बुन्देली भाषा शब्दाबली का संग्रह - Bundeli Language Vocabulary Collection
बुन्देली भाषा शब्दाबली का संग्रह - Bundeli Language Vocabulary Collection
बुन्देली शब्दाबली का संग्रह: शब्दकोश बनाने हेतु एक प्रयास :
किसी भी भाषा का शब्दकोश बनाना एक कठिन श्रमसाध्य कार्य है। इसके लिये शब्द, शब्दों के अर्थ, परिभाषा, उसके समानार्थक तथा विलोम शब्दों की जानकारी तथा उनके प्रयोग पर ध्यान दिया जाता है।
भारत सरकार के केंद्रीय हिंदी निदेशालय ने शब्दाबली आयोग बनाकर इस दिशा में उल्लेखनीय कार्य किया है। इसके बाबजूद अनेक क्षेत्रीय भाषायें आज भी उपेक्षित रह गयीं हैं उन्ही में से एक बुंदेली भाषा है। जिसके लिये आज अखिल भारतीय बुंदेलखण्ड साहित्य एवं संस्कृति परिषद द्वारा प्रयास किया जा रहा है।
ओरछा में आयोजित सेमीनार - राष्ट्रीय बुन्देली भाषा सम्मेलन में अनेक प्रतिभागी बुंदेली शब्दों को लेकर आये और सही बुंदेली शब्द के चयन पर सत्र में चर्चा हुई।
देश की स्वतंत्रता के बाद सरकारी क्षेत्रों में वैज्ञानिक शब्दावली की आवश्यकता बढ़ी और भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने सन 1950 में वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली बोर्ड की स्थापना की।
सन 1952 में शिक्षा मंत्रालय (हिंदी अनुभाग) ने वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली बोर्ड के निर्देशन में पारिभाषिक शब्दावली निर्माण प्रारम्भ हुआ।
सन 1960 में केंद्रीय हिंदी निदेशालय की स्थापना हुई। शब्दावली बनाने हेतु अनेक विद्वान, शिक्षक और भाषाविदों की सहायता ली गयी।
पारिभाषिक शब्दावली के लिये निम्न सिद्धांत अपनाये गये :
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अंतर्राष्ट्रीय शब्दावली को ज्यों का त्यों रखा गया है और उसका केवल देवनागरीकरण किया गया है।
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अखिल भारतीय पर्याय संस्कृत धातुओं के आधार पर निर्मित किये गये हैं।
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कुछ प्रसंगों में संस्कृत पर्यायों की अपेक्षा स्थानीय हिंदी शब्दों एवं हिंदी में आत्मसात् अन्य भाषा के शब्दों को भी स्वीकृत किया गया है क्योंकि वे जन सामान्य के प्रयोग में आते हैं। ऐसे प्रसंगों में अन्य भाषाओं को भी अपने भिन्न पर्याय रखने की छूट है।
अत: बुंदेली भाषा का शब्दकोश क्षेत्रीय भाषा का शब्दकोश होगा। इस दिशा में संकलन का प्रयास सराहनीय है।
जैन साहित्य एवं भजनों में प्रयुक्त बुंदेली भाषा के शब्द :
आगम जैन साहित्य विशाल विस्त्रित है। बुंदेलखण्ड क्षेत्र में अनेक जैन विद्वान, साधू, संत, कवि एवं साहित्यकार हुये हैं जिन्होने जैन साहित्य के विस्तार में अपना योगदान दिया है। इसी के परिणाम स्वरूप बुंदेली भाषा के अनेक शब्द जैन साहित्य में देखने को मिलते हैं।
बुंदेलखण्ड के ग्राम दिगौड़ा में जन्में पं. देवीदास ऐसी ही एक विभूति हैं जिन्होने व्यापार करते हुये, सांसारिक जीवन जीते हुये अनेक धार्मिक रचनाओं का सृजन किया इसका विस्तार से वर्णन देवीदास विलास तथा प्रवचनसार भाषा-कवित्त में मिलता है।
पं. देवीदास का एक लोकप्रिय भजन जिसमें अनेक बुंदेली शब्द सम्मलित हैं। इस प्रकार है -
या संसार में कोई सुखी नजर नहीं आया…!
