भूख प्यास और बेरोजगारी से कराहता बुन्देलखण्ड
भूख प्यास और बेरोजगारी से कराहता बुन्देलखण्ड (लेख- 'चेतन' नितिन खरे )
देश की राजनीति का यदि विश्लेषण किया जाए तो उत्तरप्रदेश के बुन्देलखण्ड हिस्से का नाम कई मायनों में स्वतः ही ऊपर उठकर आता है | चाहे लोकसभा का चुनाव हो चाहे विधानसभा का, सभी में बुन्देलखण्ड के राजनैतिक समीकरण देश के बाक़ी हिस्सों से बहुत भिन्न होते हैं | पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी, इंद्रा गाँधी के समय से लेकर गत मनमोहन सरकार एवं वर्तमान मोदी युग तक में बुन्देलखण्ड की राजनैतिक पकड़ हमेशा दिल्ली तक रही है | यदि उत्तर प्रदेश की राजनीति की बात की जाए तो भी बसपा एवं सपा दोनों सरकारों में बुन्देलखण्ड क्षेत्र की लखनऊ में मजबूत पकड़ रही है | हमेशा दो से तीन मंत्री किसी भी सरकार में इस क्षेत्र से शामिल किये गये हैं | यदि इस क्षेत्र के लिए किये गये प्रयासों की ओर देखा जाए तो निश्चित ही उनको भी सिरे से नकारा नहीं जा सकता | पिछली सरकारों ने भी बुन्देलखण्ड की बदहाली को मिटाने की कोशिश अवश्य की है | किन्तु वह कोशिश कभी भी धरातल पर नहीं उतर पायी, यह भी एक सच है |
इस सबके पीछे के सच को यदि जानने की हमारे किसी भी कर्णधार ने कोशिश की होती तो आज स्थिति इतनी भयावह नहीं होती | दरअसल मैं जब बुन्देलखण्ड के महोबा जिले के अपने गाँव से लेकर अन्य जिले के सैंकड़ों गाँवों में घूमता हूँ तो एक ही बात पाता हूँ, वो है सँवाद में कमी ! यहाँ की राजनीति में पकड़ रखने वाले नेताओं की अधिकारियों के साथ बैठकर जमीनी स्तर की समस्याओं और उनके निवारण के उपायों के विषय में सँवाद की हमेशा कमी रही है और है | अधिकारी वर्ग का सीधे जनता के साथ सँवाद कम होता है | जिसका कारण है बीच का कर्मचारी वर्ग जो सदैव एक जेनरिक सी रिपोर्ट ऊपर पहुँचाता है | जिससे प्रत्येक गाँव की समस्या का निष्पक्ष आकलन नहीं हो पाता है | जैसे की हम यदि भूखे को खाना देने की बात करें तो उसके लिए देश भर सरकारी राशन की दुकाने हैं | बुन्देलखण्ड के प्रत्येक गाँव में भी इसकी व्यवस्था है | किन्तु इन्हें यदि कालाबाजारी एवं गड़बड़ियों का अड्डा कहा जाए तो भी अतिसयोक्ति नहीं होगी | गत दिनों महोबा जिले के ही एक गाँव में इसका सर्वे किया गया तो उसमें पाया गया कि राशन कार्ड बनाने एवं उनके आधार पर राशन बाँटने के कार्य में भारी गड़बड़झाला है | राशन कार्डों में सफेदी से पुताई करके सही पात्र का नाम काटकर उनकी जगह अपात्र एवं दबंगों के नाम चढ़ाये गये हैं | इसके अलावा राशन माफिया अनाज, मिट्टी का तेल, चावल इत्यादी अपनी मनचाही मर्जी से अपने लोगों को देते हैं | इससे भूखे को भोजन और अधेंरे घरों में रौशनी की उम्मीद कैसे की जा सकती है ? यदि गाँवों को स्वच्छ रखने कि बात करें तो प्रत्येक गाँव में सफाई के लिए सफाई कर्मचारियों की शाशन द्वारा व्यवस्था की गयी है, किन्तु गाँवों में गंदगी का अम्बार जगह जगह देखने को मिल जाएगा | इसका कारण सफाई कर्मचारियों का अपने अपने कार्य क्षेत्र के गाँवों में महीने में सिर्फ एक या दो बार मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री की तरह दौरा करना है | जो कार्य रोजाना होना चाहिए वह महीनों में महज खानाफूर्ती के लिए किया जाता है | यदि गाँवों को रोशन करने की बात करें तो अभी भी यहाँ के लोग मिट्टी के तेल युक्त चिमनी, लालटेन के ही सहारे हैं | कई जगह बिजली नहीं है, बिजली है तो स्ट्रीटलाइट नहीं है, स्ट्रीटलाइट जहाँ लगाई गयीं वो बेहद ही घटिया किस्म और दोयम दर्जे की लगाईं गयीं जो महज पन्द्रह-पन्द्रह दिनों में खराब हो गयीं | सौर्यऊर्जा चलित स्ट्रीटलाइट के विषय में आज तक किसी ने सोचा ही नहीं | इसके साथ ही उत्तरप्रदेश के बुन्देलखण्ड वाले हिस्से में आम जनता का कभी भी अधिकारियों एवं सरकार के खिलाफ एकजुट होकर आवाज न उठाते हुए, अपने हितों का शोषण झेलना भी यहाँ के पिछड़ेपन का एक कारण है |
