(Report) बदहाल केन के निशाने पर बुन्देलखण्ड

बदहाल केन के निशाने पर बुन्देलखण्ड

धरती में बढ़ते तापमान, प्राकृतिक ऋतु असंतुलन, वैश्वविक भूमण्डलीकरण से उपजी जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग- ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के कारण हमारे आस-पास ही नहीं अपितु समग्र विश्व की जलवायु प्रभावित होने के उभरते संकेत पर्यावरण विद्, भूगर्भ जल वैज्ञानिकों एवं समाज शास्त्रियों के शोध अध्ययन में लगातार आ रहे हैं। इन संकेतों की समझ, समय रहते सचेत होना और उनके प्रकल्पों पर कार्य करना ही सम्भावी समाधानों की हिस्सा बन सकता है। ऐसी ही उपकल्पना का आधार ये मंथन-चिंतन है।

वर्तमान समय मे बुन्देलखण्ड भू-भाग के अन्तर्गत सृजित परिस्थितियों पर गौर करें तो ऋतु असंतुलन से उपजे अन्तमुर्खी आकाल से असमय मौते, आत्म हत्यायें, भुखमरी और कर्ज की यात्रा में सुरताल करते हतास किसानों के साथ-साथ आम जन, नागरिक रोग ग्रसित जल प्रदूषण, शहर के ठोस अपशिष्ट डम्प करने, 75 प्रतिशत तालाबों पर जारी अतिक्रमण व खुले में शौच निपटान के साथ बांदा जनपद की एक मात्र जल धारा जो कि उत्तर एवं मध्य विन्ध्य क्षेत्र बुन्देलखण्ड का एक मात्र जल स्रोत है के तटों पर अधजले शवों, नगर पालिका परिषद द्वारा शहर के कूड़े कचरे, प्लास्टिक, जैव रसायनिक तत्व, मांस उत्पादकों के बचे हुए अपशिष्ट पदार्थों के बहाव को जारी किये हुए है के चलते बढ़ते हुए जल प्रदूषण से तबाही की ओर अग्रसर है। ग्रामीण क्षेत्रों से हुए पलायन के कारण बढ़ता हुआ शहरीकरण, जनसंख्या आधिक्य भी इसका एक कारण है। इस क्षेत्र को सम्पूर्ण देश में सर्वाधिक जल संकट वाले भूगर्भीय जल आपदा क्षेत्र का दर्जा प्राप्त हुआ है। इसे रोकने के दीर्घकालिक उपायों और नव पीढ़ी के साथ धरती की अस्मिता को बचाने की साझी पहल समाज, सरकार, बाजार का नैतिक दायित्व है, ऐसा हमारा एक मत है। इसी क्रम में ‘‘बदहाल केन के निशाने पर बुन्देलखण्ड’’ रिपोर्ट के साथ आंखो देखी, तथ्य परख जन सूचना अधिकार 2005 से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर निम्न प्रतिवेदन प्रेषित है।

