(Poem) !!! देदो हमें बुंदेलखंड !!! ; De do hamein Bundelkhand

!!! देदो हमें बुंदेलखंड !!!

दे दो हमें बुंदेलखंड
बुंदेलखंड की झोली मे
कब तक कटेगी जिंदगी
खंडहर की खोली में
बूढी हो गयी आंखे देखने को
नवबुंदेलखंड की तस्वीर
बदहाली, तंगहाली ने
दी जिंगदी हमारी चीर
हजारों अन्नदाता झूल रहे
फांसी के फंदे में
आह! तक न बोले
व्यस्त हैं वो राजनीति के धंधे में

कब तक फंसा रहेगा मुद्दा राजनीति की टोली में
दे दो हमें बुंदेलखंड, बुंदेलखंड की झोली में

सालों से होते आए हम
उपेझा का शिकार
कहीं से रोटी आती तो
करते हमको दरकिनार
घर घर में है अकाल
बुंदेलखंड के आंगन में
लू का रेला गगन अकेला
आग बरसती सांवन में
हाथ हथौड़ा मासूमों के
रोया पेट शाम-सुबह
पैर पसारती चली गयी
भूख जगह-जगह

सूदखोर हर रोज चढ़ाता लाचारों को सूली में
दे दो हमें बुंदेलखंड, बुंदेलखंड की झोली में

बसर हमारा ऐसा है मानो
आदिकाल का हो बसर
देख हमारे बसर को
हमें चिढ़ाते इंफा्रस्ट्रक्चर शहर
बड़े किसान मजदूर बन गये
खेती का दामन छोड़कर
किसी तरह से घर को चलाते
साहूकारों से हाथ जोड़कर
घर घर चूल्हे ठंठे कर दी
मंहगाई मुह मोड़कर
बहरी होगई नेता नगरी
चिल्लाते हम सिर फोड़कर

बहना बैठी बिना सुहागन लगा दहेज का ग्रहण डोली में
दे दो हमें बुंदेलखंड, बुंदेलखंड की झोली में

आधुनिकता हमसे कोसो दूर
२१ वीं सदी का पता नहीं
सदियों खिची लकीर में चलते
पूर्वाग्रह अभी हटा नहीं
बच्चे जाते ज्ञान ग्रहण को
सपना लिए सबेरा का
स्वालंबन उनका छिन गया
दामन पकडे कटोरा का
गर नहीं बदल सकते हो
बुंदेलखंड की किस्मत
देदो हम बदल देंगे
नहीं हो जाएगी खिस्पत

संम्पूर्ण क्रांति को अंजाम देकर फंस जाएंगे हम गोली में
दे दो हमें बुंदेलखंड, बुंदेलखंड की झोली में

सुनील ‘चित्रकूटी’