(संस्तुतियां) बुन्देलखण्ड का सूखाः स्थिति ,कारण एवं निवारण संगोष्ठी, Recommendations for Bundelkhand Drought by BRSC


बुन्देलखण्ड का सूखाः स्थिति ,कारण एवं निवारण
संगोष्ठी
दिनाक 10 -11 अक्टूबर 2009

संगोष्ठी स्थलः गाँधी स्मारक भवन, छतरपुर मध्य प्रदेश
संस्तुतियाँ


1. जंगल और पर्वतः

- जंगल तथा पहाड़ो पर आधारित उद्योग अविलम्ब बंद कर दिये जायें, स्टोन क्रशर्स की भूमिका पर्यावरण के विनाश मे सबसे अधिक है, इन पर तत्काल रोक लगाया जाय। अनेक स्थानों मे यह देखने मे आया है कि पूरी की पूरी पहाडी-श्रंखला को नष्ट करने का प्रयास चल रहा है उदाहरणार्थ: महोबा जिले मे कबरई के पास। यह मानसून को आकर्षित कर वर्षा की प्रक्रिया मे अवरोध की तरह है।
- जंगल एवं पर्वत प्राकृतिक संसाधन हैं किन्तु इन पर राज्य एवं केन्द्र की सरकारों का आधिपत्य है। सुरक्षा का नाम है पर लगातार इन संसाधनों का सफाया होता जा रहा है । पहाड़ों से जड़ी बूटियाँ लुप्त होती जा रही हैं। जंगली जीव जन्तु भी धीरे-धीरे समाप्त हो रहे हैं। इन सबका कारण शासन एवं प्रशासन की नीतियाँ ही हैं जो यदि परिवर्तित नही हुईं तो इस क्षेत्र को विनाश से नही बचाया जा सकेगा।
- वनविभाग तथा प्रशासन को वृक्षारोपण का कार्य गाँव के लोगों को देना चाहिये, वे केवल वृक्ष ही नही लगायेंगे अपितु उनका पोशण एवं संरक्षण भी करेंगे। इस हेतु शासन से उन्हे अलग स्तर पर आर्थिक सहयोग दिया जाना चाहिये । जो धन वनविभाग ऐसे वृक्षारोपण के लिये खर्च करता है जिनका भविष्य उन्हे भी पता नही होता, गाँव के लोगों को दिया जाय तो वनीकरण का स्वरूप ही बदल जायेगा।
- जंगल, पहाड़ तथा नदियाँ आपस मे अभिन्न रूप से अन्योन्याश्रित हैं अतः इनसे छेड़छाड. बंद की जाये। इनसे संबंधित सरकारी नीतियों मे आमूल परिवर्तन से ही बुन्देलखण्ड का भविष्य सुरक्षित रह सकता है। जिन स्थानो पर जितना अधिक उजाड़ हुआ है वहाँ उतनी ही सक्रियता से काम किया जाय।

2. जल संसाधन एवं जलश्रोत

- बुन्देलखण्ड मे अनेक प्राकृतिक जलश्रोत हैं जिनके उचित रखरखाव से आपात्कालीन व्यवस्था बनाई जा सकती है। प्राकृतिक रूप से उपलब्ध कुण्ड , झरने या आर्टीज़ियन स्रोत जल के अच्छे साधन है पर ये सभी जंगल के स्वास्थ्य पर ही निर्भर है अतः उनकी सुरक्षा जल की सुरक्षा के लिये अनिवार्य है। भीमकुण्ड, अर्जुनकुण्ड, गुप्त गोदावरी तथा पातालगंगा जैसे प्राकृतिक जल-श्रोतों का भूगर्भषास्त्रीय अध्ययन कराया जाना चाहिये।
- बुन्देलखण्ड की नदियाँ अधिकांशतः बरसाती हैं जिन्हे आरटीज़ियन प्रवाह ही गति देता है अतः इनके तटबंधों के साथ छेड़छाड़ करना खतरनाक सिद्ध हो सकता है। - जंगलो के अंधाधुंध कटने से नदियों मे सिल्ट की मात्रा बढ़ी है जिससे उनका तल उथला हुआ है फलतः बाढ़ का फैलाव बढ़ा है। नदियों के किनारे प्राकृतिक बलुये तटबंधों को तोड़कर मिट्टी के अथवा पक्के तटबंध बनाना विनाषकारी सिद्ध हुआ है: बिहार मे कोसी नदी का उदाहरणः अतः इनको प्रोत्साहित करना उचित नही है।
- बुन्देलखण्ड मे नदियों-नालों पर सावधानी पूर्वक छोटे छोटे चेकडैम बनाना तथा उनपर छोटे संयंत्र यथाः मंगल टरबाइन लगा कर पानी का उठाना तथा छोटे-२ विद्युत उत्पादक संयंत्र लगाना अत्यन्त लाभकर हो सकता है। स्थान स्थान पर पानी को ठहराना तथा उनका संग्रह भूगत जल की मात्रा को बढ़ा सकता है तथा सूखी नदियों को पुनर्जीवित करने का काम कर सकता है।
: उदाहरणः अलवर मे तरुण भारत संघ के प्रयास

