(News) किसान आत्महत्या पर खबर
किसान आत्महत्या पर खबर
केंद्रीय कृषि मंत्री राधा कृष्ण मोहन ने कहा कि देश में पिछले साल हुई 1400 किसानों की मौत के पीछे प्रेम-प्रसंग और नपुंसकता जैसे कारण रहे हैं। राज्य सभा में एक प्रश्न (पिछले साल किसानों की मौत के पीछे क्या कारण रहे) के लिखित जवाब में उन्होंने कहा, श्नैशनल क्राइम रिकार्डस ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक किसानों की आत्महत्या के पीछे पारिवारिक कारण, बीमारी, नशा, दहेज, प्रेम-प्रसंग और नपुंसकता जैसे कारण हैं। उन्होंने देश में एक भी मौत को कर्ज से इंकार किया है! नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरों के अनुसार वर्ष 2009 में यहां 568ए 2010 में 583ए 2011 में 519ए 2012 में 745ए 2013 में 750 और दिसंबर 2014 तक 58 किसान आत्महत्या किए हैं। वहीं वर्ष 2015 अगुवाई ही किसान आत्महत्या के साथ हुई। ऐसे दोयम दर्जे के केन्द्रीय मंत्री को बुंदेलखंड और विदर्भ के गाँवो में लेकर आना चाहिए किसान संघठन के सभी साथियों को जहाँ किसानो का कफन और उनके अनाथ बच्चे , बेवाये मौजूद है. बानगी के लिए बाँदा के वो अनाथ बालक भी जो आज मुझे एक हफ्ते से इसलिए फोन कर रहे है कि भैया दो हजार रूपये दे दो बहन की स्कूल की ड्रेस ध् किताबे लानी है पंचमुखी उच्तर माध्यमिक,बघेलाबारी में अंतिमा यादव का दाखिला करवाना है छठवीं में मगर कमबख्त मै हूँ कि शर्म से मोबाइल नही उठा पा रहा...आये केन्द्रीय मंत्री इनके , इन जैसे दर्जन भर किसान के घर ले चलता हूँ ! फिलहाल ये केस रिपोर्ट की पेशगी ...
ऐ खुदा ! रुखसाना मरने पर आमादा क्यों है?
तुझे जीना होगा रुखसाना। बांदा के शेखनपुर गांव की रुखसाना खेती में नुकसान के बाद दाने-दाने को मोहताज।
दो पल को इस तस्वीर पर आपकी निगाहें टिकी रह जाएं, तो फिर इस रिपोर्ट के मायने खुद-ब-खुद खुलते चले जाएंगे। रुखसाना अपनी बेटियों के साथ न जाने किन चिंताओं में पड़ी है। बाँदा जिले के नरैनी तहसील के शेखनपुर गाँव की रुखसाना अकेली अपनी दुनिया को सहेजने और संवारने की कोशिशें कर रही हैं। पति इरशाद खां अल्लाह को प्यारे हो गए हैं। और अल्लाह ही जाने रमजान के पाक महीने में इबादत के बाद भी राहत की नेमत घर तक क्यों नहीं बरसी है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री साहेब, देखिये न रुखसाना अब इस समाजवादी दुनिया में नहीं रहना चाहती ! भूख-गरीबी और जवान बेटियों के ब्याह की चिंता उसको जीने नहीं दे रही! आलम ये कि रुखसाना के जेहन में ‘पूरे परिवार के साथ खुदकुशी’ जैसे नामुराद खयाल भी आने लगे हैं ! वो खुले आम अब इसे अपने गांव के लोगों के बीच बयां भी कर रही है।
ऐसी खबरें अखबार में छपी तो मेरे कदम गत 22 जुलाई को शेखनपुर की तरफ बढ़ चले। जेहन में एक ही सवाल था-क्या संवेदना और समाज का रिश्ता इतना बिखर चुका है कि एक बेवा अपने परिवार के साथ सिर्फ इसलिए मरना चाहती है कि आज उसका कोई रहबर नहीं है! गाँव से लेकर जिला मुख्यालय तक फैले समाजसेवा के कुनबे, ग्राम की महिला प्रधान और प्रशासनिक जमात में क्या किसी को इस ‘आवाज’ में लिपटा दर्द महसूस नहीं होता? क्या हमारा फर्ज बस इतना कि रुखसाना को खबर बनाकर छोड़ दिया जाये? तमाम तरह की आंतरिक जिरह के बीच उलझा मैं गाँव पहुंचा।
रुखसाना के शौहर इरशाद पत्नी और बूढ़े पिता के भरोसे किसानी छोड़कर गोवा मजदूरी के लिए चले गये। 2 बीघा जमीन में परिवार ने खेती की। इरशाद का सपना एक ही था- ”फसल बेहतर हुई तो अबकी समीम बानो और नसीन बानो का निकाह करूँगा!’ वो सपने गुनता मजदूरी करता रहा और इधर खड़ी फसल पर तेजाब बनकर ओला और पानी बरसा तो सपनों के साथ परिवार की खुशियाँ भी खाक हो गयीं! पूरी खेती में महज 6 मन (करीब 237 किलो) अनाज हुआ!
मुआवजा अभी तक मिला नहीं क्योंकि लेखपाल और पटवारी ने ऐसी रिपोर्ट ही नहीं लगाई! कहते हैं 500 रुपया जब तक इनकी जेब में न डालो, मुआवजे की रिपोर्ट न तो बनती है, न आगे खिसकती है।
रुखसाना ने फसल तबाही की बात दबे गले से इरशाद को बता दी। परदेस में मजदूरी कर रहे किसान को बड़ा झटका लगा, दिल का दौरा पड़ा और सब कुछ खतम ! इरशाद अल्लाह को प्यारा हो गया। पहले से 4 बेटियों और दो पुत्रों से लदी रुखसाना को जिस वक्त ये ख़बर लगी, उसके पेट में इरशाद की आखरी निशानी सांसें लेने लगी थी। एक और जिंदगी अपने अँधेरे आज और कल का इंतजार मानो गर्भ में ही कर रही हो। जब मैंने इस बारे में बात की तो शर्मिंदा होकर अपना पल्लू पेट से लगा लिया!
22 अप्रैल 2015 को इरशाद का इंतकाल हुआ। खेतिहर जमीन अभी ससुर के नाम है। एक देवर है जो गूंगा है। समीम, नसीन बानो, सनिया, दानिस और सेराज की अम्मी रुखसाना आज पूरे परिवार के साथ जान देने पर आमादा है। अफसोस ये कि जब रुखसाना के लिए मैंने नरैनी उपजिलाधिकारी से बात करनी चाही तो उन्होंने समाचार पत्र फेंकते हुए कुछ भी कहने से मना कर दिया!
देश के प्रधानमंत्री मोदी जी और मुखिया अखिलेश जी देख लें अपने साम्राज्य की दम तोड़तीं ये तस्वीरें हो सकता है उनकी नजर भर से बेजान सूरतों में थोड़ी जान आ जाए।
By: Ashish Sagar