(Article) बुन्देलखण्ड राज्य के लिए लामबन्द होने लगे युवा
बुन्देलखण्ड राज्य के लिए लामबन्द होने लगे युवा
आजादी के बाद से ही उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के बीच बाँट कर बुन्देलखंड के साथ बड़ा नइन्साफ हुआ है। 1857 की क्रांन्ति के पहले अंग्रेजो को बुन्देलखंड से खदेड़ने वाले वीर बुन्देलखंड वासियों को आजादी के बाद उपेक्षा और नइन्साफी का सबब अपने इतिहास पुरूष महाराजा छत्रसाल की तरह ही मिला है मध्यभारत के सबसे बड़े योद्धा महाराजा छत्रसाल की मिशाल दूसरी नही है जिन्हे राज्य उत्तराधिकार में नहीं मिला था लेकिन उन्होंने अपनी तलवार के बल पर सबसे शक्तिशाली राज्य की स्थापना की और अपने जीवन में 60 से ज्यादा युद्ध लड़े इतने महान प्राक्रमी रणवाकुर की उपेक्षा जिस प्रकार इतिहासकारों ने की है उतनी ही उपेक्षा बुन्देलखंड की लोक संस्कृति, कला, पुरातत्व तथा बुन्देलीभाषा की आज हो रही है। पिछले दिनों प्रदेश की राजधानी में बसपा सुप्रीमों मायावती द्वारा उत्तर प्रदेश के तीन बटवाॅरे बुन्देलखंड, पूर्वाचंल और हरितप्रदेश के रूप में किये जाने की वकालत करके उत्तर प्रदेश के विभाजन का जिन्न बोतल से बाहर निकाल दिया है। बुन्देलखंड राज्य के लिए 1947 से ही लड़ रहे बुन्देलखंड वासियों को मुहमाँगी मुराद सी मिल गयी है। अब उन्हें लगने लगा है कि अब इन्तजार की घड़ियाँ समाप्त हो गई है। 1947 में देश आजाद होने के बाद सुप्रसिद्ध साहित्यकार पं0 बनारसी दास चर्तुवेदी के सम्पादन में कुण्डेश्वर (टीकमगढ़) से निकलने वाली पत्रिका
मधुकर जनपदीय अंक ने बुन्देलखंड राज्य की मांग को पहली बार इंगित किया था।
1968 में सागर मध्यप्रदेश में बुन्देलखंड राज्य के लिए सबसे बड़ा राजनीतिक सम्मेलन तत्कालीन मंत्री नरेन्द्र सिंह जुदेव साहित्यकार डा0 बृन्दावनलाल वर्मा विधायक डाल चन्द जैन मध्यप्रदेश के पूर्व गृहमंत्री बृजकिशोर पटैरिया के नेतृत्व में हुआ था। इस सम्मेलन में प्रस्ताव पारित करके कहा गया था उदल गरजे दस पुरवा में, दिल्ली में कांपे चैहान को फलित करने के लिए सभी को एक झण्डे के नीचे आना होगा लेकिन भोपाल के राजधानी बनते ही बुन्देलखंड राज्य आन्दोलन को उतनी गति नही मिल पायी जितनी की जरूरत थी लेकिन बुन्देलखंड राज्य के लिए झांसी, ललितपुर, हमीरपुर, बांदा, चित्रकूट, ग्वालियर, छतरपुर, पन्ना, सागर, कभी तेज तो कभी धीमी गति से आन्दोलन चलता रहा है बुन्देलखंड राज्य अन्दोलन के लिए पूर्व सांसद लक्ष्मी नारायण नायक तत्कालीन विधायक देव कुमार यादव, कामता प्रसाद विश्वकर्मा की बुन्देलखंड प्रान्तनिर्माण समिति विधायक तथा अब मंत्री बादशाह सिंह की इन्साफ सेना तथा बुन्देलखंड विकास सेना समय-समय पर राज्य अन्दोलन की मुहिम चलाती रही है। 1989 में शंकर लाल मल्होत्रा के नेतृत्व में नौगाँव छावनी में बुन्देलखंड मुक्ति मोर्चा के गठन के साथ ही पिछले 17 वर्षो से बुन्देलखंड राज्य के लिए मुहिम तेज हो गई है। फिल्म अभिनेता और कांग्र्रेस के नेता राजा बुन्देला के नेतृत्व में बुन्देलखंड राज्य के लिए बुन्देलखंड मुक्ति मोर्चा द्वारा चित्रकूट से खजुराहों तक जनजागरण यात्रा 15 अगस्त से शुरू की जा रही है। तिन्दवारी (बांदा) विधायक विशम्भर प्रसाद निषाद जोश खरोश के साथ बुन्देलखण्ड राज्य का समर्थन विधानसभा के अन्दर और बाहर करते है। वही दूसरी ओर उत्तर प्रदेश के बुन्देलखंड में सूपड़ा साफ करा चुकी भाजपा न हाँ कह पा रही हैं और न ही न कर पा रही हैं।
