(Poem "कविता") महोबा : Mahoba
(Poem "कविता") महोबा : Mahoba
कभी वर्षा कभी सूखे की पड़ती मार महोबा में,
अम्ला भी लगे सरकारी है लाचार महोबा में,
पानी की कमी भी दीखती हर साल महोबा में,
पानी गिर गया तो जिन्दगी बेहाल महोबा में,
हरे थे पेंड़ ऊपर से भरे पहाड़ महोबा में,
रुकने के लिए थी बादलों के आड़ महोबा में,
पानी के लिए थे हर जगह तालाब महोबा में,
पर्वत रोक लेते थे खड़े सैलाब महोबा में,
नदियों की बड़ी दुर्गति बुरी हालात महोबा में,
बंधों में नहीं जल संचयन औकात महोबा में,
मिट्टी की खुदाई में भी भ्रष्टाचार महोबा में,
गाँवों और गरीबों का नहीं उपचार महोबा में,
खेतों में खुला है घूमता गोवंश महोबा में,
दबे हैं बीच बगुलों के हजारों हँस महोबा में,
पहाड़ों के हुए जबसे यहाँ पट्टे महोबा में,
लगे हैं लोग कुछ अब खेलने सट्टे महोबा में,
हैं पत्थर के अवैध चल रहे धंधे महोबा में,
बिके हैं लोग सब कानून हैं अंधे महोबा में,
सड़क टूटी पड़ीं दिखते बड़े गड्ढे महोबा में,
दफ्तर भी दलालों के बने अड्डे महोबा में,
हर अखबार में छपती नहिं सच्चाई महोबा में,
मानो जमी कलमों में रहती काई महोबा में,
विकासी बात भी ना चाहते नेता महोबा में,
हवा हर कोई जातिवाद को देता महोबा में,
जीवन तो किसानों का हुआ है नर्क महोबा में,
जहन्नुम और गाँवों में नहीं है फर्क महोबा में,
खेतों में नहीं बिजली न ही पानी महोबा में,
किसानों का नहीं होता कोई सानी महोबा में,
यहाँ सुधरे नहीं हालात तो सब डूब जायेंगे,
बस ताउम्र सारे लोग झोली ही फैलायेंगे,
कड़वी है कलम 'चेतन' की पर सच बोलती है ये,
विरोधी धमकियों से भी कभी ना डोलती है ये,
हर एक शूरमा के सामने सच बोल दूंगा मैं,
सदा सच के लिए निज शीश को भी तोल दूंगा मैं,
'चेतन' नितिन खरे
सिचौरा, महोबा, उ.प्र.
मो.- +91 9582184195