बुंदेलखंड में जल कुंड और जल धारा से प्यास बुझाने को मजबूर लोग

Bundelkhand-water-crisis-1.jpg (768×576)वो 2013 का साल था , मध्य प्रदेश का बुंदेलखंड इलाका भी चुनावी रंग में रंगा हुआ था | इस  चुनाव के प्रचार के दौरान  मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री शिवराज सिंह  जगह जगह  मंच से  लोगों को और  महिलाओं को विकाश के सपने दिखा  रहे थे | उन्ही स्वप्नों में उन्होंने बुंदेलखंड की महिलाओ को एक सपना जल का भी दिखाया था | " अब हमारी माताओ और बहनो को पानी के लिए परेशान नहीं होना पड़ेगा , अब उन्हें दूर हेंड पम्प या कुए  तक पानी भरने नहीं जाना पडेगा , अब ऐसी व्यवस्था होगी की टोंटी खोली और पानी हाजिर " | उनकी यह बात महिलाओं को खूब भाई और दिल खोल कर महिलाओं ने कमल का बटन दबाया और कमल मध्य प्रदेश और बुंदेलखंड  में फिर खिला दिया | तीन वर्ष पांच माह बीत जाने के बाद भी  बुंदेलखंड के लोग शिवराज के सपने को याद कर स्वप्न लोक की सैर कर लेते हैं | क्योंकि उनके जीवन में तो आज भी पानी की त्रासदी भोगने की विवशता है |

मध्य प्रदेश के  बुंदेलखंड के हालात स्वयं अपनी कहानी बयां कर रहे हैं की प्रदेश के मुखिया के मुख से निकली बात का कितना असर हुआ है |  पिछले दिनों अखबारों में एक विज्ञापन प्रकाशित हुआ था जिसमे सागर और पन्ना जिले की बंद नल जल योजनाओ के संचालन और संधारण के लिए निविदा प्रकाशित हुई थी | ९ मई तक आन लाइन टेंडर जमा करना था | पन्ना जिले के पांच विकाश खण्डों की ८५ बंद नल जल योजनाए और सागर जिले की तीन विकाश खंडो की 57 नल जल योजनाओ के लिए टेंडर आमंत्रित किये गए हैं | अब आप कल्पना कीजिये मध्य प्रदेश की सरकार और उसकी लोकस्वास्थ्य मंत्री पेयजल के संकट से निपटने के लिए कितनी संजीदा हैं | यह हालात उस इलाके के हैं जहां की जल समस्याओं को लेकर देश के तमाम समाचार पत्रों और न्यूज़ चैनलों में जनवरी माह से ही ख़बरें आने लगी थी | एम् पी के बुंदेलखंड इलाके के सागर संभाग के जिलों की हालत तो ये है की टोंटी से पानी तो दूर की बात है हेंड पम्पों से भी पानी नहीं मिल रहा है | महिलाये और बच्चे भी सुबह से शाम तक पानी की जुगाड़ में घूमते रहते हैं | छतरपुर ,पन्ना ,टीकमगढ़ और दमोह ,सागर जिला के अनेकों गाँव के लोग  दुर्गम जल श्रोतों से पानी लाने को मजबूर हैं |  
 

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दमोह जिला में जबेरा जनपद क्षेत्र के   बनवार - घटेरा  इलाके में एक स्थान है  सिद्ध धाम , इस धाम की गुफा के अंदर पाषाण शिलाओं के बीच पानी का एक कुंड बना है | लोगों की मान्यता है की इस कुंड में कभी पानी कम नहीं होता है | यहां आस पास के गाँव के लोग और श्रद्धालु अपनी प्यास बुझाते हैं | जब की आस पास के कई किमी इलाके में पानी का कोई और श्रोत  नहीं है | कुंड की ख़ास बात ये है की इस कुंड से सिर्फ पवित्र हाथों से ही पानी निकाला जा सकता है , अपवित्र हाथ या अशुद्ध पात्र के जल  स्पर्श होने पर जल सूख जाता है | इस कारण लोग नारियल के पात्र से अपने जल के बर्तन भरते हैं | लोगों की ये भी मान्यता है की जब अपवित्रता के कारण जल सूख जाता है तो लोग इस स्थान की पवित्रता बनाये रखने की ना सिर्फ शपथ लेते हैं बल्कि क्षमा याचना भी करते हैं | जिसके बाद यहां जल धारा पुनः प्रगट होती है | 
 
