(Report) खंड - खंड बुन्देंलखण्ड (सर्वेक्षण आख्या) 2010-11 !

खंड - खंड बुन्देंलखण्ड (सर्वेक्षण आख्या) 2010-11 !

अध्ययन विषय - बुन्देंलखण्ड में उत्पन्न पर्यावरण की आसन्न भयावय स्थिति एवं समाज के ऊपर स्वास्थ्य, प्राथमिक शिक्षा, कृषि उपज, सूखा-पलायन, भूगर्भ जल स्तर पर प्रभाव डालने वाले प्रत्यक्ष कारणों को चिन्हित करते हुये बांदा (मटौंध) पचपहरा, महोबा-कबरई, पचपहरा क्षेत्र में गुजरे ढ़ाई दशकों से संचालित क्रशर उद्योग से उडने वाली डस्ट, वायु प्रदषूण से प्रभावित गांवो व जनसमूहों की स्थिति के सर्वेक्षण अध्ययन रिर्पोट के आंकलन अन्तरगर्त।

तथ्यसंकलन- प्राथमिक एवं द्वितीयक स्रोतो तथा जनसूचना अधिकार से प्राप्त आंकड़ो के द्वारा जुटाये गये तथ्य समाहित है।

अध्ययन क्षेत्र- प्रभावित क्षेत्र के 13 गांव इस अध्ययन क्षेत्र में शामिल है जिनमें प्रमुख रूप से डढ़हतमाफी-कुल जनसंख्या 4500, बरीपुरा-जनसंख्या 800, कालीपहाड़ी- जनसंख्या 3500, गुगौरा- जनसंख्या 1500, डहरी- जनसंख्या 4500, मकरबई- जनसंख्या 7000, अलीपुरा- जनसंख्या 1500, कबरई- जनसंख्या 30500 लगभग, गंज- जनसंख्या 4000, धरौन- जनसंख्या 4000, झिरसहेवा- जनसंख्या 1500, खजुरिहा पहरा- जनसंख्या 8000 तक 30 जनवरी 2011 में अनुमानित है।

सर्वेक्षण टीम- प्रवास सोसाइटी एवं पर्यावरण प्रदषूण नियन्त्रण संस्थान, ग्राम गुगौरा, पोस्ट गंज कबरई (महोबा) के कार्यकर्ताओं द्वारा तथ्य संकलन में सहभागिता की गयी।

प्रमुख आकड़े एवं तथ्य-

  1. प्रभावित जनसंख्या- 88,500 से 90,000 अनुमानित है।
  2. प्रभावित गांव की संख्या- 13
  3. संचालित व निर्माणधीन क्रशर प्लान्टों की संख्या 330 (सूचनाअधिकार से प्राप्त तथ्य) जिला खनिज अधिकारी श्री मुईनुददीन ने नवम्बर 2010 को सूचना दी।
  4. डस्ट मुक्त क्रशर प्लान्ट की संख्या- 2 (हिन्दुस्तान कन्स्ट्रक्शन कंपनी) गंज, पचपहरा कबरई में पटटा आवंटित किया गया जो कि समय सीमा समाप्त हो जाने से वर्तमान में बन्द है।
  5. क्रशर प्लान्टों मे कार्यरत श्रमिको की कुल संख्या- 10 से 15,000 तक अनुमानित है जो कि शीत ऋतु में अधिक व गर्मियों में बड़े शहरों की तरफ पलायन के कारण कम हो जाती है।
  6. एक क्रशर प्लान्टं में औसतन 40 से 50 महिला पुरूष मजदूर कार्यरत है।
  7. तकनीकी स्टोफ वर्कर 4 से 5 आदमी।
  8. एक क्रशर प्लान्ट मे औसतन 7 से 10 बाल श्रमिक (9 से 14 वर्ष) काम करते है
  9. क्रशर उद्योग में ड्राप आउट (स्कूल छोड़ने वाले) बच्चे लगभग 2000 अनुमानित।
  10. अध्ययन क्षेत्र में 2 प्राथमिक विद्यालय जिनमें गुगौरा पुलिस चैकी, विशाल नगर (कबरई) के प्राथमिक विद्यालय पूरी तरह ब्लास्टिगं के कारण बन्द रहते है।
  11. प्रभावित गांव में उपयोग की गयी कृषि भूमि की मात्रा 2 से 2500 एकड़
  12. एक क्रशर प्लान्टं उपयोग की गयी कुल भूमि 4 से 5 हेक्टेयर प्रति लीज
  13. कुल 330 क्रशर प्लान्टं मे से कृषि भूमि पर स्थापित प्लान्टों की संख्या 150 एवं निर्माणधीन 30 सम्भावित है।
  14. क्रशर उद्योग से संक्रमित प्रतिवर्ष खेती, फसल को नुकसान लगभग 10 से 12,000 हजार टन खांद्यान की कमी।
  15. नेशनल हाईवे 76 पर स्थापित क्रशर प्लान्ट जो की हरित पटिट्का/संरक्षित वन क्षेत्र व पुरातत्व के मानक की अनदेखी कर रहे है- 95 फीसदी।
  16. उ0प्र0 प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड से नहीं ली जाती है एन0ओ0सी0।