- बुन्देलखण्ड का दक्षिणी भूभाग पथरीला है , इसमें मिट्टी की उपरी पर्त के नीचे ग्रेनाइट की चट्टाने पाई जाती है जिससे पानी अधिक मात्रा में नही रुकता और अत्यधिक तेज गति से बह जाता है । नदी के तली में भी चट्टान होने की वजह से पानी जमीन के अन्दर भी केवल दरारों एवं जोंडो के माध्यम से जा पाता है और वह भी बहुत कम । ऐसे में यदि यहां के पर्वत हरे भरे पेडों से सजे धजे रहे तभी वे बादलों को आकर्षित करके वर्षा करा

सकते है । जंगल तथा गाँवों मे पेडों अधिकाधिक संख्या ही वर्षा के पानी को कम या ज्यादा करती है। वन संरक्षण एवं सम्वर्धन ही वर्षा को संतुलित करने का एक मात्र. उपाय है दूसरा कोई नहीं ।
- बुन्देलखण्ड की पर्यावरणीय तथा सामाजिक समस्या एवं संकट को दोनो राज्यों की सरकारों द्वारा समन्वित रूप से हल किया जाना चाहिये । इस मानवीय कार्य मे राजनैतिक तनाव तथा प्रतिद्वंदिता को बढ़ावा नही दिया जाना चाहिये।
- पर्यावरण, अभयारण्य, कृषि योग्य जमीनों को नष्ट करने , लाखों लोगों को प्रभावित करने वाली तथा सम्पूर्ण ग्रामीण जनजीवन को अस्तव्यस्त कर देने वाली

केन-बेतवा लिंक जैसी योजनायें तत्काल निरस्त कर देनी चाहिये।

3. कृषि एवं पषुपालन

- खेतों में मेंड़ों की संरचना की जाय ताकि जल का संरक्षण हो और उत्पादकता एवं आर्द्रता बनी रहे ।खेत की मेंडों पर उपयोगी फलदार एवं औषधीय वृक्ष लगाये जाय जिससे आर्थिक लाभ के साथ-२ वायु शुद्धता में सहायता मिले
- जैविक कृषि को बढावा दिया जाय, ताकि कम लागत में पैदावार ली जा सके एवं भूमि की उत्पादकता बढ़ती रहे। जहरीले रसायनों के स्थान पर जैविक कीटनाषकों तथा प्राकृतिक रोगप्रबंधन पर बल दिया जाये।
- पान की खेती के सामने जो संकट है उन्हे शासन की सहायता / सहयोग से दूर करने का प्रयास किया जाय । इस निर्यातपरक कृषि को पर्याप्त मदद देकर उद्योग की तरह विकसित किया जाय।
- सूखा राहत के नाम पर धन के दुरूपयोग एवं किसानों के साथ हो रहे भ्रष्टाचार पर अंकुष लगाया जाय ।

किसानो को दिया जाने वाला कर्ज व्याजमुक्त हो क्यांेकि उसके द्वारा किया उत्पादन खाद्य सुरक्षा के द्वारा राष्ट्र को सषक्त करता है।
- उपयोगी संयंत्रों यथाः स्प्रिंकलरसेट आदि की उपलब्धता की सरकारी योजना का लाभ पात्र लोगों को बिना भ्रष्टाचार के प्राप्त हो सके ऐसी व्यवस्था की जाय।
- सरकारी विभागों द्वारा उचित समय पर सही बीज बंटवाने चाहिये ; विलम्ब से केवल नाम के लिये अनुपयुक्त बीजों का वितरण भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है और इससे गरीब किसान को दोहरी क्षति होती है।
- किसान को समय से बिजली तथा अन्य साधन उपलब्ध कराये जायें तथा उनके उत्पाद को उचित मूल्य तथा सही बाजार उपलब्ध कराया जाय। कृषि उत्पादों के प्रसंस्करण को महत्व दिया जाय।
- सिंचाई विभाग का दायित्व है कि बरसात का पानी समय से संग्रह एवं संरक्षित किया जाय तथा नहरो के

