लोकसभा सीट के लिए प्रतिद्वन्दियों की संख्या में वृद्धि
लोकसभा सीट के लिए प्रतिद्वन्दियों की संख्या में वृद्धि
संसदीय चुनाव के आंकड़ों पर नजर दौड़ाने पर पता चलता है कि प्रत्येक लोकसभा सीट के लिए प्रतिद्वन्दियों की संख्या लगातार बढ़ती रही है। उदाहरण के लिए वर्ष 1977 के छठे संसदीय चुनाव तक प्रत्येक लोकसभा सीट के लिए औसतन 3 से 5 प्रतिद्वन्दी ही खड़े हुआ करते थे। वर्ष 1952 के पहले लोकसभा चुनाव के लिए 489 सीटों के लिए 1874 उम्मीदवार थे यानि कि, औसतन 4.67 प्रतिद्वन्दी प्रति सीट थे। वर्ष 1957 में 494 सीटों पर 1519 उम्मीदवार थे यानि कि, औसतन 3.77 प्रति सीट। वर्ष 1962 में 494 सीटों के लिए 1985 प्रतिद्वन्दी थे यानि की औसतन 4.02 प्रतिद्वन्दी प्रति सीट। वर्ष 1967 में संसद की सीटों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई- यह बढ़कर 520 हुई और इनके लिए 2369 प्रतिद्वन्दी खड़े हुए यानि कि, औसतन 4.56 प्रतिद्वन्दी प्रति सीट।
वर्ष 1971 में 518 सीटों के लिए चुनाव हुए जिनके लिए 2784 प्रतिद्वन्दी थे और औसतन 5.37 उम्मीदवार प्रति सीट थे। वर्ष 1977 में एक बार फिर संसदीय सीटों की संख्या में वृद्धि होने से इनकी संख्या 542 हो गई जिससे प्रति सीट प्रतिद्वन्दियों की संख्या घटकर 4.50 तक आ गई क्योंकि 542 सीटों के लिए 2349 प्रतिद्वन्दी ही थे।
वर्ष 1980 में सातवीं लोकसभा के चुनावों के समय प्रति सीट तीन से पाँच प्रतिद्वन्दियों की संख्या के इस रुझान में बदलाव आया। इस वर्ष 542 सीटों के लिए 4629 प्रतिद्वन्दी थे जिसके फलस्वरूप प्रति सीट प्रतिद्वन्दियों की संख्या औसतन 8.75 रही।
प्रतिद्वन्दियों की संख्या में उत्तरोतर बढ़ोतरी के कारण प्रति सीट प्रतिद्वन्दी की औसत संख्या में वृद्धि हुई पर वर्ष 1996 में अचानक इस संख्या में अस्वभाविक बदलाव देखा गया। इस वर्ष 543 सीटों के लिए प्रतिद्वन्दियों की संख्या 13,952 तक पहुंच गई और प्रति सीट प्रतिद्वन्दियों की औसत संख्या 25.69 हो गई, जो कि वर्ष 1991 के आम चुनाव में केवल 16.38 ही थी।
भारत के निर्वाचन आयोग ने जमानत की राशि 500 रूपये से बढ़कार 10,000 रूपये कर दी जिससे वर्ष 1998 के लोकसभा चुनाव में प्रति सीट प्रतिद्वन्दी की संख्या में 8.75 तक कम हुई। एक लंबे अर्से के बाद प्रतिद्वन्दियों की कुल संख्या 4750 हो गयी। वर्ष 1999 के आम चुनाव में प्रतिद्वन्दियों की संख्या में मामूली वृद्धि हुई और यह 8.56 उम्मीदवार प्रति सीट के औसत के साथ 4648 उम्मीदवार हो गई। वर्ष 2004 में प्रतिद्वन्दियों की कुल संख्या 543 संसदीय सीटों के लिए 5000 से अधिक, यानि 5435 तक पहुंच गई। इससे प्रति सीट प्रतिद्वन्दी की औसत संख्या 10 प्रतिद्वन्दी प्रति सीट तक पहुंच गयी।
वर्ष 2009 के आम चुनाव में 543 सीटों के लिए 8070 प्रतिद्वन्दियों ने भाग लिया जिससे प्रति सीट प्रतिद्वन्दी की औसत संख्या तेजी से 14.86 तक बढ़ी।
नीचे दिए गए ग्राफ में स्पष्ट है कि प्रति सीट प्रतिद्वन्दी की औसत संख्या वर्ष 1952 के बाम चुनाव की तुलना में उत्तरोत्तर बढ़ा है।
स्रोत:- भारत का निर्वाचन आयोग
वर्ष 1957 के आम चुनाव तक कुछ संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों से 2
या 3 सीटों के लिए प्रतिनिधियों का चयन की गया।
Courtesy : PIB
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