क्या हैं मानक प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड के मुताबिक-

  1. हवा में उडने वाली डस्ट की प्रदूषण मात्रा 200 माइक्रोग्राम पर क्यूबिक होना चाहिये जबकि वर्ष 2002 में प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड द्वारा किये गये सर्वे में यह 1800 माइक्रोग्राम पर क्यूबिक नापी गयी थी और तब महोबा में क्रशर प्लान्ट थे 52 जो कि अब है 330 और 2002 से वर्तमान तब किसी प्रकार का बोर्ड द्वारा/खनिज विभाग ने प्रदूषण नहीं नापा।
  2. स्टोन क्रशर में लगे होने चाहिये वाटर स्प्रिंकलर, डस्ट होपर, प्राथमिक-द्वितीयक जांच क्रशर व ब्रिक बे्रकिंग वोल। लेकिन हाल ही में 87 खदानों को इन मानकों के अनुपालन न करने के कारण बन्द किया गया है।
  3. किसी भी ऐतहासिक, पुरातत्व स्थल के 100 मी0 तक खनन् कार्य वर्जित है तथा 200 मी0 तक खनन् व निर्माण कार्य के लिये पुरातत्व विभाग से एन0ओ0सी0 लेना अनिर्वाय है जो कि नही ली जाती है।
  4. खदानों में ब्लास्टिंग का समय दोपहर 2 से 12 बजे के अन्तराल है लेकिन 24 घन्टे होते है धमाके।
  5. एक क्रशर उद्योग से कच्चेमाल के रूप में स्टोन बोल्डर का प्रयोग कर लगभग 10,000 सी0एफ0टी की दर से गे्रनाइट का उत्पादन किया जाये।
  6. क्रशर प्लान्ट में आकस्मिक स्वास्थ/ऐम्बुलेंस/डाक्टर की व्यवस्था हो जो कि किसी भी प्लान्ट में बुन्देलखण्ड मे नहीं है।
  7. क्रशर प्लान्ट में मजदूरों को पत्थर, गिटटी तोडने, ब्लास्टिंग करते समय मास्क, हेलमेट उपलब्ध हो जो कि नहीं दिये जाते है।
  8. नेशनल हाइवे, कृषि भूमि, हरित पटिट्का से 1.0 किलो मी0 दूर स्थापित हो क्रशर उद्योग, बालू खदान नदी से 500 मी0 की दूरी पर लगाई जाय मगर यहंा लगे है नेशनल हाइवे, कृषि भूमि पद सैकड़ो प्लान्ट।

अन्य विनाशकारी स्थितियां-

  1. बुन्देलखण्ड में बांदा, महोबा, चित्रकूट में तकरीबन 50,000 मजदूरों मे से 45 फीसदी पाये जाते है सिल्कोसिस, टी0वी0, दमा के मरीज।
  2. 30,000 टन पत्थर रोजाना पहाड़ो से तोडा जाता है।
  3. 2500 से भी अधिक छोटे बडे वाहन गुजरते है नेशनल हाइवे से ओवर लोड माल वाहक वाहन, डम्फर, ट्रकों के रूप में।
  4. 2500 बडे जनरेटर से होती है क्रशर प्लान्टों मे विद्युत आपूर्ति एवं बिजली आने पद होती है बांदा, महोबा, चित्रकूट में विद्युत चोरी। जिनमें से चित्रकूट की 272, महोबा 330, बंादा लगभग 2 सैकड़ा क्रशर प्लान्ट है।
  5. 2000 रूपये प्रति ट्रक से गुण्डा टैक्स की वसूली जिसकी ट्रक चालक नहीं मिलती है पावती रसीद।
  6. 4000 से भी अधिक बालश्रमिक करते है क्रशर उद्योग में पत्थर तोड़ाई।
  7. 1 इंच की जगह 6 इंच बडे होल में भरा जाता बारूद।
  8. पहाडों के खनन् से जड़ी बूटियां, वन्यजीव, जलस्तर का हो रहा है विनाश।
  9. 1500 से 2000 ड्रिलिंग मशीन लगी है इन खदानों में।
  10. 200 मी0 ऊचें पहाड़ो की 300 फिट गहरी है खदाने।
  11. अब तक आधा सैकड़ा परिवार हो चुके है विकलांग, सैकड़ो मौते जिनकी नहीं दर्ज होती है दबंग माफियाओं के कारण एफ0आई0आर0।

निष्कर्ष- उक्त अध्ययन, सर्वेक्षण से यह कहना मुनासिब है कि आने वाली वर्षो के आकडे और भी अधिक भयावह होगें जबकि यहां कि नस्लें भी हवा में तैरते प्रदूषण से त्वचा रोग, कैंसर, विकलांगता की उपज होगी और आकाल, सूखा, कमवर्षा, पलायन, सूखे जंगल ही बुन्देलखण्ड में हरित क्रान्ति, योजनाओं की भत्र्सना कर रहे होगें।

- आशीष सागर व पंकज सिंह परिहार (समाजिक कार्यकर्ता)