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श्री कल्पवृक्ष चालीसा - Shri Kalpavriksha Chalisa


'श्री कल्पवृक्ष चालीसा (Shri Kalpavriksha Chalisa)


मात पिता सिर नाय के, गुरुवर करूँ प्रणाम |
सब देवन को सुमिर के, ले शारद का नाम 

वेद पुराणों में निहित, तव महिमा तरुराज |
सकल जगत में गा सकूँ, यह आशिष दो आज ||

जय जय जय जय विटप विशाला, जय तरुवर जय निपट निराला |१|
जय सुर नर के पूजनहारी, जय जय कल्पतरू अति भारी |२|

जय सुरतरु जय मोहक रूपा, जय जय जय जय गाछ अनूपा |३|
जय जय कल्पलता वरदानी, तव महिमा ऋषि मुनिन बखानी |४|

जग के तुम ही हो तरुराजा, तुमको पूजत सकल समाजा |५|
ऋषि मुनि नारद तुमको ध्यावैं, देव सभी तुम्हरे गुण गावें |६|

वेद पुराणों में है गाथा, यति गंधर्व नवावहिं माथा |७|
तुलसी ने जब कलम चलाई,  मानस में महिमा तव गाई |८|

देव दनुज जब जलधि मथाये, भांति चतुर्दश रत्नहिं पाये |९|
पहली बार हलाहल आवा, जो भोले की भेंट चढ़ावा |१०|

दूजे कामधेनु को पावा, जे ऋषियन को दान करावा |११|
अश्व तीसरा रतन निराला,  दानवराज ताहि सम्हाला |१२|

कविता "Poem" 'बुन्देलखण्ड क्यों छला गया'


कविता "Poem" 'बुन्देलखण्ड क्यों छला गया'


हर ओर निराशा के बादल और फैली बदहाली है,
वह वीर प्रसूताओं की भूमि आज हो रही खाली है,

हो रहा पलायन दिनों रात घर गाँव हो रहे वीराने,
सूनापन फैला गलियों में लगी गरीबी मँडराने,

खेत हो रहे सब बंजर जिसमें फसलें लहलाती थीं,
वृक्ष धरा से उखट गये जहँ बैठ के चिड़ियाँ गातीं थीं,

बेगारी के आलम से घर के चूल्हे तक रोते हैं,
कर्ज के नीचे दबे अनेकों कृषक जिन्दगी खोते हैं,

नन्हा बचपन मजबूरी में मजदूरी को जाता है,
देख देख इन द्रश्यों को सुख चैन मेरा छिन जाता है,

जरा बताओ इस मिट्टी का तेज प्रचण्ड क्यों चला गया,
आजादी से अब तक बस बुन्देलखण्ड क्यों छला गया,

जो खनिज संपदा से भरी सोने के जैसी माटी थी,
ह्रदय स्थली भारत की जो वीरों की परिपाटी थी,

जो वाल्मीकि व्यास ब्रम्हा से ऋषियों की तपस्थली थी,
जहँ रामचरित मानस दाता तुलसी की कलम चली थी,

शौर्य पराक्रम शाहष ही जिस मिट्टी के गुण होते थे,
नदी और पर्वत मालाएं जिसके चरणों को धोते थे,

उत्तर दक्षिण से पश्चिम तक जो पर्वत मालाएं थीं,
वीर प्रसूता माटी की वो चारों शौर्य भुजाएं थी,

(कविता "Poem") 'क्रषक' by चेतन' नितिन राज खरे

(कविता)  'क्रषक'

'निज कर से करते क्रषि कार्य,

वो क्रषक तभी कहलाते हैं,

अपने अतीत को दे बिसार

नित नव कोपलें सजाते हैं

'हर घडी हर पहर में

(कविता "Poem") : गौ माता

इस हिन्दोस्तां के माटी की महिमा अपरम्पार है
गौ गंगा गीता से निर्मित इसका श्यामल सार है

परम पूज्य व पाप हारिणी गौ गंगा और गीता हैं
तरण तारिणी मोक्ष दायिनी तीनो परम पुनीता हैं

रोम रोम में देव रमे हों ऐसी पवित्र गौ माता है
चार धाम का पुण्य भी गौ सेवा से मिल जाता है

(कविता) ''बुन्देलखण्ड के हम वासी हैं'' - नितिनराज खरे 'चेतन'

''बुन्देलखण्ड के हम वासी हैं''

बुन्देलखण्ड के हम वासी हैं- महोबा जिला हमारा है !

वीर भूमि आल्हा ऊदल की -हमको प्राणों से प्यारा है !!

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