ने यशभारती सम्मान से नवाजा. इस योजना में किसान को सरकार ने पचास फीसदी छूट दी थी. एक लाख पांच हजार रूपये से 22 X तीस मीटर (खेत के 1/10 वें हिस्से ) में ये तलाब बनाया जाना था. लेकिन किसान ने अपने हिस्से के 52 हजार रूपये नहीं दिए जिससे आनन-फानन में खाना पूर्ति करके सभी जिलों खेल किया.

चन्देल कालीन 2963 तलाबों पर अवैध कब्ज़ा- बुन्देलखण्ड के सात जिलों में सूचनाधिकार से प्राप्त आंकड़ो की माने तो यहाँ चन्देल राजाओं के बनवाये 2963 तलाब पर अवैध कब्जे,अतिक्रमण है. कभी ये जल प्रबंधन की नजीर थे. कुल 14,721 हेक्टयेर जमीन पर बस्ती आबाद है. ऐसे ही तमाम कुएं,बावड़ी बदहाल है.

दस लाख लोग बीते वर्षो में पलायन किये- बाँदा जिले से ही वर्ष 2016 में 3029 परिवार पलायन किये है. ये पलायन मौसमी और स्थाई दोनों तरह का है. यहाँ के सैकड़ो गाँव से खेतिहर किसान दिल्ली,सूरत,हरयाणा,पंजाब,इटावा (ईट भट्टे में कामगार),मुंबई,अंडमान आदिशहरों में रोजगार के लिए जाता है.चित्रकूट के पाठा,बाँदा के नरैनी क्षेत्र,तिंदवारी-जसपुरा,महोबा के पनवाड़ी,चरखारी,हमीरपुर के मौदहा आदि के गाँव इसकी बानगी है. यहाँ से युवा-बुजुर्ग काम की तलाश में परदेश जाते है क्योकि बुंदेलखंड में काम नहीं है और किसानी घाटे का सौदा है. पिछले एक दशक में पल्स पोलियो सर्वे की रपट के आंकड़े देखे तो दस लाख लोग यूपी वाले क्षेत्र से पलायन किये है. इनमें बाँदा से 7 लाख 37 हजार 920,चित्रकूट से तीन लाख 44 हजार 801,महोबा से दो लाख 97 हजार 547,हमीरपुर से चार लाख सत्रह हजार 489,जालौन से पांच लाख 38 हजार 147,झाँसी से 5 लाख 58 हजार 377,ललितपुर से तीन लाख 81 हजार 316 लोग पलायन किये है. बाँदा के नहरी,गुढ़ा,हडाहा कबौली,फतेहगंज,बिलहरका,पैगम्बरपुर,गोबरी,नीबीं,रानीपुर,महोबा के बिलबई,डडहत माफ़ी गाँव में सत्तर फीसदी गाँव में पलायन है.

क्या कहते है बाशिंदे- चुनावी सफर में जब इलाके के कई गाँव में देखा गया तो बुन्देली रहवासी ने अपनी पीड़ा बयान की. उनका कहना था घर में रोजगार होता,बुनयादी विकास,सम्रद्ध खेती होती तो कौन छोड़ कर जाता ? सरकार ने कभी इस क्षेत्र का ध्यान नहीं दिया सिर्फ चुनावी वादें किये जो पूरे नहीं होते. चित्रकूट के मानिकपुर विधानसभा क्षेत्र के पाठा में बसने वाले आदिवासी यही कहते है. पानी की जद्दोजहद में हर रोज संघर्ष करने वाले ये लोग सरकार की हल्की सी सुविधा में संतोष करने वाले है. लक्ष्मणपुर,कल्याणपुर,बंधवा,नागर गाँव का यही हाल है. लक्ष्मणपुर के कौशल कहते है कि हमारे गाँव में एक हजार वोटर है जिसमें ब्राह्मण,कोल,विश्वकर्मा,गुप्ता,कहार आदि लोग है.यहाँ अध्यापक रिवाल्वर लेकर आता है.समाजवादी डायल 100 सेवा क्षेत्र में नहीं आती. ग्राम प्रधान मुन्ना कोल अपनी मर्जी का काम करता है. वोट की बेरा तो चिरौरी किया था. रामआसरे कोल ने कहा कि मेरे दो बेटे बाहर है,गाँव में काम नहीं है.मेरी जमीन में वनविभाग ने दो लोगो को एक साथ पट्टा कर दिया है जिससे खेती नहीं कर सकता.गाँव के युवा लड़के रवि,रणजीत,चन्द्रपाल,इंद्रजीत,श्यामलाल,दसरथ,लल्लू,मैयादीन,मोहित,राजेश सहित कई लोग बाहर ही काम करते है.गाँव में अधिकतर 50 वर्ष के बुजुर्ग ही है जो जानवर-खेत देखने का काम करते है. गर्मी में उनको भी साथ ले जाना पड़ता है यहाँ पानी की कीमत हमारे आंसू है. गाँव में पन्द्रह में से तीन हैंडपंप अभी चल रहे है जो गर्मी आने तक जवाब देंगे. गाँव की बरसाती मगरदहा (झिरिया )नदी से हमारा काम चलता है. नागर गाँव की ललिता भी पानी का रोना रोती है.इस गाँव की महिला प्रधान चुन्नी देवी पति बड़का कोल ने आदिवासी परिवारों को अभी तक पानी के साधन मुहैया नहीं कराये.गाँव की सड़क पर बनी एक पानी की टंकी से सबका काम चलता है.किसानी के लिए सभी प्रकृति पर निर्भर है. बाँदा जिले के नरैनी विधानसभा में असेनी गाँव जो बसपा का गढ़ है का हाल भी अन्य गाँव की तरह है. पलायन के मामले में यहाँ 65 फीसदी युवा बाहर है, अल्पसंख्यक जाति के अधिकतर लोग मुंबई में रोजगार के लिए अस्थाई- स्थाई रूप से जाते है. यही कुछ महोबा के राजपूत बाहुल्य गाँव बिलबई का है. यहाँ रात के सात बजे बिजली गैर मौजूदगी में घरो में ताले लटके थे. गाँव के जगदीश कुशवाहा के बेटे अपने पिता कर्जखोरी में हुई म्रत्यु से आहत है. वे बतलाते है कि हमारा पूरा गाँव पलायन की चपेट में है. पानी के आभाव में न खेती हो सकती है और न रोजगार के साधन है इसलिए गाँव का गाँव खाली है हाँ वोट देने की तारीख पर सब आयेंगे.

By: आशीष सागर