असल में इस जनपद क्षेत्र के अधिकांश गाँव पानी के लिए परेशान रहते हैं | पर यह भी प्रकृति का  एक  वरदान है की यहां सिद्ध धाम के अलावा चुड़का सिद्ध धाम भी जंगल में है ,इसके  आस पास भी पानी का कोई श्रोत नहीं है किन्तु जल धारा चट्टानों के बीच  प्रवाहित होती रहती है | इस जनपद क्षेत्र के दर्जनों आदिवासी गाँव के लिए प्राकृतिक जल श्रोत ही उनके जीवन का सहारा है| 
 
 
जिले के नरसिंहगढ़ से  सिद्ध धाम पहाड़ी पर पत्थरों के बीच से पानी की धारा बहती रहती है | इसी के नजदीक एक  छोटा सा कुंड बना है जिसे लोग तुळु की झिरिया भी कहते हैं | हमेशा पानी से भरा रहने वाला  यह कुंड लोगों के लिए एक बड़ा सहारा है | इसी के समीप पंचायत द्वारा खुदवाया गया कुआ अब गाँव भर के लोगों की प्यास बुझा रहा है |  
 
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बटियागढ़ विकाश खंड अंतर्गत आदिवासी ग्राम पंचायत शहजादपुरा के गीदन गाँव की 400 लोगों की आबादी बून्द बून्द पानी के लिए परेशान है | गाँव में लगे पांच से ज्यादा हेंड पम्पों ने जबाब दे दिया है | गाँव वालों को ५०० फिट नीचे उतरकर ३ किमी दूर जंगल में नाले के पास से पानी लाना पड़ता है| आदिवासी गाँव जलना के हेंड पम्पों ने भी जबाब दे दिया है | इस गाँव का भी सहारा जंगल में पत्थरों के बीच बने  कुंड से पानी लाना पड़ता है | इस छोटे से कुंड तक पहुँचने के लिए  गाँव वालों को 40 -50 फिट नीचे उतरकर दो किमी तक का सफर तय करना पड़ता है|                                             

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जब हेंड पम्प जबाब दे देते हैं , नदी नाले और कुँए सूख जाते हैं तब बुंदेलखंड की इन पाषाण शिलाओं से बहती जल धारा कई गाँवों की प्यास बुझा देते हैं | छतरपुर जिले में ही पठा गाँव  के आदिवासी पहाड़ से नीचे उतारकर पत्थरों के बीच से बहती जल धारा से अपनी प्यास बुझाते थे | इस गाँव में ऊपर तक चढ़ पहली बार  कलेक्टर रमेश भंडारी  पहुंचे थे , गाँव की चढ़ाई और खड़े पहाड़ पर लोगों को पानी ले जाते देख उनकी संवेदनाये भी जाग्रत हो गई | उनके आदेश पर गाँव में पम्प से पानी पहुंचने  लगा है | पम्प से पानी स्थाई तौर पर गाँव के लोगों को मिलता रहे वे यही कामना करते हैं | बक्स्वाहा विकाश खंड का मल्हार गाँव  की कहानी भी कुछ कुछ पाठापुर से मिलती जुलती है फर्क इतना है की पाठा गाँव में खड़े पहाड़ से नीचे उतरना पड़ता है और इस गाँव में गाँव वालों ने सीडी नुमा जुगत बना ली है | यहाँ प्रशासन ने कुछ साल पहले नल जल योजना बनाई थी पर वह भी बेहतर जल श्रोत के अभाव में उपयोगी नहीं रही |          
 
दरअसल पानी के नाम पर पैसा भी बह रहा है ,प्रचार भी खूब हो रहा है , पर नहीं हो पा रहे हैं तो सिर्फ सार्थक प्रयास | 
 
BY: रवीन्द्र व्यास