History of Bundelkhand Ponds And Water Management - बुन्देलखण्ड के तालाबों एवं जल प्रबन्धन का इतिहास : जालौन जिले के तालाब (Ponds of Jalaun)
History of Bundelkhand Ponds And Water Management - बुन्देलखण्ड के तालाबों एवं जल प्रबन्धन का इतिहास
जालौन जिले के तालाब (Ponds of Jalaun)
तालाबों के निर्माण की आवश्यकता, क्षेत्र की भौमिक संरचना के आधार पर निश्चित की जाती है। पहाड़ी, पथरीली, राँकड़, ढालू, ऊँची, नीची भूमि में जल-संग्रह की अधिक आवश्यकता होती है। परन्तु समतल मैदानी, कछारी, काली मिट्टी वाले भूक्षेत्रों में कृषि के लिये कम पानी कती आवश्यकता होती है, जिस कारण वहाँ तालाब कम ही होते हैं। ऐसे क्षेत्रों में नगरों, कस्बों एवं ग्रामों के किनारे, धार्मिक-सांस्कृतिक कार्य सम्पन्न करने, दैनिक निस्तार क्रियाओं के निष्पादन, नहाने-धोने के लिये कच्चे मिट्टी के तालाब बना लिये जाते हैं, यदि नदियाँ-नाले बस्ती से दूर होते हैं तो ही।
जालौन जिला यमुना, बेतवा, पहूज, क्वारी एवं सिन्ध नदियों का मिलन क्षेत्र है। यह नदियाँ जगम्मनपुर-रामपुरा के पास पचनदा पर मिलती हैं। इन नदियों के भारी भरकम भरके, खन्दक एवं कटानें (RAVINS) हैं। नौंनी एवं मैलुंगा जैसी छोटी-छोटी नदियाँ ऐसे ही निर्मित हुईं हैं। जिला जालौन में निम्नांकित प्रसिद्ध सरोवर हैं-
माहिल सागर, उरई-चन्देल काल में उरई, पड़िहार सामन्त माहिल का क्षेत्र था। माहिल महोबा के चन्देल राजा परमाल देव का साला था, जिसने उरई नगर के मध्य में, झाँसी-कानपुर मार्ग पर, अपने नाम पर विशाल सरोवर बनवाया था।
ऐसी कहावत प्रचलित है, “उद्दालक की तपस्थली, उरई है अब नाम। राज मार्ग के बगल में सरवर ललित ललाम।।” इस तालाब में कमल खिले रहते हैं। तालाब के बाँध पर कजलियों का मेला लगता है। बाँध पर हनुमान मन्दिर है।
टिमरों की बँधियाँ(Timron ki Bandhiyan)- उरई के दक्षिण में 15 किलोमीटर की दूरी पर टिमरों ग्राम हैं, जहाँ पानी के बारे में यह कहावत है-
बावन कुआँ, चौरासी ताल।
तोउ पै टिमरों पै परो अकाल।।
अर्थात टिमरों में किसानों ने पानी की अपनी स्वयं की व्यवस्था के लिये 52 कुएँ और 84 बँधियां बना रखी हैं।
इटौरा का तालाब(Pond of Itaura)- इटौरा को गुरू का गाँव कहा जाता है। यहाँ एक जन-निस्तारी तालाब है। तालाब के बाँध पर गुरू रूपन शाह का मन्दिर है। मुगल सम्राट अकबर ने इसका नाम अकबरपुर रख दिया था।
कौंच का सागर तालाब- कौंच का सागर तालाब मराठा प्रबन्धक (सूबेदार) गोविन्द राव का बनवाया हुआ है। इस तालाब में गणेश जी का विसर्जन होता था।
चौड़िया (बैरागढ़) तालाब(Chaudiya Bairagarh Pond) कौंच- यह तालाब सन 1181-82 ई. में पृथ्वीराज चौहान के सामन्त चौड़ा (चामुण्ड राय) ने अपनी चौहान सेना के जल प्रबन्धन हेतु बनवाया था, जो 50 एकड़ क्षेत्र में था। तात्पर्य यह कि तालाब पृथ्वीराज चौहान के महोबा पर आक्रमण करने के वर्ष बना था। बैरागढ़ का मैदान युद्ध क्षेत्र था।
चन्द कुआँ, कौंच (Chand Kuwan Kaunch)- पृथ्वीराज चौहान की सेना के साथ चन्दबरदाई भी थे। उन्होंने अपने नाम पर कौंच में यह चन्द कुआँ बनवाया था।
सन्दल तालाब, काल्पी- काल्पी में यमुना नदी प्रवाहित है, जहाँ कभी जल संकट नहीं होता रहा है। फिर भी ग्राम के मध्य में एक छोटा सन्दल तालाब था, जो पोखर के रूप में रह गया है।
Courtesy: डॉ. काशीप्रसाद त्रिपाठी