कोई दुखिया धन बिन, दीन वचन मुख बोले,
भटकत फिरत दुनिया में, धन की चाह में डोले,
या संसार में कोई सुखी नजर नहीं आया ।
पं. भूधर दास द्वारा जैन धर्म के अनेक भजन, पूजा आदि को लिखा गया। जिनमे अनेक बुंदेली शब्द दिखाई दे जाते हैं। जैसे -
अहो जगत गुरुदेव, सुनिये अरज हमारी। तुम प्रभू दीन दयाल, मैं दुखिया संसारी।
इस भव बन के माहिं, काल अनादि गमायो। भ्रम्यो चहुं गति माहिं, सुख नहिं द:ख बहु पायो।
एक जनम की बात, कह ना सकूं सुन स्वामी। तुम अनंत पर्याय जानत अनतरयामी।
मैं तो एक अनाथ, ये मिल दुष्ट घनेरे। किये बहुत बेहाल, सुनिये साहब मेरे।
श्री ग़णेश प्रसाद जी वर्णी : बुंदेलखण्ड के साढूमल, मड़ावरा जिला ललितपुर में जन्मे महान जैन संत का शिक्षा जगत को विशेष योगदान है। इनकी प्रेरणा से बुंदेलखण्ड क्षेत्र में अनेक जैन पाठशालायें तथा विद्यालय खोले गये जो कि आज भी चल रहे हैं। इन्ही के प्रयास से वाराणसी में स्याद्वाद महाविद्यालय की स्थापना सन 1905 में की गयी थी जिससे पढ़कर अनेक जैन विद्वान निकले। श्री वर्णी जी के जीवन का विस्त्रित वर्णन ‘मेरी जीवन ग़ाथा’ में मिलता है। इस जीवन वृतांत के ग्रंथ में पूर्णतया बुंदेली शब्दों का ही उपयोग किया गया है।
उत्तर प्रदेश सरकार के सूचना विभाग तथा मध्य प्रदेश सरकार के सूचना विभाग द्वारा बुंदेली भाषा के कुछ ग्रंथों के प्रकाशन का कार्य किया गया है। इसमें श्री कृष्णानंद गुप्त (गरौठा, झांसी) द्वारा लिखित पुस्तक: बुंदेली कहावतकोश (प्रकाशक: सूचनाविभाग, लखनऊ, उत्तर प्रदेश,1960) प्रमुख है।
इसी पुस्तक से कुछ चयनित कहावतें / लोकोक्तियां यहां प्रस्तुत हैं जो कि अनेक अवसरों पर तथा सामान्य बोलचाल में सुनाई देती रहती हैं। डा. राम गोपाल गर्ग की पुस्तक भारतीय हिंदी ग्रंथ सूची से प्राप्त जानकारी के अनुसार श्री कैलास बिहारी दुबेदी द्वारा बुंदेली शब्द कोश (साहित्य वाणी, इलाहाबाद) से प्रकाशित हुआ है।
बुंदेली लोकोक्तियां / कहावतें
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अंदरा की सूद |
अपनी इज्जत अपने हाथ |
अक्कल के पाछें लट्ठ लयें फिरत |
अक्कल को अजीरन |
अकेलो चना भार नईं फोरत |
अकौआ से हाती नईं बंदत |
अगह्न दार को अदहन |
अगारी तुमाई, पछारी हमाई |
इतै कौन तुमाई जमा गड़ी |
इनईं आंखन बसकारो काटो? |
इमली के पत्ता पपे कुलांट खाओ |
ईंगुर हो रही |
उंगरिया पकर के कौंचा पकरबो |
उखरी में मूंड़ दओ, तो मूसरन को का डर |
उठाई जीव तरुवा से दै मारी |
उड़त चिरैंया परखत |
उड़ो चून पुरखन के नाव |
उजार चरें और प्यांर खायें |
उनकी पईं काऊ ने नईं खायीं |
उन बिगर कौन मॅंड़वा अटको |
उल्टी आंतें गरे परीं |
ऊंची दुकान फीको पकवान |
ऊंटन खेती नईं होत |
ऊंट पे चढ़के सबै मलक आउत |
ऊटपटांग हांकबो |
एक कओ न दो सुनो |
एक म्यांन में दो तलवारें नईं रतीं |
ऐसे जीबे से तो मरबो भलो |
ऐसे होते कंत तौ काय कों जाते अंत |
ओंधे मो डरे |
ओई पातर में खायें, ओई में धेद करें |
ओंगन बिना गाड़ी नईं ढ़ंड़कत |
कंडी कंडी जोरें बिटा जुरत |
कतन्नी सी जीव चलत |
कयें खेत की सुने खरयान की |
करिया अक्षर भैंस बराबर |
कयें कयें धोबी गदा पै नईं चढ़त |
करता से कर्तार हारो |
करम छिपें ना भभूत रमायें |
करें न धरें, सनीचर लगो |
करेला और नीम चढो |
का खांड़ के घुल्ला हो, जो कोऊ घोर कें पीले |
काजर लगाउतन आंख फूटी |
कान में ठेंठा लगा लये |
कुंअन में बांस डारबो |
कुंआ बावरी नाकत फिरत |
कोऊ को घर जरे, कोऊ तापे |
कोऊ मताई के पेट सें सीख कें नईं आऊत |
कोरे के कोरे रे गये |
कौन इतै तुमाओ नरा गड़ो |
खता मिट जात पै गूद बनी रत |
खाईं गकरियां, गाये गीत, जे चले चेतुआ मीत |
खेत के बिजूका |
गंगा नहाबो |
गरीब की लुगाई, सबकी भौजाई |
गांव को जोगी जोगिया, आनगांव को सिद्ध |
गोऊंअन के संगे घुन पिस जात |