आज आजादी के 68 साल बाद भी हमारे प्रदेश एवं देश की सरकारें यहाँ की बेरोजगारी को दूर करने के लिए कोई बड़ी कम्पनियाँ, कारखाने इत्यादि भी यहाँ नहीं ला सके | उत्तरप्रदेश के बुन्देलखण्ड हिस्से में खनिज संपदाओं के लगातार दोहन से सूखे की स्थिति लगभग प्रत्येक वर्ष ही बनती है | किन्तु इस बार स्थिति आज तक कि सबसे भयावह स्थिति है | इससे निपटने के लिए उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने निम्न आदेश दिए हैं-
* बुन्देलखण्ड क्षेत्र में सूखे से प्रभावित लोगों को रोजगार
उपलब्ध कराने हेतु ग्राम स्तर पर कैम्प लगाकर जाॅब कार्ड बनवाए जाएं: मुख्यमंत्री
* मनरेगा योजना के अन्तर्गत रोजगार दिवसों को 100 से बढ़ाकर 150 दिवस करने के
निर्देश
* बुन्देलखण्ड में समाजवादी पेंशन योजना के तहत शत-प्रतिशत पात्र व्यक्तियों को
लाभान्वित कराया जाए
* बुन्देलखण्ड के समस्त जनपदों के ग्रामीण क्षेत्रों में 24 घण्टे विद्युत आपूर्ति
सुनिश्चित की जाए: मुख्यमंत्री
* खराब ट्रांसफार्मरों को तत्काल बदलने तथा ट्रांसफार्मर का बफर स्टाॅक बनाए जाने
के निर्देश
* खराब हैण्डपम्पों को रिबोर/मरम्मत किए जाने एवं आवश्यकतानुसार नए हैण्डपम्प लगवाए
जाने के निर्देश
* कृषि फसल बीमा योजना का क्रियान्वयन तेजी से पूरी पारदर्शिता के साथ किया जाए :
मुख्यमंत्री
* शीतलहर से गरीबों की रक्षा हेतु कम्बलों का वितरण एवं सार्वजनिक स्थानों पर अलाव
जलाने की व्यवस्था सुनिश्चित कराने के मुख्य सचिव के कड़े निर्देश |
हालाँकि यह अच्छी खबर है कि सूबे के मुखिया ने इस विषय में कुछ सार्थक पहल की है | किन्तु इसको ही सब कुछ इसलिए नहीं कहा जा सकता क्योंकि-
* जॉब कार्ड बनाने की प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित कैसे हो ? जबकि राशनकार्ड से लेकर आधार कार्ड एवं वोटरकार्ड बनवाने तक के लिए गाँव के ग़रीबों का खून चूसा जाता है|
* १५० दिन के रोजगार से क्या होगा ? जब जॉब कार्ड प्रक्रिया पारदर्शी न होगी और अपात्र इसका लाभ लेंगे, ठेकेदारों की धाँधली चलेगी |
* समाजवादी पेंशन योजना में चयनित पात्रता में भी गड़बड़ी
* सड़क में स्ट्रीट लाइट नहीं, खेतों में नलकूप तो क्या तार खम्भे तक नहीं | फिर चौबीस घंटे बिजली का आम जनता और गरीब किसान क्या करेंगे ? इसका फायदा सिर्फ माफियाओं को मिलेगा |
* आवश्यक स्थलों में हैण्डपम्पों की भारी कमी एवं आदेश का जमीनी स्तर पर सदैव बेहद सुस्त क्रियान्वयन |
* कृषि फसल बीमा योजना के तहत मिलने वाली राशी के बंटवारे में हमेशा गड़बड़झाला होना एवं दलालों की भरमार | क्या करे गरीब किसान ?
* शीतलहर से बचाव हेतु अलाव जलाने से लेकर कम्बल वितरण तक में पारदर्शिता न होना | कागजों में कुछ और हकीकत कुछ होने से गरीबों का भला कैसे होगा ?
इन सबकी निगरानी एवं सरकारी योजनाओं के बेहतर क्रियान्वयन के लिए सरकार को चाहिए की प्रत्येक ब्लॉक स्तर पर 'नॉन-गवर्नमेंट निगरानी कमेटी' का गठन होना चाहिए | जिसमें अलग अलग क्षेत्र के युवा,अनुभवी व बुद्धिजीवी समाजसेवा के लिए समर्पित लोग सम्मिलित हों, जो सरकार के सभी आदेशों, कार्यों, योजनाओं की समीक्षा करती रहे | जिसे अधिकारी वर्ग से ज्यादा शक्ति प्रदान की जाए | इसके अलावा आम जनता के लिए एक टोल फ्री नम्बर हो जो सीधे इस कमेटी से सम्पर्क में रहे | इससे जमीनी स्तर पर भ्रष्टाचार का खात्मा होगा एवं विकास को गति मिलेगी |
लेख-
'चेतन' नितिन खरे
(कवि,लेखक,विचारक एवं पत्रकार)
सिचौरा. महोबा. उ.प्र.