(STORY) Heartbreaking Stories of BONDED LABOUR in Banda.( बांदा में बंधुआ मजदूरी )

just read it till the end...and think over it... :(

नौगवां में पीढि़यों से बंधुआ बने कई लोग

बांदा। कागजों पर जमींदारी खत्म हुए सालों हो गए। बंधुआ मजदूरी की कुप्रथा को भी खत्म ही मान लिया गया। जिला प्रशासन ने भी एक साल पहले ही सर्वेक्षण कराने के बाद रिपोर्ट भेज दी कि कोई बंधुआ जिले में नहीं है, लेकिन नरैनी ब्लाक के नौगवां गांव में बंधुआ मजदूरी का मामला सामने आया है।
दो पीढि़यों से राजबहादुर भदौरिया के यहां बंधुआ मजदूर बने करीमा ने आज तक आजादी का सुख नहीं महसूस किया। 70 मन अनाज और आठ हजार रुपये अदा करने में उसकी पूरी जिंदगी कट रही है। करीमा का पिता नत्थू भी 40 सालों तक यही काम करते-करते चल बसा। वो कर्ज नहीं अदा कर सका था तो उसके गुजरने के बाद करीमा को बंधुआ बनना पड़ा।
सुबह से मालिक के घर का गोबर फेंकना, बर्तन साफ करना, पानी भरना, झाड़ू लगाना, रात में खेतों की रखवाली करना ही उसका जीवन है। करीमा की पत्नी 10 वर्ष पहले ही गरीबी और भुखमरी से तंग आकर चल बसी। बेटा राजू , नत्थू करवरिया के यहां 20 रुपये में मजदूरी करता है। दूसरा बेटा भी मुन्ना भी अनाथ बना गांव में घूमता रहता है। किसी ने रोटी का टुकड़ा दे दिया तो उसी से पेट भरता है। इसी तरह रामदीन, सुकरू, मातादीन, बब्बू की भी अजीबो गरीब कहानी है। अरविंद व रामस्वरूप गर्ग से सुकरू ने पांच हजार रुपए उधार लिए थे। अदा नहीं कर पाया तो उसकी 10 बीघा जमीन पर जबरन कब्जा कर लिया। सुकरू की पत्नी भी मजदूरी करते करते ही चल बसी। भूख, पिता के प्यार से वंचित बेटे भी बाप का साथ छोड़ परदेश चले गये हैं। छल-कपट से रामस्वरूप गर्ग ने सुकरू की जमीन बंधक कर बैंक से 40 हजार का फर्जी कर्ज भी ले लिया। बैंक ले जाते समय झांसा दिया कि हमारी जमानत में तुम्हारा फोटो और हस्ताक्षर लगने हैं। अब चूंकि शरीर काम नहीं कर रहा तो मालिक के यहां काम करना सुकरू की मजबूरी है। काम से इनकार करने पर मालिक के लात-घूंसों की और क्रेडिट कार्ड से निकाले गई रकम को जमा न करने पर जेल भेज देने की बैंक मैनेजर की धमकी से सुकरू अब जंगल की गुफाओं में घुसा रहता है। वहीं बेर, भाजी खाकर जी रहा है।

ऐसी ही एक और कहानी है। रामदीन रैदास, नत्थू करवरिया के यहां बंधुआ है। 16 वर्ष पहले 10 हजार रुपए उधार लिए थे। काम करते-करते जवानी खप गई लकिन कर्ज अदा नहीं हुआ। 60 हजार रुपए ब्याज के चढ़ गए वो अलग से। रामदीन की पत्नी-बच्चे नत्थू के यहां ही 4 बीघे जमीन बटाई में लेकर बसर कर रहे हैं। रामदीन अपनी कहानी बताते बताते रो पड़ता है।
वैसे तो जिला प्रशासन ने बांदा जिले में दो वर्ष पहले बंधुआ मजदूरों का सर्वेक्षण कराकर एक भी बंधुआ न पाये जाने की रिपोर्ट भेज चुका है लेकिन सच्चाई यह है कि अकेले नरैनी ब्लाक की नौगवां, रगौलीभटपुरा में लगभग तीन दर्जन बंधुआ मजदूर हैं, जो अमानवीय जीवन जीने को विवश हैं। मजदूरों ने कई बार प्रशासन को बंधुवा मजदूरी से मुक्ति दिलाने के लिए प्रार्थना पत्र लिखे हैं फिर भी इनकी आवाजें नक्कारखाने की तूती बनकर रह गई है।
बंधुआ मजदूर मुक्त होंगे : डीएम
जिलाधिकारी उमेश कुमार मित्तल को जब इन बंधुआ मजदूरों के बारे में बताया गया तो वह चौंक पडे़। उन्होंने सारे बंधुवा मजदूरों के नाम नोट किये और कहा कि वह एसडीएम आरके पांडेय को निर्देशित कर रहे हैं। वह दलबल के साथ वहां पहुंचेंगे और बंधुवा मजदूर मुक्त कराकर बंधक बनाने वाले दबंगों के खिलाफ कार्रवाई होगी। दूसरी ओर उप श्रम आयुक्त जीके सक्सेना ने कहा कि वह श्रम परिवर्तन अधिकारी को मौके पर भेजकर स्थिति का जायजा लेंगे और कार्रवाई होगी।

Courtesy: www.Jagran.com

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SWAMI AGNIVESH
BANDHUA MUKTI MORCHA
7, JANTAR MANTAR ROAD,
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