(Story) अब शीलू भी होगी ओछी राजनीति का शिकार

... तो फिर शीलू भी होगी ओछी राजनीति का शिकार !


आशीष सागर
(प्रवास) बुंदेलखंड
  • आरोपी विधायक का डीएनए नही बल्कि नार्को टेस्ट किया जाय
  • तमाम राजनीतिक दल तलाश रहे निषाद समुदाय मे अपना वोटबैंक
  • डाक्टरी परीक्षण मे क्यो नही हुई दुराचार की पुष्टि
  • आखिर क्यों शहबाजपुर के प्राथमिक विद्यालय के हेडमास्टर ने दी जान की दुहाई
  • दुराचार की शिकार पीड़िता शीलू का मीडिया ने क्यों नही लिखा काल्पनिक नाम ?

बुन्देलखण्ड वैसे तो किसी न किसी विवाद, खबर के चलते सुर्खियों में बना रहता है और कभी प्रदेश की राजनीति के सिपहसलार के गृह जनपदो के दौरों को लेकर चर्चा मे बना रहता लेकिन बीते चार पखवारे से भी अधिक मीडिया खबर की सुर्खियां और गाहे बगाहे घटित हो रही दुराचार की घटनाओं मे नजीर बने बांदा जनपद के बहुचर्चित शीलू काण्ड ने तो देश आने वाली राजनीतिक परिदृश्य की स्पष्ट छवि व राजनेताओं के जन मुददो की तस्वीर भी स्पष्ट की है कि हमारे 1.5 अरब आबादी वाले भारत की आगामी दिशा और दशा क्या होगी।
मुख्य मुदद् की बात -

1. सपा ने कहा है कि आरोपी विधायक श्री पुरषोतम नरेश द्विवेदी की डीएनए जाचं की जाय तो असलियत का पर्दाफाश होगा व पुत्र मंयक द्विवेदी पर भी फर्जी तरीके से रिर्पोट दर्ज कराकर शीलू को चोरी के आरोप में जेल भेजे जाने के कारण एफ आई आर दर्ज कर जेल भेजा जाये और पिता पुत्र दोनो की डीएनए जांच करायी जाये। तो यहां पर यह सोचने की बात है कि आखिर कैसे होगी पुष्टि और सत्य की परख कि आरोपी कौन है क्योंकि पिता और पुत्र की डीएनए रिपोर्ट एक ही आती है। राजनीतिक दल कैसे साबित करेंगे की दुराचारी कौन है। बेहतर होता कि वे डीएनए नही बल्कि नार्को टेस्ट की सीबीसीआईडी, उ0न्यायालय, केन्द्र सरकार से मांग करते।

2. सपा सहित तमाम राजनीतिक दल तलाश रहे है शीलू पर निषाद बिरादरी का वोट बैंक आखिर क्योे नही इससे पूर्व सभी राजनीतिक दलो ने उठाये जनपद, मंडल,प्रदेश और देश में रोज ही घटने वाले बलात्कार के मुद्दे? शीलू के दुराचार की घटना के कुछ दिवस बाद ही चित्रकूट जनपद में एक मूक बधिर लडकी नाबालिक के साथ एक दबंग ने दुराचार किया तो फिर क्यो नही हुयी उस पर राजनीतिक बहस, धरना प्रदर्शन,आरोपो की बौछार व ओछी राजनीति की नौटंकी। यहां तक कि सामाजिक संगठन, मानवधिकार कार्यकर्ता भी साधे रहते है मौन चुप्पी।

3. शीलू को अगर वास्तविकता में न्याय की गुहार है तो माननीय सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट पर भरोसा होना चाहिये लेकिन क्यों की गयी उसके ही पिता - भाई, शीलू के द्वारा हाथो हाथ राजनीतिक दलो से दी गयी आर्थिक मदद की खैरात लेने की अगुवाई। न्यायालय स्वयं दिलाता पीडित को उचित मुवावजा, सामाजिक सुरक्षा व सम्मान। जेल में बंद होने से पहले शीलू विधायक के यहां से फरार होने के बाद 28 दिवस रज्जू पटेल कथित प्रेमी के साथ कहां थी और क्या करती रही, शीलू ने विधायक के घर से ले जाये गये मोबाइल द्वारा क्यों किये रज्जू पटेंल के नम्बर पर 150 से अधिक फोन काल्स जिसकी पुष्टि स्वयं सीबीसीआईडी ने दाखिल चार्ज शीट में की है।

4. डाक्टरी परीक्षण में भी नही आयी दुराचार होने की स्पष्ट रिपोर्ट क्या डाक्टरो पर सरकार का, राजनीतिक दलो का, जेलर - एसपी का दबाव था जब कि सरकारी मुलाजिम और भगवान का दूसरा रूप होते है डाक्टर। शीलू को उस दौरान हो रहे रक्त स्त्राव (ब्लीडिंग) उन निदो हुयी मासिक माहवारी के कारण भी या मानसिक तनाव के चलते हो सकती है। जिसे स्वयं मेडिकल साइंस प्रमाणित करता है। और माहवारी की पुष्टि भी पीडिता ने जेल में बंदी के दौरान कर्मचारियों से की थी।