चित्रकूट धाम मण्डल बांदा मुख्यालय में शहर के अन्तर्गत आने वाले लगभग सभी तालाब अतिक्रमण और प्रदूषण का शिकार हैं। भू-गर्भ जल निदेशालय की रिपोर्ट के अनुसार बांदा के तालाबों का 75 प्रतिशत प्रदूषण शहर के ठोस अपशिष्ट डम्प करने, मांस उत्पादकांे के बचे हुए अपशिष्ट तालाबों, नदियांे में निस्तारित करने, खुले मंे शौच करने हेतु उपयोग मंे लाने की वजह से और रन आॅफ आदि से प्रदूषित हैं। नवाब टैंक, प्रागी तालाब, छाबी तालाब, कन्धरदाष तालाब, बाबा तालाब, परशुराम तालाब, मानिक कुईंआ जैसे प्रमुख जलस्रोत आज डूबने की कगार पर हैं। इनमंे जैव रसायन आक्सीजन 6.5 मिलीग्राम से 15.5 मिलीग्राम तक प्रति लीटर है। वनस्पति और जीव जन्तु के लिए भू-जल की कमी से नगर के पर्यावरण पर प्रतिकूल असर हुए हैं। रिपोर्ट में यह स्पष्ट है कि बुन्देलखण्ड विन्ध्य पठारी क्षेत्र में स्थित नागर क्षेत्र बांदा दक्षिणी पुनिनसुलर क्षेत्र में सेंडीमेन्ट्स शैल समूह के अन्तर्गत आता है, यहां के स्टेªटा की डिस्चार्ज क्षमता काफी कम है। जबकि प्रदेश में सबसे अधिक गहराई वाला जल स्तर क्षेत्र बेतवा और जमुना नदियों की घाटियों में पाया जाता है। इसमें बांदा, हमीरपुर, जालौन, झांसी, इटावा, आगरा और इलाहाबाद शहर स्थित हैं। बुन्देलखण्ड में पानी की समस्या नई नहीं है, यहां भू-गर्भ जल बहुत सीमित हैं, क्योंकि धरती की नीचे की आन्तरित बनावट ऐसी है कि बहुत बड़ा जल का स्टोर नहीं हो सकता है। स्थिति तब और भयावह हो जाती है कि जब हम लगातार भू-गर्भ जल का दोहन करते आ रहे हों और उसके रिचार्ज की उचित व्यवस्था के समाधान हमारे पास उपलब्ध नहीं है। साथ ही लगातार कम होती बारिश में हमारे लिए संकट खड़ा कर रही है। केन जनवरी-फरवरी माह में ही मेन पुल की नीचे सूखने की स्थिति में हो जाती है, गर्मी के पांच महीनों मार्च से लेकर जुलाई तक यहां पानी नगण्य स्थिति में व्याप्त रहता है, और पारम्परिक जलस्रोत सूख जाते हैं। जलस्तर उठाने के लिए केन्द्र और राज्य सरकारों की तमाम योजनायें बुन्देलखण्ड पैकेज, अन्य कार्यक्रमों के जरिए चलायी जाती हैं लेकिन उनसे अभी तक स्थाई समाधान के विकल्प तैयार नहीं हो सके हैं। पिछले छः वर्षों से प्रतिवर्ष बांदा जनपद में कम होती वर्षा सूखे, आकाल का प्रमुख कारण है। सन् 2003 से लेकर 2009 तक का औसत वर्षा चार्ट नीचे दिया गया है।

वर्ष औसत वर्षा (लगभग) वर्षा के दिन प्रतिवर्ष
2003 1044.88 MM 68
2004 816.60 MM 63
2005 933.30 MM 53
2006 656.70 MM 45
2007 358.50 MM 43
2008 946.50 MM 78
2009 (अभी तक) 277.30 MM 22

बांदा जनपद में निरन्तर गहराता हुआ जल संकट व्यापक जन जागरूकता व सामूहिक प्रयासों के आभाव स्वरूप ही सृजित हुआ है। परिणाम स्वरूप मंे बुन्देलखण्ड में ज्यादातर क्षेत्र अंसिचित होने के कारण बिना बुआई के रह जाता है, जिसके कारण किसान कर्ज के बोझ तले विभिन्न बैंकों द्वारा शोषित होता है। एक मोटे अनुमान के मुताबिक 5 हजार लोग प्रतिदिन प्रदूषित पानी से उपजी बिमारियों, संक्रमण के कारण मौत के मुंह मंे समा जाते हैं। कुछ क्षेत्र में हाथ-पैरों में लकवा, आंखों की अन्धता, शारीरिक दुर्बलता, रक्त की कमी, पथरी और बवासीर (पाइल्स) से ग्रसित रहते हैं। यहां जल के उचित प्रबन्धन, पानी के मूल्य को समझने की आवश्यकता है।

