(Article) बंधुवा मजदूर जुटाने और आंकड़ों को बढ़ाने की कवायद में सिमट गया विकास
बंधुवा मजदूर जुटाने और आंकड़ों को बढ़ाने की कवायद में सिमट गया विकास
"आज नहीं तह मन सच को बयां करने का मगर क्या करे जुबाने चुप न रह सकी , मित्रो एक बुंदेलखंड ही नहीं ये हालत तो सारे भरत के है ,मै तो सिर्फ एक छोटी सी बानगी ही दिखा पाने की कोशिस कर रहा हू शायद कुछ फलसफा बाहर निकल आये ! चलो चलते है उन बधुआ मजदूरो के आस - पास जो की अपनी ही चिता में रोज जले जाते है !
उमीद है ये प्रवास यात्रा मेरे साथ आपका भी ख्याल बनेगी!"
( धन्यवाद )
लोक तंत्रात्मक गणराज्य की संकल्पना के साथ 15 अगस्त 1947 की आजादी के उद्घोष के साथ-साथ विकास की पगडण्डियों में कारवां बनकर चलने वाले कुछ अगुवाकार लोगों के कुनबे में शामिल जन स्तम्भों ने मिलकर 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान की बुनियाद गणतंत्र दिवस के रूप में रखी थी। गुजरे 63 वर्ष की स्वतंत्रता को हमने मिलकर किस मायने में जनहित और सर्वहारा वर्ग के उत्थान में कितना प्रयोग किया है। इसकी जीवटता का उदाहरण तो अपने आस पास के परिवेश में मौजूद सामाजिक, राजनीतिक उथल-पुथल से उपजे अन्तर विवादों के समाधान नहीं मिलने से ही स्पष्ट हो जाता है कि हम गुजरे 63 साल बाद भी विकासशील ही हैं, हर मायनों में विकसित नहीं है। भारत की कुल जनसंख्या में शामिल 52 करोड़ युवा आज भी शहरों की भीड़, गांवों की चैपाल में कागजी डिग्री के साथ रोजगार की तलाश में खुद का और अपने समुदाय का आत्म चिंतन करते मिल जायेगा। कहना गलत नहीं है कि ग्राम विकास की सर्वोदयी विचारधारा में शामिल गांधी और बिनोवा के स्वराज्य को हमने कितना साकार किया है, ये तो प्रजातंत्र में शामिल भ्रष्टाचार, पगार की चिता में जलते मजदूर, धरना प्रदर्शन, आमरण अनशन में देखने को मिल जाता है। केन्द्र सरकार की चार प्रमुख बड़ी योजनायें जो न कि अन्तिम व्यक्ति को रोजगार के अधिकार, रोजी रोटी उपलब्ध कराने के संकल्प के साथ शुरू हुयी थी वे भी प्रशासन की, सत्ता की हनक में दम तोड़ती नजर आती हेैं। इन्ही कुछ बयानों को उक्त योजनाआंे में शामिल शैक्षिक बंधुवा मजदूरी, धांधली, भविष्य की चिंता को पेश करता है ये मंथन ।
चित्रकूट धाम मण्डल, बांदा जिसमें सम्मिलित बुन्देलखण्ड के चार भूखे जिले जो आज भी अपने अस्मिता को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, और जिनके साथ गरीबी, पलायन, गिरता हुआ जलस्तर, हताश युवाओं के चेहरे गाहे-बगाहे देखने को मिल जाते हैं। इन्ही जिलों मे पूरे भारत वर्ष के साथ चलने वाली चार प्रमुख योजनाऐं धराशाही हो चुकी हैंे। शायद ही ऐसा कोई खुशनुमा दिन बीत जाता हो जब कि मजदूरों को उनकी पगार, महिलाओं को 250 ग्राम आंगनवाड़ी में मिलने वाली पंजीरी, बचपन से ही भीख मांगने वाली आदत में सुमार मिड्-डे मील योजना, प्रत्येक सुबह किसी भी गांव के किनारे से निकलने वाली सड़क पर महिलाओं की मल त्यागने की समस्या न देखने को मिलती है। सच्चे अर्थों में कहें तो यही फर्क है, भारत और इण्डिया के बीच। 