खनिज सम्पदा के लिए मशहूर बुन्देलखंड के अकेले पन्ना जनपद से 700 करोड़ रूपये केन्द्र सरकार को और मध्यप्रदेश सरकार को 1400 करोड़ राजस्व के रूप में प्राप्त होते है। राजाबुन्देला कहते है कि बुन्देलखंड का आमजन बदहाली और बेबसी का शिकार है। सम्पन्न एवं मध्यम वर्ग का किसान कर्ज, टैªक्टर की किश्त, नमक-रोटी न जुटा पाने के कारण आत्महत्या कर रहा है। इधर के समय में सैकड़ों उदाहरण सामने आये है। सम्पन्न एवं मध्यम वर्ग के किसानों की अगर यह हालत है, तो गरीब एवं भूमिहीन परिवारों के हालात क्या होगें, कल्पना की जा सकती है? कांग्रेस के झांसी जिलाध्यक्ष सुधांशु त्रिपाठी कहते है बुन्देलखण्ड में सार्वजनिक वितरण प्रणाली पूरी तरह ध्वस्त है। 10-10 वर्षो से अन्त्योदय, बीपीएल कार्ड धारकों को राशन नहीं मिल रहा है। सम्पूर्ण सामग्री कानपुर, वाराणसी आदि के आटा मिलों में समा रही है। बुन्देलखण्ड में ‘भुखमरी’ की घटनाएं अब आम हो चली हैं। गरीब एवं वंचित वर्ग के लगभग 40 प्रतिशत लोगों का काम की तलाश में पलायन इसका प्रमाण है। बुन्देलखंड साहित्य एवं संस्कृति परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष कैलाश मडवैया कहते है कि बुन्देलखंड को दो भागों में विभाजन करके अंग्रेजों ने इस वीर भूमि के साथ बहुत गहरी साजिश रची थी ताकि अंग्रेजों के छक्के छुड़ा देने वाले लोग कभी ताकतवर न हो सके लेकिन अफसोस है कि आजादी के बाद हमारे अपने ही हमे एक नही होने दे रहे है। जब दुनिया में पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी एक हो गयी ऐसे वक्त में बुन्देलखंडवासियों के एक होने का वक्त आ गया है। अंग्रेजों के पहले भाषायी अध्यन में यह बात निकल कर आई थी कि आठ करोड़ लोग बुन्देलीभाषा बोलते थे लेकिन बुन्देलीभाषा आज तक आठवी अनुसूची में शामिल नही हो पाई है।
बुन्देलखंड मुक्ति मोर्चा के भानु सहाय कहते है बुंदेलखण्ड में प्रति व्यक्ति आमदनी राष्ट्रीय औसत से बहुत कम है। बुन्देलखंड के जिले देश के चुनिंदा गरीब और संकटग्रस्त जिलों में शुमार हैं। यहां के हालत पर गौर किये बिना तमाम योजनाएं लागू कर दी जाती हैं। परिणाम भी घातक होता है, लेकिन न तो केन्द्र सरकार और न ही राज्य सरकार जमीनी हकीकत पर गौर करने को जहमत समझते हैं। प्राकृतिक आपदाओं की मार, पथरीली जमीन यहां के किसानों का हतभाग्य बन गए हैं। खेती-बाड़ी चैपट है, दो जून की रोटी के लाले हैं, किसान कर्ज के बोझ तले दफन हो रहे हैं। फिर भी यहां बैंकों से कर्ज देने का क्रम बदस्तूर चल रहा है।