जीवन जीने के लिए 3 चीजें अति आवश्यक हैं- हवा (आक्सीजन), जल, उपजाऊ मिट्टी जिस पर हम भोजन पकाते हैं, कपड़ा और मकान के लिए आवश्यक सामग्री उत्पन्न कर सकते हैं किन्तु बुन्देलखण्ड विन्ध्य क्षेत्र के प्रमुख सातों जनपद क्रमशः बांदा, चित्रकूट, महोबा, झांसी, ललितपुर, जालौन और हमीरपुर में प्राकृतिक बाजारीकरण को बढ़ावा देने के नाते पहाड़ों का खनन, वन सम्पदा का दोहन, उनमें प्रवास करने वाले जीव जन्तुओं का पुनर्वास नहीं होना ही उनकी विलुप्तता का एक मात्र कारण है, साथ ही इन क्षेत्रों में स्थित वन्य जीव विहार भी आज तबाही की स्थिति में है। उदाहरण स्वरूप चित्रकूट जनपद में स्थित रानीपुर वन्य जीव विहार की तत्कालिक परिस्थितियां देखी जा सकती हैं। जहां वन विभाग, राज्य और केन्द्र सरकारों के करोड़ो रूपये खर्च होने के बाद भी प्राकृतिक जल स्रेातों, वन्य जीव जन्तुओ, औषधियों, रिसर्च सेन्टर को नहीं बचाया जा सका है। समाचार पत्रों में नित प्रति खत्म हो जायेगा बुन्देलखण्ड, पानी को बन्धक बनाने की साजिश में शामिल केन-बेतवा लिंक की खबरें आम जन के चिंता का कारण है। गिरता हुआ जलस्तर, उसके संरक्षण की अनदेखी, प्रशासनिक कुप्रन्बधन होने से आने वाले 20 वर्षों में बुन्देलखण्ड के 80 प्रतिशत जलस्रोत पूरी तरह खत्म हो जायंेगे।

एक प्रमाण के अनुसार वे चन्देलकालीन महोबा जनपद के तालाब जो कभी पानी की नजीर हुआ करते थे और जिन्हे सागर की उपमा दी जाती थी। जैसे- मदन सागर, कीरत सागर, मोतीसागर आदि जिनसे पूरे महोबा की जनता जल प्राप्त करती थी वे भी आज सूख चुके हैं, जिनका हाल फिलहाल समाधान नजर नहीं आता है। इनको बचाने के लिये करोड़ों रूपये की परियोजनायें कागजों में जिला ग्राम विकास अभिकरण के दस्तावेज स्वरूप दर्ज हो चुकी हैं।

बांदा जनपद में ही प्रत्येक वर्ष जल प्रदूषण के कारण कालरा, पीलिया, अतिसार (पेचिस), टायफायड, मलेरिया, फ्लोरोसिस, हाथी पांव जैसे रोग आम चलन में है। 10 में से 5 परिवारों के बीच ग्रामीण परिवेश में इन्हे देखा जा सकता है। जल के लिए सर्वाधिक विवाद, मुकदमें बुन्देलखण्ड के बांदा और महोबा जनपदों में ही होते हैं। जिनमें गोली कांड, हरिजन एक्ट, गैंगस्टर आम बात है।

विदित हो की पिछले 6, 7 वर्षों से बांदा जनपद सहित पूरे बुन्देलखण्ड मंे सूखा, कोहरा, ओलावृष्टि आदि असमायिक आपदाओं, मौसम की मार से कृषि बरबाद हुयी है, जीविकोपार्जन के लिए दैनिक संसाधन जुटा पाने की असमर्थतता विचारों में और जमीनी हकीकत के साथ गरीब किसानों, मध्यम वर्गीय परिवारों में देखी जा सकती है। यही कारण है कि आज बुन्देलखण्ड भी कालाहाण्डी विदर्भ के साथ आकाल के अग्रणी सोपानों में रखा जाने लगा है। बांदा जनपद में ही बीत चुके छः महीने के अन्दर हेयरडाई से 350 आत्म हत्यायें हुयी हैं, जिनमें मनरेगा जैसी महत्वपूर्ण योजना भी खुदकुशी का मूक गवाह बन चुकी है। जहां मजदूरों को पगार नहीं मिलती, दलाली के चलते मुर्दों के जाब कार्ड बना दिये जाते हैं, मुआवजे के नाम पर अधूरे इन्दिरा आवास बनाये जाते हैं। वर्ष 2009-10 में रवि की 80 प्रतिशत फसल नष्ट हो चुकी है। किसानों के सामने बैंकों से लिए गये कर्ज को चुकाने की चिंता, जवान होती बेटी के हाथ पीले करने का दुखड़ा, बच्चों की आवश्यकताओं को पूरा करने की अधूरी ख्वाइस उनके जहन में बरकरार है। इसी आपाधापी के बीच केन्द्र और राज्य की सरकारे बुन्देलखण्ड को राजनीतिक मंच, दलित वोट बैंक की पनाह, राज्य बनाने की साजिश में शामिल कर लेती हैं, और उनके बीच अन्तर विवाद से अन्य छोटे छोटे समूह भी खड़े हो जाते हैं। शहर व ग्रामीण इलाकों में जहां लोगों ने जैट पम्प, ट्यूबेल, नलकूप से अथाह जलदोहन किया है वहीं तालाबों को गन्दे नालों में परिवर्तित करने का काम प्रशासन ने किया है। किसानों की प्रमुख मांगों में 10 हार्स पावर तक का फ्री विद्युत कनेक्शन सिंचाई हेतु, बैंकों से लिए गये कर्जे की माफी और ओलावृष्टि, कोहरे से तबाह फसल का मुआवजा प्रमुख है।

