(Poem "कविता") " फूल नही मैं लेखक हूं "
(Poem "कविता") " फूल नही मैं लेखक हूं "
काया मे सांसे बोल रही
मेरे मन की मधुर सुमिरिनो मे,
मन की हिंन्डोले डोल रहीं
और शनै –शनै मेरे कानो मे
कुछ करने को है बोल रहीं
ऐसे पावन विचरण मे तुम .
कोई ना दखलंन्दाज करो.
अपने मधुर प्रेम की नैया को तुम अपने ही पास रखो.
मेरे मन की भाव भन्गिमा को
मुझे यूं ही तुम लिखने दो …
फूल नही मैं लेखक हू मुझे लेखक ही तुम रहने दो……
मैं कदमो में इक चाल लिये .…
जीवन के हर मोडो पर
खाली हांथो मे ढाल लिये…
और चिर अनंत तक चलने वाली सत्यमेव की राह
लिये …
अपने लक्ष्यों को देखू मैं
इस चाहत की लौ– मिशाल लिये …
मैं प्यासा हू जिस दरिया का |
मुझे खोज ज्ञान की करने दो ……
फूल नही मैं लेखक हू मुझे लेखक ही तुम रहने दो……
मेरे इस जीवन के ध्ये य को
सत्य हो या सत्यमेव को
मैं तो हू अहिंसा का पुजारी
मेरे इस पूजा के श्रेय को…
अब तुम भी खुद जलपान करो…
कविता रूपी जो– कुछ शब्द लिखे हैं .
उनका कुछ गुणगान करो…
मैं स्वप्रेम की आस लिये …
मुझे आश नही है मिलने की
इसलिये मिलन की त्याग किये …
मैं पुन: गुजारिश करता हूं |
जो दिखता हूं – वो लिखता हूं …
मेरे इस काव्य प्रेम को तुम सतत प्रवाहित बहने दो……
फूल नही मैं लेखक हूं मुझे लेखक ही तुम रहने दो……
By: चन्द्रहास पांडेय (कवि /रचनाकार)