आल्हा ऊदल, छत्रसाल, हरदौल और महारानी लक्ष्मीबाई की भूमि है बुंदेलखण्ड। हरियाली से आच्छादित, मौन, गंभीर शिलाखंडों को अपने वक्ष पर धारण किए यह भू-प्रदेश एक नैसर्गिक रहस्यबोध को जन्म देने वाला है। छोटी-छोटी पहाड़ी नदियों और प्रपातों में बहता स्वच्छ जल और उसमें दिखाई पड़ने वाली चपल, धवल मछलियां अंतरआत्मा को पुलकित करने वाली हैं। लेकिन क्या जीवन सिर्फ यही है? यह तो प्रकृति के जीवन तत्व का बोध है। लेकिन जो बोध कर रहा है यानी मनुष्य, वह कहां खड़ा है, इस सबके बीच। इस क्षेत्र में यह ध्यान आते ही उन वस्तुगत यथार्थो से आपका सामना होता है जो झकझोर देने वाले हैं। इस सुंदर प्रकृति की गोद में पलने वाला मानवीय जीवन कितना असुंदर है, इसका अंदाजा इस क्षेत्र में छानबीन करके ही लगाया जा सकता है। स्वाधीनता के दशकों बाद भी बुंदेलखण्ड कितना पिछड़ा है, कितना साधनहीन है यह देख कर आश्चर्य होता है। मध्यप्रदेश तथा उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों का समन्वित अध्ययन किया गया है क्योंकि बुंदेलखण्ड एक विशिष्ट भू-सांस्कृतिक इकाई का नाम है। इसे प्रदेशों की सीमा में बांट कर नहीं समझा जा सकता है। न सरकारी मदद, न रोजगार, अन्नदाता लाचार यह कहानी पिछले छः वर्षो से लगातार सूखे से सूखते बुंदेलखण्ड के लोगों की है जिन्होंने इन हालातों से तंग आकर 12 सौ से भी अधिक किसानों ने मौत के आगे घुटने टेक दिये सरकारें भले ही किसानों की जा रही आत्महत्या को न स्वीकारे लेकिन पूरे बुंदेलखण्ड का इलाका इस सच को जानता है इसीलिए बुंदेलखण्ड राज्य की बात उठने के साथ बुंदेलखण्ड के जनमानस ने आशा की किरणें जाग उठी है। बुंदेलखण्ड की हर गाँव की एक ही कहानी है। हर महीने कोई न कोई विपदा आती है। कुछ आत्महत्याऐं करते है तो कुछ भूख के खिलाफ बगावत करते है तो उन्हें बागी कहा जाता है लेकिन इस बागी के अतीत की उस कालिख मय जीवन को जानने की किसी को फुर्सत नहीं हताश लोगांे ने गरीबी से लड़ने की अपनी इच्छा शक्ति खो दी है।
पलपल मौत के साये में जीते बुंदेलखण्ड के किसानों की इच्छाओं को शब्द दिये है कवि अग्निवेद ने
"बुन्देलखंड के सूखे खेतों को देखकर / किसानों की छाती फट रही।
अंध, प्रमादग्रस्त, मदमस्त सत्ता / जमीनी हकीकत नहीं स्वीकार रही।
जब धरती पुत्रों को मुक्ति का मार्ग / आत्महत्या बन जाये।
पेट की आग में जलते-जलते / लोगो के जीवन दीप बुझ जाये।
राजधानी में फिजूलखर्ची पर / वेशुमार दौलत फूकी जाये।
वीरभूमि के वीरो की आँखे / दो बूंद पानी को तरस जाये।
शोक या क्रोध में / बुन्देल भूमि फट जाये।
लेकिन शर्मनाक चुप्पी को / सद्बुद्धि कौन दिलाये।"
बुन्देलखंड के भयाभय हो रहे हालात को इंगित करती है वास्तव में देखा जाऐ तो आजादी के बाद से ही उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के बीच बाँट कर बुन्देलखंड के साथ बड़ा न इन्साफ हुआ है।
"इत चंबल उत नर्मदा, इत यमुना उत टौंस। छत्रसाल से लरन कों, रही न काहू की होंस।"
बुंदेलखण्ड की मिट्टी को अपने रक्त से सींचने वाले अनेक सूरमाओं में एक शिरोमणि था छत्रसाल। इस छत्रसाल ने अपने बाहुबल के आधार पर स्थापित राज्य की सीमाओं में प्रायः समूचे बुंदेलखण्ड को समेट लिया था। उपर्युक्त दोहे में छत्रसाल के राज्य की सीमाओं का वर्णन करते हुए एक प्रकार से बुंदेखण्ड की भौगोलिक परिभाषा देदी गई है। चम्बल, नर्मदा, यमुना और टौंस की परिधियों से इस क्षेत्र की सीमाएं अंकित हैं। इसके वक्ष में बहती है निर्मल, स्वच्छ और मचलती बेतवा नदी।