प्रभागी वन अधिकारी, बांदा वन प्रभाग से जनसूचना अधिकार के तहत पत्रांक संख्या 1979/26-1 जन सू0आ0/04.02.2010 के तहत मांगी गयी प्रमुख 17 बिन्दुओं की सूचनाओं से जो प्रति उत्तर वादी को प्राप्त हुये हैं के अनुसार बांदा जनपद में 1.21 प्रतिशत वन क्षेत्र है, 33 प्रतिशत वन क्षेत्र अनिवार्य है। इस वन प्रभाग में निम्न प्रकार के वन्य जीव पाये जाते हैं जैसे कि- हिरन, लकड़बग्घा, जंगली सुंअर, लोमड़ी, नीलगाय, सिंयार, चिंकारा (काला हिरन), तेन्दुआ, भेड़िया, बाज, गिद्ध इसके अतिरिक्त निम्न औषधियां भी उपलब्ध हैं। जैसे- सफेद मूसली, चितावर, गुग्गल, ब्राम्ही, गुड़मार, कलिहारी, पिपली, सर्पगन्धा, अश्व गन्धा, जटामांसी, गिलोय, दुद्धी, मरोड़फली, पापड़, हर सिंगार, धतूरा, जमरानी आदि पर्यावरण संतुलन में सभी वन प्राणियों, वनस्पतियों की भूमिका होती है, तथा उसके नष्ट होने से ग्लोबल वार्मिंग का खतरा है, खनन से विस्थापित वन प्राणियों के पुनर्वास की कोई कार्यवाही वन प्रभाग द्वारा नहीं की गयी है ऐसा प्रभागी वन अधिकारी का कहना है साथ ही दुर्लभ प्रजाति के काले हिरन (चिंकारा) की संख्या दिनांक 01.06.2009 की गणना के अनुसार 59 है। विभाग के इनके संरक्षण की अभी तक कोई योजना नहीं चलाई है जिसकी वजह से ग्रामीण क्षेत्रों में शिकारियों, तस्करों, मांस उत्पादकों द्वारा इनका अवैध शिकार किया जा रहा है। उक्त के अतिरिक्त बुन्देलखण्ड के सातों जनपदों में वन जैव सम्पदा से सम्बन्धित जन सूचनायें भी वादी ने बुन्देलखण्ड जोन के प्रमुख वन संरक्षक, झांसी से मांगी हैं जो अभी तक अप्राप्त है।

जल प्रदूषण से भयंकर विनाश:-

रिसर्च फाउन्डेशन फाॅर सांइस टेक्नालाॅजी एण्ड इकोलाजी, मंथन 2005 साउथ एशिया नेटवर्क आन डैम्प्स, रिसर्च एण्ड पीपुल जनवरी 2005 नई दिल्ली के सर्वेक्षण मुताबिक जहां एक ओर केन-बेतवा लिंक पारिस्थतिकीय आपदा की संज्ञा दी गयी है वहीं इससे उत्पन्न दुष्परिणामों का अध्ययन विस्तृत रूप से किया गया है। संक्षेप में उनका बिन्दुवत् उल्लेख है।