75 प्रतिशत जर्जर शरीर जो कहने को तो इन्सान का हिस्सा है लेकिन उन 20 प्रतिशत लोगों के सामने हवा में उड़ने वाली धूल की तरह नजर आते हैं। जिन्हे हम साइनिंग इण्डिया, भारत निर्माण के नाम से जान लेते हैं। बुन्देलखण्ड के साथ-साथ पूरे उत्तर प्रदेश में शामिल 71 जिले आज प्रत्येक योजना के साथ चार बड़ी योजनाओं में शैक्षिक बंधुवा मजदूरी के लिए भी गुनाहगार बन बैठे है। उनमें शामिल सरकारी प्रशासन, कमीशन खोरों की दलाली, बाहुबली जन प्रतिनिधियों के हस्ताक्षेप इन्हे संरक्षण प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए ग्रामीण विकास को कृत संकल्पित सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान (ज्ैब्) योजना में ही इस बंधुवा मजदूरी की दखलंदाजी देखने को मिलती है। जिला कार्यक्रम समन्वयक जिसका मानदेय 10,000 हजार रूपये मासिक देय है। उसकी तैनाती प्रत्येक जनपद के जिला ग्राम विकास अभिकरण में की जाती है, और उनके साथ 1 कम्प्यूटर आपरेटर जिसका मानदेय 8,000 हजार रूपये, एकाउन्टेन्ट असिस्टेन्ट मानदेय 5,000 रूपये देय है। एक टीम वर्क के रूप में योजना संचालन की भूमिका निभाते हैं वहीं मिड्-डे मील (मध्यान्ह् भोजन योजना) एम0डी0एम0 समन्वयक जिसका मानदेय 12,000 हजार रूपये मासिक देय है, उसके साथ एक कम्प्यूटर आपरेटर मानदेय 8,000 रूपये, सहायक एकाउन्टेन्ट मानदेय 5,000 रूपये है।
उक्त योजना को सफलता पूर्वक बच्चों के हितार्थ चलने वाली इस योजना की जिम्मेवारी लेते हैं। वहीं राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एन0आर0एच0एन0) जिसमें विकास खण्ड स्तर पर ब्लाक कार्यक्रम अधिकारी जिसका मानदेय 15,000 रूपये, एक कम्प्यूटर आपरेटर मानदेय 8,000 रूपये, सहायक एकाउन्टेन्ट मानदेय 5,000 रूपये एक टीम के रूप में कार्य करते हैं। वहीं जिला स्तर पर जिला कार्यक्रम अधिकारी मानदेय 22,000 रूपये प्रति जिले परे एक होता है। उसके साथ में एक कम्प्यूटर प्रोग्रामर मानेदय 12,000 रूपये, सहायक एकाउन्टेन्ट मानदेय 8,000 रूपये, आशा कोआर्डिनेटर मानदेय 15,000 रूपये एवं कुछ चुने हुए जनपदों में एम0बी0बी0एस0 डाक्टर मानदेय 25,000 रूपये लगाये जाते हैं। ताकि हर जच्चा और बच्चा खुशहाल रहे, उन्हे स्वास्थ्य लाभ की वे सारी सुविधायें प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र से लेकर जिला स्तर तक बिना किसी बीच दलाली के मिले जिसके लिए वे जिम्मेवार हैं। इसी योजना में एक राज्य स्तरीय सामाजिक अंकेक्षण कोआर्डिनेटर मानदेय 35,000 रूपये, एक एम0आई0एस0 समन्वयक मानदेय 22,000 रूपये, एक कम्प्यूटर आपरेटर 15,000 रूपये, सहायक एकाउन्टेन्ट 10 से 12,000 रूपये सृजित पद होता है। केन्द्र सरकार की सबसे महत्वपूर्ण और महत्वाकांक्षी योजना जो कि एक कानून भी है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारन्टी योजना भी बांदा जनपद के साथ पूरे बुन्देलखण्ड में भ्रष्टाचार की मांद में सुरताल करती नजर आती है।
कहना गलत नहीं होगा कि इसके लिए भी उत्तर प्रदेश सरकार ने ठेकेदारी व्यवस्था को अप्रत्यक्ष रूप से सेवा प्रदाता कम्पनियों के नाम से जारी कर रखा है। जिनका प्रमुख कार्य है शासन को पढ़े लिखे, हाई प्रोफाइल बंधुवा मजदूर उपलब्ध कराना। इस योजना में भी ग्राम पंचायत स्तर पर एक मेट जो कि काम करने वाले अकुशल श्रमिकों के बीच से ही आंशिक रूप से पढ़ा लिखा व्यक्ति बनाया जाता है जिसका मानदेय है 3200 रूपये, एक ग्राम रोजगार सहायक प्रति ग्राम पंचायत