यूं तो बुंदेलखण्ड क्षेत्र दो राज्यों में विभाजित है-उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश, लेकिन भू-सांस्कृतिक दृष्टि से यह क्षेत्र एक दूसरे से भिन्न रूप से जुड़ हुआ है। रीति रिवाजों, भाषा और विवाह संबंधों ने इस एकता को और भी पक्की नींव पर खड़ा कर दिया है। उत्तर प्रदेश के झांसी, बांदा, हमीरपुर, चित्रकूट, महोबा,ललितपुर और जालौन के अलावा इस क्षेत्र में ग्वालियर, दतिया, भिंड, मुरैना, शिवपुरी, सागर, छतरपुर, टीकमगढ़, अशोकनगर, पन्ना, दमोह, सतना, गुना जैसे जिले भी शामिल हैं। वैसे बुंदेलखण्ड के अनेक बुद्धिजीवियों का तो मानना है कि इस क्षेत्र के अंतर्गत उत्तर प्रदेश के सात जिले तथा, मध्य प्रदेश के 21 जिले आते हैं। इसी आधार पर कुछ लोगों ने बुंदेलखण्ड राज्य की स्थापना का आंदोलन भी प्रारंभ किया है। यदि कोई इस तर्क से न भी सहमत हो तो भी इस तथ्य से कोई इंकार नही कर सकता है के उत्तर प्रदेश तथा मध्यप्रदेश के योजना आयोग द्वारा घोषित बुन्देली पिछड़े क्षेत्र को मिला कर बुंदेलखण्ड राज्य गठित किया जा सकता है। कभी अंग्रेजों की कूटनीति का शिकार बना बुन्देलखण्ड खण्ड-खण्ड होकर उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के रहनुमाओं के आगे भीख का कटोरा लेकर खड़ा है। बुन्देलखण्ड वासियों को यह समझ नहीं आ रहा है वह क्या करें। सत्ता की चेरी प्राप्त करते ही बुन्देलखण्ड के तथाकथित जन नेता मंत्री पद के मोह पाश में ऐसे जकड़ जाते है कि अपनी मिट्टी का कर्ज उतारना तक भूल जाते है। भोजपुरी बोलने वाले लालू यादव से लेकर नितीश कुमार को अपनी मातृ भाषा बोलने में तनिक भी शर्म नहीं आती है लेकिन बुन्देली राजनेता दिल्ली जाते ही अंग्रेजी जुबान बोलने लगते है और अंग्रेजी कल्चर में फसकर यहाॅ के बेवस भूखे लोगों से किनारा करने की रणनीति मंे लग जाते है। आश्चर्य जब होता है कि देश और प्रदेश के ग्रामीण विकास मंत्रालय पर काबिज प्रदीप जैन आदित्य ग्रामीण विकास राज्य मंत्री भारत सरकार, गोपाल भार्गव ग्रामीण विकास मंत्री मध्यप्रदेश सरकार निवासी सागर बुन्देलखण्ड, दद्दू प्रसाद ग्रामीण विकास मंत्री उत्तर प्रदेश सरकार निवासी चित्रकूट के होने के बावजूद भी बुन्देलखण्ड के 38 प्रतिशत लोग पलायन करने को विवश हो जाते है तो इनके मंत्री बनने का क्या औचित्य रह जाता है। जो मंत्री अपने क्षेत्र में पलायन न रोक सके उसके मंत्री बने रहने से अच्छा तो यह होता कि बुन्देलखण्ड के भाग्य में ग्रामीण विकास मंत्रालय ही नही लिखा जाता। बुन्देलखण्ड में नरेगा के नाम पर हुई लूट से ग्रामीणों में व्याप्त आक्रोश लालगढ़ की तरह न फूट पड़े यह ध्यान रखना होगा। राहुल गांधी ने बुन्देलखण्ड के लोगांे आश्वासनों की चूसनी से जो सपना दिखाया है वह खण्ड-खण्ड बुन्देलखण्ड के रहते पूरा नहीं हो सकता है। इसी बात को लेकर सेना की आधी वर्दी पहनकर संघर्ष की राहांें पर उतरी बुन्देलखण्ड विकास सेना बुन्देलखण्ड के ग्रामीण अंचलों में जितनी तेजी के साथ अपना सदस्यता अभियान चला रही है उससे लगता है कि बुन्देलखण्ड में राज्य आन्दोलन एक नये रंग के साथ शुरू होने वाला है।
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सुरेन्द्र अग्निहोत्री
राजसदन 120/132 बेलदारी लेन, लालबाग, लखनऊ।
मोबाइलः- 9415508695
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