5. आखिर क्यों शहबाजपुर ग्राम के प्राथमिक विद्यालय जहां की पीडिता छात्रा थी के हेडमास्टर ने मांगी है। प्रशासन से सुरक्षा और की है जान की हिफाजत की गुहार। क्यों वह बार बार कह रहा है कि उसे बयान बदलने व लडकी के जन्म तिथि में नाबालिक दिखाये जाने के लिये धमकाया जा रहा है जिससे आजिज आकर उसने विद्यालय मे जाना ही छोड दिया है।

6. एक कक्षा 4 पास लडकी को क्या यह न्यायोचित जानकारी हो सकती है कि सीबीसीआईडी व सीबीआई की जांच में क्या अंतर होता है। वह कौन है जो कर रहा है शीलू और उसके भाई संतू के दिमाग की पैरोकारी ।

7. पीडिता के जेल मे बंदी के दौरान प्रियंका नाम की महिला कैदी ने विद्यायक के आरोप वाले सभी खत लिखे लेकिन क्या एक कम साक्षर लडकी खत का एक एक शब्द पढकर प्रमाणिक रूप से यह बतला सकती है कि उसमे सही लिखा है या गलत फिर कैसे चंद रोज की परिचित महिला कैदी के कहने मात्र पर शीलू ने कर दिये खत में हस्ताक्षर और बतायी आप बीती।

8. कहां खो गया खबर पढकर बांदा आया कानपुर के कल्यानपुर निवासी राजेन्द्र शुक्ला पुत्र वीरेन्द्र शुक्ला सफाई कर्मचारी ब्लाक चैबेपुर। उसने ही किया था शीलू से विवाह का दावा जानकारो के मुताबिक एक दबंग राजनीतिक दल ने न सिर्फ उसे जान से मारने की धमकी दी बल्कि बुरी तरह मारा पीटा तो फिर क्यो नही छपी मीडिया में यह खबर।

9. शहबाजपुर की बेटी शीलू के प्रति निषाद समाज, गांव के ही बुजुर्ग लोग व्यक्त करते है उसकी भूमिका, अतीत के चरित्र पर शंका और बताते है शीलू के बचपन की कहानी व भाई, पिता को सर्वाधिक रूप से दोषी। विधायक के समर्थन में भी आरोपी की पत्नी के साथ लखनऊ के धरना प्रदर्शन में शामिल होते है उसके ही गांव के अपने लोग क्या उन्हे विधायक ने खरीद रखा है या फिर यह शीलू प्रकरण ही है। पैसा कमाने की राजनीतिक साजिश।

10. दुराचार की पीडित लडकी का काल्पनिक नाम खबरो में लिखा जाता है फिर चाहे वह इलेक्ट्रानिक चैनल हो या प्रिंट मीडिया यहां तक की पीडिता का चेहरा भी धूमिल किया जाता है। लेेकिन कानपुर के दिव्या कांड व शीलू के प्रकरण में ऐसा नही किया गया क्या यह महिला हिंसा नही है। या फिर इससे पीडिता की साख पर बट्टा नही लगता है। क्यो नही लिया इस मामले को कोर्ट ने संज्ञान क्या यह मीडिया की स्वतंत्रता का दुर उपयोेग नही है।

सभी तथ्यो व संदेहास्पद पहलुओ और सीबीसीआईडी की चार्ज शीट मे शीलू द्वारा बतलाये गये बलात्कार की कार्य योजना व अन्य विशेष बातो पर गौर करने के बाद तथा माननीय हाईकोर्ट में कुछ दिवस पहले ही डा0 नूतन ठाकुर की शीलू व दिव्या कांड में प्रदेश के आला पुलिस अधिकारियो की भूमिका वाली याचिका को खारिज करते हुये 20000 रू0 का अर्थदंड लगाया है साथ ही माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी अधिवक्ता हरीश साल्वे की दाखिल याचिका को नजरअंदाज कर स्वयं संज्ञान लिये गये प्रकरण में उन्हे सलाहकार वकील की भूमिका में रखा हैं। कहने वाली बात यह है कि अब जबकि आरोपी विधायक जेल में निरूद्ध है ऐसे में पीडिता को भारतीय संविधा, न्यायालय के निर्णय पर विश्वास रखते हुये और महिला की गरिमा को बरकरार रखकर स्वयं को राजनीति की ओछी बिसात पर बैठने से रोकना चाहिये। तमाम राजनीतिक दल द्वारा तत्कालीन सरकार पर लगाये जा रहे आरोप से सिर्फ देश की सम्प्रदायिक एकता को चोट पहुचती है ऐसे अवसरवादी जनप्रतिनिधियों को शीलू प्रकरण मे ही क्यो हर समय राजनीतिक मुद्दे उठाने चाहिये जिससे की दोहरे चरित्र वाले जनप्रतिनिधि संसद और विधान सभा तक ही न पहुच सके।

Comments

kya baat kahi hai dear desh ka 4th stambh bhi lagata hai ki bika hua hai aapkai khuley vichar is midia key logo ko pasand nahi aayaiga vidhayak rajniti ka shikar hua hai.