पत्थर मण्डी में पिस रहा महिला अधिकार!

विश्व महिला अधिकार दिवस 8 मार्च 2011 विशेष
पत्थर मण्डी में पिस रहा महिला अधिकार - लज्जा !

  •  संविधान के अनुच्छेद 39(1) की कब्रगाह है खदानें
  • घरों में गिरते है ब्लास्टिंग के पत्थर, लहुलुहान होती अबला
  • समान काम, समान वेतन और लिंग भेदभाव का आईना हैं बुन्देलखण्ड़ का पत्थर उद्योग

संसद से लेकर सचिवालय तक और परिवार से लेकर समुदाय तक महिला अधिकारों के लिये महिलाओं की लड़ाई भले ही आज प्रतिशत के आकड़ों व आरक्षण की आग में अरमानों का बलिदान कर रही हो मगर विश्व महिला अधिकार दिवस का विशेष दिन तो ने अपने हूकूक, लज्जा और लिंग भेदभाव का एहसास कराता ही है इसी कड़ी में विश्व बिरादरी के साथ साथ भारतीय लोकतंत्र में पिछले 6 दशको से अधिकारों की बाट में पिसती हुई महिला की वास्तविक तस्वीर देखने के लिये कही सुदूर नहीं आप बुन्देलखण्ड की पत्थर मण्डी में काले सोना को तोड़ती हथौड़ो की ठोकर में चल रही मौत की खदानों में चले आये ंतो यकीनन कह सकते है कि क्रशर के गुबार में खत्म हो रही है महिलाओं की जिन्दगीं।

काबिले गौर है कि संविधान के अनुच्छेद 39(1) में महिलाओं को समान वेतन के बदले समान काम का जिक्र किया गया है जिसके लिये आज भी महिला संघर्षरत है वहीं कार्य क्षेत्र में लैगिंक भेदभाव निषेध कानून अनुच्छेद 16(1) व (2) की अवमानना करना भारतीय दण्ड संहिता के विपरीत है जहां केन्द्र सरकार ने वर्ष 2010 शिक्षा को अनिवार्य से लागू करने के लिये शिक्षा को मौलिक अधिकारों मे शामिल करते हुये आर0टी0ई0 कानून 2010 पारित किया और इस काम को सुनिश्चित करने के जिम्मेदारी राज्य सरकार को प्रदत किया है। लेकिन बुन्देलखण्ड के बांदा, चित्रकूट, महोबा जनपदों की पत्थर खदानों में इन सभी के साथ खान अधिनियम 1952 की धारा 40 के प्रावधानों के अनुसार किसी भी खदान में 18 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति महिला के काम करने पर प्रतिबन्ध है वहीं उन्हें पत्थर तोड़ने के समय चेहरों पर मास्क, चिकित्सा सुविधा, काम करने के निश्चित घन्टे, समान मजदूरी, समाजिक सुरक्षा जैसी बुनियादी बातो का उल्लेख किया गया है मगर इनका अनुपालन ये पत्थर खदाने महज कागजी कार्यवाही में ही करती है। जहां इन तीनों जनपदो में बांदा 190, चित्रकूट 272, महोबा 330 क्रशर हैं और उनसे जुडी हुई एक सैकड़ा पत्थर मण्डियां भी है जहां मजदूर दिहाडी पर पत्थर तोड़ने का काम करते है इन मण्डियों की महिला मजदूर निवासी जवाहर नगर, कबरई की कैलशिया पत्नी मुन्नीलाल अहिरवार, जमुना पत्नी छेदीलाल, दौलत पत्नी बलदू प्रजापति का कहना है कि इस पेसे से कोई खुशी से नहीं जुडता है हमे 3 घन मी0 (एक सैकड़ा) पत्थर तोड़ने के बाद 50 से 100 रू0 आठ घन्टे मजदूरी करने के बाद मिलते है वहीं इन पत्थर मण्डी से लेकर पत्थर खदानो तक अश्लील शब्दों को सुनना, आदमी से ज्यादा काम बदले में कम मजदूरी, इज्जत के साथ खिलवाड़ और जिन्दगी का फलसफा कब इन पत्थर खदानों में जिनकी गहराई 300 फुट तक है तथा जिनमें 4 इंच से 6 इंच मोटी ब्लास्टिंग की जाती है दफन हो जाये की कोई गारन्टी नहीं है। संविधान की धारा-375 के तहत शील भंग करना, धारा-511 के तहत इसका प्रयास के मामले बड़ी आसानी से यहां देखने को मिलेगे 9 से 14 वर्ष की अन्डर ऐज किशोरियां जिन्हें विवाह के बाद एक नये परिवार का स्रजन करना है उनको गर्भाशय का अल्सर, टी0वी, सिल्कोसिस की गंभीर बिमारियां होना भी आम बात है।

अभी हाल ही में कबरई के पचपहरा पहाड़ के गाटा सं0-967 में शाम 3 बजे की गयी ब्लास्टिंग से 5 किलो का पत्थर वहीं के निवासी मोहन वर्मा जवाहर नगर के घर पर जाकर गिरा जिससे उसकी टी0बी0, मकान बुरी तरह छति ग्रस्त हो गया जबकि इस घटना से थोड़ी देर पहले उसकी पत्नी पत्थर गिरे स्थान पर बैठी हुयी अनाज बीन रही थी इसे किस्मत का खेल कहेगें कि एक बड़ी घटना इस परिवार पर घटने से रह गयी। कहां है इन खदानों में महिला अधिकार के पैरोकार जिन्हें पुलिस थानों में वर्दी पहनाकर बैठाया गया है और उनकी ही नाक के नीचे सप्ताह में औसतन दो महिला पुरूष मजदूर मौत के मुह में समा जाते है। खनन् माफियाओं की हवस का शिकार बनती है मजलूम महिलायें और उनकी बेटियां आखिर क्या करें वे अकीदतमंद गरीब लोग जिनकी मजबूूरी है पेट की भूख मिटाना और हथौड़ो को थाम कर अपने दूधमुहे बच्चे के साथ सौन्दर्य व श्रम का तमाशा करना। हाल बेहाल बुन्देलखण्ड में प्राकृतिक आपदा के साथ मानवाधिकारों का हनन् और महिला की अस्मिता दोनो ही पत्थर माफियाओं, राजस्व वसूल करने वाली प्रदेश सरकार की मुलाजिम है।

’’ उजाड़ के खेल में मनुष्य की भागेदारी है, प्रकृति फिर भी परोपकारी है ।
अस्मिता को बचाने के लिये लड़ रही नारी है, यातना दर यातना आज भी जारी है।। ’’


-आशीष सागर, प्रवास (बुन्देलखण्ड)