1:- जमीन, जंगल व जैव-विविधता पर दुष्प्रभाव।
2:- बांधों व नहर निर्माण के कारण विस्थापन।
3:- पारम्परिक कृषि का विलोपन।
4:- बाढ़ व सूखे को बढ़ावा।
5:- मछुवारांे एवं तालाबों पर प्रभाव।
6:- पारस्परिक सम्बन्धों संबंधों में दरार के साथ सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक भावनाओं पर कुठाराघात।
7:- प्रमुख दस गांवों के 8,850 निवासियों का पलायन, राष्ट्रीय पन्ना नेशनल बाघ पार्क का डूबना आदि।

केन नदी:-

केन नदी, बेतवा की तरह उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश दोनों राज्यों की नदी है। इसका उद्गम स्थल मध्य प्रदेश का जनपद जबलपुर है। केन की कुल लम्बाई यमुना में मिलने के स्थान तक 427 किलोमीटर है। जिसमें 292 किलोमीटर मध्य प्रदेश, 84 किलोमीटर उ0प्र0 की सीमा में आता है, जबकि 51 किलोमीटर दोनों राज्यों की सीमा के अन्तर्गत है। केन नदी यमुना से चिल्ला गांवों के पास उ0प्र0 के निकट केन, बेतवा, घाघरा के साथ संगम बनाती है। जिसमें केन सबसे कम पानी वाली छोटी नदी है। यह मध्य प्रदेश के जबलपुर, सागर, दमोह-पन्ना, सतना, छतरपुर और रायसेन जिले के साथ बुन्देलखण्ड के विन्ध्य क्षेत्र बांदा, हमीरपुर में बहती है, जो कि यहां की प्राकृतिक जलधारा और पेयजल का साधन है। केन की सहायक नदियां अलेाना, वीरना, सोनार, मीरहसन, श्यामरी, बन्ने, कुटरी, उर्मिल, कैल, चन्द्रावल हैं। नगर बांदा के अन्तर्गत आने वाले थाना कस्बा मटौंध, कबरई मंे पिछले एक दशक से ठेकेदारों, पट्टेधारकों की खदानों, क्रेशर से पहाड़ों पर खनन, वन सम्पदा का विनाश, विकास की वे नीतियां जो कि सड़क चैड़ीकरण के नाम पर ब्रिटिश कालीन वृक्षों को काटने में माहिर हैं के साथ जल, जमीन, जंगल से जुड़े अन्य मुद्दों जैसे-चकबन्दी, हथबन्दी के हवाले करके मेड़ों को बांटने और अपशिष्ट कार्बनिक पदार्थों के उत्सर्जन से कृषि की उपजाऊ मिट्टी को बंजर बनाने में कारगर हैं। परिणाम स्वरूप केन नदी बहुतायत मात्रा में प्रदूषित हो चुकी है।

उदाहरण स्वरूप नगर पालिका परिषद बांदा से वादी ने जन सूचना अधिकार पत्रांक संख्या 1394/नगर पालिका परिषद/2009-10 दिनांक 04.02.2010 के तहत जो जानकारी प्राप्त की है उन तथ्यों के बल पर यह कहा जा सकता है कि शहर में मात्र 20 जिनमें 7 छोटे (बकरा), 13 बड़े (भैंसा) काटने के लाइसेंस निर्गत किये गये हैं। इनके लिए शहर के खाईंपार मोहल्ले मंे एक स्लास्टर हाउस निर्मित है। ज्यादातर लाइसेंस धारकों की कागज के आधार पर दुकाने भी इसी क्षेत्र में मान्य की गयी हैं। लेकिन प्रशासनिक लापरवाही के चलते अवैध रूप से शहर के प्रमुख मार्गों जैसे- पदमाकर चैराहा, जवाहर नगर, पुलिस लाइन मार्ग आदि में मुर्गे, मछली, बकरे, कबूतर के गोश्त का खुलेआम व्यापार अमरयादित रूप से किया जाता है। गौरतलब है कि इन्ही मार्गों पर राजकीय महिला डिग्री कालेज, राजकीय बालिका इण्टर कालेज, एच0एस0एन0 शिक्षा निकेतन, बाजार प्रवेश मार्ग स्थापित है। जहां पिछले चार वर्षों मे मांस उत्पादन से नगर पालिका परिषद को लगातार राजस्व घाटा हुआ है वहीं इनसे बचे हुए अपशिष्ट, मांस कचरा के कारण तालाबों, नालों, केन नदी में जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण बढ़ा है। वर्ष 2006 से 2009-10 तक क्रमशः निम्न राशि नगर पालिका परिषद को राजस्व के रूप मे प्राप्त हुयी है- 48,107.00, 43,550.00, 39,138.00, 33.056.00 यह राशि दर्शाती है कि मांस व्यापार पूर्णता घाटेे का व्यापार है। जहां एक वर्ष मे सिर्फ बांदा शहर के अन्दर एक करोड़ पचीस लाख रूपये की मांस खपत हुयी है वहीं इससे होेने वाले राजस्व घाटे की भरपाई नगर पालिका या राज्य सरकार, आम जनता करेगी इसका उत्तर किसी के पास नहीं है। भू-गर्भ जल निदेशालय ने बांदा शहर के बाशिन्दों को निकट भविष्य मंे पानी के लिए संघर्ष करने की तरफ आगाह किया है। निदेशालय के सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है कि भारी जल दोहन से बांदा शहर मे प्रति वर्ष 65 सेमी0 भू-जल स्तर की गिरावट आ रही है। यह अन्य शहरों की तुलना में अधिक है। क्योंकि लखनऊ मे 56 सेमी0, कानपुर मंे 45, झांसी में 50 और आगरा में 40 सेमी0 भू-गर्भ जलस्तर गिरा है। जल संचयन, प्रबन्धन की अजागरूकता इसका अन्य कारण है।

