(Poem) खजुराहो Khajuraho by Shahab Ashraf


(Poem) खजुराहो Khajuraho by Shahab Ashraf


खजुराहो :- एक परिचय

खजुराहो ये चंदेलों के ख्वाबों का इक जहाँ,
खामोशियां सुनाती हैं इक दासतां यहाँ।
हद्दे निगाह तक ये मनादिर के सिलसिले,
भगवान भी मिले यहाँ, इंसान भी मिले।
थे कितने धर्म दहर में जारी नहीं रहे,
मंदिर नहीं रहे वो पुजारी नहीं रहे।

उन मंदिरों में मौत ने भी, सर झुका दिया,
जिनकी किसी के खूने जिगर से सजा दिया।
कुछ दिल के बीज बोए थे फनकार ने यहाँ,
भर भर के लोग जाते हैं नजरों की झोलियाँ।
छूलें अगर तो नक्श- गरी बोलने लगे,
पत्थर तराश दे तो सदी बोलने लगे।

दामन को अपने हुस्न की दौलत से भर लिया,
सोने की तरह वक्त ने महफूज कर लिया।
इन मंदिरों में आ के कभी जब ठहर गए,
आंखों में देवताओं के साए उतर गए।
पूजा के फूल और न माला लिये हुए,
निकले तो एक हुस्न की दुनिया लिये हुए।

जब भी शरारे संग का इक गीत छिड़ गया,
पत्थर की भी रगों में लहू दौड़ने लगा।
अपने हुनर से भोग को वो हुस्न दे दिया,
इन मूरतों ने योग की सरहद कोछ लिया।
मिलते हैं यां बदन से बदन इस अदा के साथ,
जैसे हो आत्मा कोई परमात्मा के साथ।

पत्थर में फूल कितने ही धर्मों के खिल गए,
बस एक ही महक रही इस तरह मिल गए।

दुनिया की उनको चाह ने शोहरत की चाह थी,
ताकत की चाह थी न हुकूमत की चाह थी।
दौलत की चाह थी न इमारत की चाह थी,
कुछ चाह थी तो सिर्फ सदाकत की चाह थी।
बस फन के हो के रह गये, सब कुछ लुटा दिया,
मेहनत से कोयले को भी हीरा बना दिया।

जिस वक्त चल रही थी लड़ाई की आंधियाँ,
अपने लहू में डूब रही थीं जवानियां।
सीनों को छेद जाती थीं बेरहम बर्छियां,
टापों की गर्द से था गगन भी धुआँ धुआँ।
इस हाल में भी हाथ की छेनी नहीं रुकी,
भूचाल में भी हाथ की छेनी नहीं रुकी।

जिस वक्त नाचती थी यहाँ देवदासियां,
वो लोच भी कि जैसे लचकती हों डालियां।
पूजा के साथ साजे तरब की भी गर्मियां,
सुख की हर एक सिम्त लहकती थी खेतियां।
जीवन को भोग, भोग को मजहब बना गए
जीने का हमको जैसे सलीका सिखा गए।

पत्थर में दिल की इस तरह धड़कन तराश दी,
अंगराई ले कर जाग उठी जैसे शायरी।

पत्थर में छुप गई हो कहीं जैसे उर्वशी,
बेकल हैं किस तलाश में सदियों से आदमी।
ये वादिये खयाल ये रुहों की तिशनगी,
दिल का सुकून ढूंढ़ती फिरती है जिंदगी।

सदियाँ गु गई हैं कि पत्थर तराश कर,
इंसान जैसे रुप कोई यूं ढ़ूंढता रहा।
""ख्वाबों के जैसे हाथ में आइना आ गया,
आइना कैसे कैसे हँसी ख्वाब पा गया।

By: शहाब अशरफ