गोली सें बचे, पै बोली से ना बचे |
घरई की अछरू माता, घरई के पंडा |
घरई की कुरैया से आंख फूटत |
घर के खपरा बिक जेयें |
घर को परसइया, अंधियारी रात |
घर को भूत, सात पैरी के नाम जानत |
घर घर मटया चूले हैं |
घी देतन वामन नर्रयात |
घोड़न को चारो, गदन कों नईं डारो जात |
चतुर चार जगां से ठगाय जात |
कौआ के कोसें ढ़ोर नहिं मरत |
चलत बैल खों अरई गुच्चत |
चित्त तुमाई, पट्ट तुमाई |
चोंटिया लेओ न बकटो भराओ |
छाती पै पथरा धरो |
छाती पै होरा भूंजत |
छिंगुरी पकर कें कोंचा पकरबो |
छै महीनों को सकारो करत |
जगन्नाथ को भात, जगत पसारें हाथ |
जनम के आंदरे, नाव नैनसुख |
जब की तब सें लगी |
जब से जानी, तब सें मानी |
जा कान सुनी, बा कान निकार दई |
जाके पांव ना फटी बिम्बाई, सो का जाने पीर पराई |
जान समझ के कुआ में ढ़केल दओ |
जित्ते मों उत्ती बातें |
जित्तो खात. उत्तई ललात |
जित्तो छोटो, उत्तई खोटो |
जैसो देस, तैसो भेष |
जैसो नचाओ, तैसो नचने |
जो गैल बताये सो आंगे होय |
जोलों सांस, तौलों आस |
झरे में कूरा फैलाबो |
टंटो मोल ले लओ |
टका सी सुनावो |
टांय टांय फिस्स |
ठांडो बैल, खूंदे सार |
ढ़ोर से नर्रयात |
तपा तप रये |
तरे के दांत तरें, और ऊपर के ऊपर रै गये |
तला में रै कें मगर सों बैर |
तिल को ताड़ बनाबो |
तीन में न तेरा में, मृदंग बजाबें डेरा में |
तुम जानो तुमाओ काम जाने |
तुम हमाई न कओ, हम तुमाई न कयें |
तुमाओ मो नहिं बसात |
तुमाओ ईमान तुमाय संगे |
तुमाये मों में घी शक्कर |
तेली को बैल बना रखो |
थूंक कैं चाटत |
दबो बानिया देय उधार |
दांत काटी रोटी |
दांतन पसीना आजे |
दान की बछिया के दांत नहीं देखे जात |
धरम के दूने |
नान सें पेट नहीं छिपत |
नाम बड़े और दरसन थोरे |
निबुआ, नोंन चुखा दओ |
नौ खायें तेरा की भूंक
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नौ नगद ना तेरा उधार |
पके पे निबौरी मिठात |
पड़े लिखे मूसर |
पथरा तरें हाथ दबो |
पथरा से मूंड़ मारबो |
पराई आंखन देखबो |
पांव में भौंरी है |
पांव में मांदी रचायें |
पानी में आग लगाबो |
पिंजरा के पंछी नाईं फरफरा रये |
पुराने चांवर आयें |
पेट में लात मारबो |
बऊ शरम की बिटिया करम की |
बचन खुचन को सीताराम |
बड़ी नाक बारे बने फिरत |
बातन फूल झरत |
मरका बैल भलो कै सूनी सार |
मन मन भावे, मूंड़ हिलाबे |
मनायें मनायें खीर ना खायें जूठी पातर चांटन जायें |
मांगे को मठा मौल बराबर |
मीठी मीठी बातन पेट नहीं भरत |
मूंछन पै ताव दैवो |
मौ देखो व्यवहार |
रंग में भंग |
रात थोरी, स्वांग भौत |
लंका जीत आये |
लम्पा से ऐंठत |
लपसी सी चांटत |
लरका के भाग्यन लरकोरी जियत |
लाख कई पर एक नईं मानी |
सइयां भये कोतबाल अब डर काहे को |
सकरे में सम्धियानो |
समय देख कें बात करें चइये |
सोउत बर्रे जगाउत |
सौ ड़ंडी एक बुंदेलखण्डी |
सौ सुनार की एक लुहार की |
हम का गदा चराउत रय |
हरो हरो सूजत |
हांसी की सांसी |
हात पै हात धरें बैठे |
हात हलाउत चले आये |
होनहार विरबान के होत चीकने पात |
हुइये बही जो राम रूचि राखा |
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निष्कर्ष :
इस प्रकार हम देखते हैं कि बुंदेली भाषा बहुत ही सारगर्वित है। उत्तर प्रदेश सरकार तथा मध्यप्रदेश सरकार के भाषा विभाग के सहयोग से बुंदेली भाषा के संरक्षण एवं विकास हेतु प्रयास होना चाहिये। इसके अलावा भारत सरकार, राजभाषा के क्षेत्रीय कार्यान्वयन कार्यालय (मध्य) भोपाल (कमरा नं. 206, निर्माण सदन, 52 ए अरेरा हिल्स) से भी सहयोग प्राप्त कर बुंदेली भाषा के विकास हेतु प्रयास किया जा सकता है। शब्दकोश बनाने हेतु अखिल भारतीय बुंदेलखण्ड साहित्य एवं संस्कृति परिषद का वर्तमान प्रयास इसी दिशा में एक सार्थक कदम है।
Courtesy: डा. विवेकानंद जैन, काशी हिंदू वि.वि.