अनुयोजित शहरीकरण-बढ़ते कंक्रीटीकरण ने खेती की जमीनों को जहां बंजर बनाया है वहीं प्रदेश की सरकारों ने जेट्रोफा, मेंथा, पिपरमेन्ट की खेती को बढ़ावा देकर भू-जल को तबाह करने की तैयारी कर ली है। जिसमें एक वर्ष मे 2 से 3 सिंचाई करनी पड़ती है। केन्द्रीय जल बोर्ड ने अगस्त 2009 के मध्य जलस्तर का सर्वेक्षण कराया था। इसके अनुसार हमीरपुर जनपद के मौदहा, चित्रकूट के हरीसनपुरा, ललितपुर के मंडौरा में भू-गर्भ तीन मीटर से अधिक नीचे चला गया है। मौदहा में 7.60 मीटर से बढ़कर 11.45, हरीसनपुर में 14.10 से बढ़कर 17.13 मीटर और मंडौरा में 3.3 से बढ़कर 7.10 मीटर गहराई पर पानी खिसका है। इनमें जनपद बांदा का चिल्ला गांव, चित्रकूट का पसौंज और हमीरपुर मंे खन्ना, इंगोहटा, टेढ़ा सम्मिलित हैं। 18 से अधिक स्थानों पर 1 मीटर से ज्यादा भू-जल की कमी हुयी है। इनमें बांदा जनपद के बदौसा, चित्रकूट में पुखरी पुरवा, प्रसिद्धपुर और महेवा, चुरखी झांसी में बरूआ सागर, एरच, पंडौहा, मोठ और ललितपुर में बांसी, वनपुर शामिल हैं। बुन्देलखण्ड के सात जनपदों के सभी 45 ब्लाक मंे केन्द्रीय भूमि जलबोर्ड ने 136 स्थानों पर जल मापने के स्थान बनाये हैं। जल प्रबन्धन, जल कुपोषण की स्थिति जनवरी-फरवरी के महीनों से ही शुरू हो जाती है। अन्तर्राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन दिवस 24 अक्टूबर 2009 से तत्कालीन समय तक बुन्देलखण्ड के स्वयं सेवी संगठनों में प्रवास सोसाइटी समाज के प्रत्येक हिस्से में सहभागी हिन्दु संस्कारों, क्रियाकलापों जैसे- विवाह संस्कार, जन्म दिन, तेरहवीं संस्कार, महाविद्यालयों, शिक्षा सदनों, अन्य स्वयं सेवी संगठनों के नेटवर्क मंे जलवायु सम्मत मंत्रणा, एक्सन फाॅर द स्टाॅफ 350 कार्बन डाई आक्साइड अभियान के प्रति संकल्पबद्ध है। जिसे जनमानस ने सराहा और अपनाया है। कुछ सुझावों के साथ बुन्देलखण्ड में भू-जल, जल प्रदूषण की रोकथाम और जल संचयन के प्रति ध्यान केन्द्रित करने का प्रयास किया गया है।

