प्रवासनामा : बात अपने गांव की... शाहपाटन


बात अपने गांव की... शाहपाटन


  • सांसद जी हमरे गांव का काहे गोद नहीं लीन्हे है!
  • बेलंग को नहीं मिला राशन कार्ड और लंबरदार खा रहे राशन
  • गांव का कोटेदार बना गरीबों का दयामंत्री
  • 31 लाख का रपटा पहली बारिश में निपटा

घूमते-घामते अबकी बार प्रवासनामा की टीम किसी अजूबी खबर की तलाश में एक बार फिर नरैनी विकासखंड के दोआबा क्षेत्र में पहुंची। हाथ में कैमरा था और बीहड़ में विकास शब्द को ढूंढने का जूनून, बात अपने गांव की शाहपाटन की तरफ ले गया।

ग्राम पंचायत गुढ़ाकला का मजरा बछराही बागै नदी के किनारे बसा है। हिचकोले लेती सड़क, घुटनों तक धूल में लहराती मोटरसाइकिल को घंूघट वाली औरत और चरवाहे ने ऐसे देखा कि बछराही को पार करके शाहपाटन की तरफ ये खबरिया कहां सरपटा रहा है। बागै किनारे पहुंचते ही नदी को एक अवैध पुल से बंधा देखकर जब एक चरवाहे से पूछा कि ये नदी किसने बांधी है तो वह बोला कि बाबू जी काहै बुराई करावत हैं हमका यहीं गांव में राहै का है। बागे नदी अवैध बालू खनन के लिए बछराही गांव के दबंगों ने नदी की बहती जलधारा को पर्यावरण को धता बताकर बालू का खेल चला रखा है। इससे क्या फर्क पड़ता है, उपजिलाधिकारी नरैनी व थानाध्यक्ष को आखिर अवैध बालू खनन का यह खेल उनकी शार्गिदगी की बिना पर है और नदी का यह अवैध पुल गांव वालों के लिए रास्ता पार करने का जुगाड़ साधन। हमारे कदम शाहपाटन की तरफ बढ़ चले। शाहपाटन की कुल आबादी तीन हजार के आसपाट है और मूल वोटर 1600 के लगभग है। गांव के बड़े काश्तकारों में शिवनारायण निषाद, पूर्व कोटेदार रमेश, दयाराम, छत्रसाल आदि है। गांव में अब तक कुल 6 ग्राम प्रधान निर्वाचित हुए। निषाद बाहुल्य गांव में यादव ग्राम प्रधान अधिक बार चुने गए ये गांव की वैचारिक सामजस्य को दर्शाता है। पगडंडी से गुजरते हुए दोआबा क्षेत्र के गांव शाहपाटन में पहली मुलाकात प्राथमिक विद्यालय के अध्यापक उमाशंकर पांडे से हुई। विद्यालय में बमुश्किल 20 से 25 बच्चे मिड-डे-मील का भोजन करते नजर आए। अध्यापक से संवाददाता ने बच्चों की कुल संख्या पूछी तो उत्तर मिला 63 बच्चे बाकी के न आने का कारण पूंछने पर अध्यापक जी ने इस गांव में खुले स्कूल में इतने ही आ रहे बच्चे की विडंबना सुनाते हुए स्कूल में बिजली की आस में पिछले कई साल से लटक रहे पंखे की तरफ इशारा किया। मालूम रहे कि बिजली से नदारद ये गांव जुगाड़ तकनीकि से अपना काम चलाता है। कदम आगे बढे़ और बढ़े हुए कदमों को बीच सड़क में बैठे दिलीप कुमार ने ठिठका दिया। सड़क में बैठे इस युवा साथी ने अपनी हालत से संवाददाता और विकास के शब्द पर ऐसा तमाचा मारा कि मानों उलटे पैर इलाके के विधायक, सांसद, जिला प्रशासन और गांव के मुखिया प्रधान हरीशंकर निषाद को ढंूढने की तलब में कैमरा और खबरनबीस दोनों छटपटाने लगे ।

दिलीप की जर्जर हालत का कारण पूंछने पर मालूम हुआ कि उसके दो और भाई इसी बेलंग (लकवा) बीमारी के शिकार हैं। पूरे शरीर से विकलांग दिलीप के साथ बेटालाल और दादू जब सामने आए तो एक और तमाचा इस वजह से पड़ा कि आखिर विकास का शब्द और मनुष्य को जीने के बुनियादी अधिकारों की बात करने वाले इन्हीं गांवों में विचरण करते समाजसेवी किस आदर्श की बात करते है। लोकसेवक कौन से स्वच्छ और निर्मल भारत की बात करता है और सरकारी फाइलों में चलने वाली आम आदमी की योजनाएं क्या वास्तव में पात्र को मिल पाती हैं ? ये तमाम सवाल उस व्यवस्था पर भी है जिसे शाहपाटन के साथ ये तीन बच्चे जन्म से ढोते चले आ रहें हैं। दिलीप के भाई बेटालाल ने बताया कि उसकी मां बिट्टन नरैनी गई है मजदूरी के लिए और पिता रज्जन प्रसाद मुंबई में गांव के 90 फीसदी कर्जदार किसानों की तरह कंक्रीट के जंगल में मजदूरी करता है। एक बीघा का कास्तकार यह परिवार अपनी मुफलिसी में गरीबी के कोहरे पर कभी छंट जाने वाले विकास को ढंूढता है और गांव के दयामंत्री कोटेदार शिवबदन वर्मा से बिना राशन कार्ड महज दो लीटर मिट्टी के तेल पर अंधेरी जिंदगी में शाम को उजाला कर लेता है। प्रधान और कोटेदार को भले ही अपने ऊपर हुए समाजिक उत्पीड़न पर हरिजन एक्ट याद आता होगा लेकिन उन्हें इस गांव में बने सैकड़ों बीपीएल एवं अन्योत्दय राशनकार्डो में एक ऐसा राशनकार्ड नहीं मिला जिसे अपात्र घोषित कर गांव की खुली बैठक में प्रस्ताव पास करके रज्जन प्रसाद का राशनकार्ड बनाया जा सकता। अगर पड़ताल की जाए तो करीब आधा सैकड़ा बीपीएल राशनकार्ड अपात्रों को मिले होंगे। रोजमर्रा की आम जरूरतों के संसाधन इस परिवार की पहुंच से उसी तरह दूर खड़े है जैसे दिल्ली की निजामुद्दीन स्टेशन में और राजधानी के चारबाग, हजरतगंज में बेलंग और अपाहिज लोग खैरात की आस लिए सालों से अपनी जिंदगी बसर कर रहे है। गांव के अंदर जाना हुआ तो प्राथमिक विद्यालय शाहपाटन में भी 90 बच्चों की जगह बमुश्किल 15 बच्चे पाए गए। शिक्षा अधिकार से महरूम 1962-63 में बना स्कूल का भवन जर्जर हो चुका है जिसकी आज तक मरम्मत नहीं कराई गई यह अलग बात है कि बेसिक शिक्षाधिकारी सर्व शिक्षा अभियान से कितने विद्यालय साल मे ंकागजों पर दुरूस्त करते है। स्कूल की दुरदशा प्रधानाध्यपक जयनारायण सिंह ने मुंहजुबानी खोली।

By: (आषीश सागर दीक्षित)