रख रखाव का पूरा ध्यान दिया जाय, 1947 के पष्चात् नहरो के रख रखाव पर बहुत लापरवाही बरती जा रही है और इसीलिये नहर की टेल तक किसानों को समय से पानी नही मिल पाता। इस पर ध्यान देना जरूरी है।
- बुन्देलखण्ड की जलवायु तथा पारिस्थितिकी के अनुरूप कृषि मे षोध के लिये आवष्यक है कि यहाॅं अपना एक कृषि- विष्वविद्यालय स्थापित किया जाय जो यहाँ की कृषि को अनुकूल एवं सार्थक दिषा दे सके।



4. पर्यावरण सम्मत उद्योग

- यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि यहाँ उद्योगपति तथा अल्पदृष्टिपरक शासन- प्रशासन ने प्रकृति के मूल आधार को नष्ट कर देने वाले जंगल विध्वंसक तथा पर्वतों के विनाष को बढ़ावा देने वाले उद्योगों को ही बढ़ावा दिया है; यह विशम परिस्थिति है और इससे यहाँ का जन जीवन पूरी तरह बरबाद हो जायेगा अतः इस प्रकार के उद्योग अविलम्ब बंद हो जाने चाहिये।
- बुन्देलखण्ड मुख्यतः कृषि एवं वन प्रधान है अतः यहाँ के उद्योग भी कृषि एवं वनोपज पर आधारित ही होने चाहिये। गाँव के उत्पादन का प्रसंस्करण किसानों की आयवृद्धि तथा क्षेत्र को लघु उद्योगों की दिषा मे ले जाने का कार्य करेगा। सागर जिले मे अगरबत्ती निर्माण कुटीर उद्योग की तरह आज भी चल रहा है।
- जलवायु तथा मिट्टी की विविधता यहाँ अनेक तरह के खाद्यान्न, तिलहनो, फल, सब्जी एवं औषधीय पौधौं तथा वृक्षों के लिये उपयुक्त है जिनके आधार पर यहाँ उद्योगों को विकसित किया जा सकता है। सनई तथा मेंहदी यहाँ के प्रमुख उद्योगपरक कृषि उत्पाद बन सकते हैं। चाय अथवा जूट कार्पोरेशन की तरह यहाँ उपरोक्त आधार पर प्रोत्साहक एवं व्यापारिक कार्पोरेषन बनाये जा सकते हैं।
- यहाँ की परिस्थिति मे बड़े प्रदूषणकारी उद्योग या संयंत्र लगने पर पर्यावरणीय स्थिति और भी नाजुक हो जायेगी, यह वर्षा तथा तापमान को प्रभावित करेगी इसलिये यहाँ ग्रामीण तथा कुटीर उद्योगों को ही विकसित किया जाना चाहिये। ऐसे उद्योगों से यहाँ के जनसाधारण को कृषि के साथ-२ आय साधन के अनेक साधन /माध्यम मिल सकेंगे और उनका अनावष्यक पलायन और आत्महत्यायें इतिहास का विषय बन जायेगा।

5. पर्यानुकूल मानवीय मूल्याधारित शिक्षा

- पर्यावरण को त्रासदी से बचाने के लिये समाज मे शिक्षा तथा संस्कारण की विशेष भूमिका होती है अतः इस महत्वपूर्ण कार्य को पूरी गम्भीरता से किया जाना चाहिये। बुन्देलखण्ड के संदर्भ मे यह और भी जरूरी है क्योंकि यहाँ पर्यावरण असन्तुलन की कगार पर है।
- शिक्षा किसी भी देश की रीढ हुआ करती है किन्तु इस देश में अंग्रेजी शासन- काल से मैकाले द्वारा शुरू की गयी नौकर बनाने की शिक्षा अभी भी लागू है, जिसका हस्र यह हुआ है कि बचपन से ही प्रतियोगिता, प्रतिद्वंदिता तथा सफलता के लिये अनैतिक कार्य की प्रवृत्ति और समाज मे सहयोगिता का अभाव स्पष्ट दिखाई देता है।
- शासन तथा प्रशासन को शिक्षा संबंधी नीतियाँ बनाते समय स्थानीय संस्कृति, जीवन की समग्रता तथा व्यापकता एवं उसकी प्रभावषीलता का ध्यान रखना चाहिये।


भारतेन्दु प्रकाश
श्रीमती शोभना श्रीवास्तव

आयोजक संगोष्ठी
बुन्देलखण्ड का सूखाः स्थिति ,कारण एवं निवारण: 10-11 अक्तूबर 2009
Bundelkhand Resource and Study Center