सुझाव:-

    1:- पानी एक प्रकृति प्रदत्त पदार्थ है जिस पर सभी मानव, पशु-पक्षियों का समान अधिकार है। पीने का साफ-स्वच्छ जल सभी को सरलता से उपलब्ध हो ऐसी व्यवस्था में स्थानीय, प्रशासनिक स्तर के हस्ताक्षेप से मिलजुलकर रणनीति तय करनी चाहिए जिससे पानी को लेकर झगड़े, वाद विवाद, सामाजिक विघिटन न हो।
    2:- हमारे गांव आबाद रहें व शहरों को बाजारीकरण के प्रभाव से बचाया जाय, जिससे उनमें जनसंख्या अधिक व सांस्कृतिक पतन और पारम्परिक रीतियांे का विलोपन न हो।
    3:- पानी की व्यवस्था पुरानी परम्परागत व शाश्वत है। इसलिए पानी साझा संसाधन होना चाहिए। निजीकरण से बचाने के लिए स्थानीय साधनों, सामुदायिक प्रबन्धन की पहल हो, पानी ऐसी निजी सम्पत्ति न बने जो कि बेंची जा सके।
    4:- वर्षा जल को संरक्षण व उपयोग हेतु खेतों, घरों में जल संचयन की व्यवस्था अनिवार्य रूप से सम्मिलित हो तथा एक व्यक्ति को 40 लीटर औसतन पानी की आवश्यकता होती है, इस बावत उसे भी जल स्रोतों के स्थाई विकल्पों पर चिन्तन के लिए जागरूक किया जाना चाहिए।
    5:- पंचायत की कार्य योजना में अधिक से अधिक जल संरक्षण, शुद्धिकरण के कार्यों को वरीयता क्रम में रखकर परियोजना क्रियान्वयन मंे सामुदायिक सहभागिता और पंचायत की भूमिका सुनिश्चित हो।
    6:- शोकपिट, रूफवाॅटर हार्वेस्टिंग, तालाब, कुंआ, मेड़बन्दी, चैकडैम, पोखर आदि से वर्षा जल को भू-जल में अधिक से अधिक बदला जाये।
    7:- वायु एवं जल को दूषित करने वाले उद्योगों, कुटीर धन्धों ने कचरा, अपशिष्ट निस्तारण हेतु बनाये गये अधिनियम का प्रदूषण बोर्ड द्वारा शक्ति से अनुपालन कराया जाय व समय समय पर संवेदनशील क्षेत्रों का अनुश्रवण किया जाय।
    8:- विभिन्न प्रकार की वैकल्पिक ऊर्जा व्यवस्था का विकास, प्रचार प्रसार, जलप्रबन्धन के स्थाई समाधान हेतु चर्चायें लघु फिल्मों, नुक्कड़ नाटकों, सार्वजनिक विचार मंचो में आयोजित किये जायें।
    9:- ऐसी विनाशकारी परियोजनायें जैसे- सड़क चैड़ीकरण के नाम पर हरे-भरे वृक्षों का कटान, पहाड़ों का खनन, खनन करने वाले मानकांे की अवमानना, अवैध मांस उत्पादन, मुर्गी पालन, मछली पालन को कृषि का दर्जा दिये जाने पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबन्ध लगाये जायंे साथ ही पहाड़ों और वनों से विस्थापित जीव-जन्तुओं, औषधियों के पुनर्वास की व्यवस्था सुनियोजित हो एंव सीमान्त लघु किसानों को रोजगार के स्थाई, पर्यावरण के अनुकूल रोजगार प्रकल्प उपलब्ध करायें जाये।
    10:- प्राकृतिक संसाधनों का बचाव ही उसकी जीवटता एवं मनुष्य के लिए दीर्घकालिक उपलब्धता का एक मात्र साधन है।

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भवदीय
आशीष सागर
प्रवास सोसाइटी (बुन्देलखण्ड), जनपद- बांदा