मानदेय 5,000 रूपये (इण्टर पास), ग्राम पंचायत स्तरीय तकनीकी सहायक मानदेय 4,000 रूपये, विकास खण्ड स्तर पर एक कार्यक्रम अधिकारी मानदेय 20,000 रूपये, एक कम्प्यूटर आपरेटर मानदेय 8,000 रूपये, एक तकनीकी सहायक मानदेय 8,000 रूपये, सहायक एकाउन्टेन्ट मानदेय 8,000 रूपये देय होता है और उनके साथ प्रत्येक विकास खण्ड स्तर पर एक सेाशल आडिट समन्वयक मानदेय 12,000 रूपये सृजित पद होता है। इनके ऊपर एक राज्य स्तरीय सामाजिक अंकेक्षण कोआर्डिनेटर मानदेय 25,000 रूपये$5000 रूपये भत्ता (टेलीफोन, यात्रा भत्ता अतिरिक्त देय) लगभग 35,000 रूपये देय है। लेकिन इसकी योग्यता सिर्फ स्नातक है। वहीं विकास खण्ड स्तर मुख्य विकास अधिकारी कार्यालय में लगे अतिरिक्त कार्यक्रम अधिकारी का मानदेय 20,000 रूपये मासिक देय है, किन्तु शैक्षिक योग्यता एम0बी0ए0, एम0एस0डब्लू0, एम0सी0ए0, बी0टेक0 आदि वरीयता क्रम में है और अगर प्रशासन में पहुंच, सत्ता में पकड़ है तो एम0ए0 पास भी चलेगा। गौरतलब है कि वे टेक्निकल युवा जो बी0टेक0 की डिग्रियां लिए हैं और जिनका ग्रामीण विकास से दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं है। क्या वे भी कारपोरेट इंडस्ट्री को छोड़कर गांव के किसानों को जे0सी0बी0 मशीने चलाना सिखायेंगे या फिर 70 प्रतिशत गांवों की निरक्षर आबादी को इण्डिया बनाने मंे साथ देंगे ? इतनी बढ़ी जमात तो सिर्फ उत्तर प्रदेश के प्रत्येक जनपद में प्रमुख चार योजनाओं के अन्तर्गत शामिल बंधुवा मजदूरांे की है। लेकिन इसके बाद भी मनरेगा और अन्य योजनाओं का लाभ लाभार्थी को नहीं मिल पाता है। बेहतर होता की प्रत्येक महीने के एक विशेष दिन केन्द्र सरकार पूरे भारत के गांवों में प्रशासनिक व्यवस्था के माध्यम से शिविर लगाती और मनरेगा में एक परिवार को मिलने वाले वार्षिक दस हजार रूपये सीधे-सीधे उपलब्ध करा देती है। इससे एक तरफ जहां लोग अपनी किसानी भी कर लेते या फिर मजदूरी और उन्हे ये अतिरिक्त लाभ भी मिल जाता है।
लेकिन अगर ऐसा होता तो 1700 करोड़ रूपये की मिड्-डे मील योजना, कांग्रेस का हाथ गरीब के साथ कहलाने वाली मनरेगा भ्रष्टाचार से कैसे दूर रह पाती ? बिडम्बना है कि किसी बंधुवा मजदूरी के विरोध में पिछले एक वर्ष से जनसूचना अधिकार 2005 के तहत माननीय राज्य सूचना आयोग में दायर अपील संख्या 29384, एस0-2, 874 सी0/2009 की दो सुनवाई क्रमशः 5 सितम्बर, 11 दिसम्बर के आदेश के बावजूद इन भर्तियों में किये गये भ्रष्टाचार की प्रमुख छः बिन्दुओं पर सूचना आज तक वादी आशीष सागर को नहीं मिल सकी हैं। जिसकी अगली सुनवाई 19 मार्च 2010 है। वहीं एक बार फिर यू0पी0 सरकार ने शैक्षिक बंधुवा मजदूरी के विज्ञापन जारी कर दिये हैं। लेकिन यह तो तय है कि कहीं न कहीं दबा हुआ यह आक्रोश भी जहां आन्दोलन का कारण बनेगा। जहां एक तरफ बढ़ती हुई महंगाई से आम जनता को दो जून की रोटियंा नहीं नसीब हो पा रही हैं वहीं माननीय उत्तर प्रदेश सरकार के विधायकों के वेतन भत्तों, यात्रा ने 20 हजार रूपये का इजाफा उनकी असंवेदनशीलता को जगजाहिर करता है। यहां तो सिर्फ इतना ही कह सकते हैं कि- ‘‘ये और बात है कि आंधी हमारे बस में नहीं, मगर चिराग जलाना तो इख्तियार में है’’।
आशीष सागर (प्रवास)
- Anonymous's blog
- Log in to post comments