कविता "Poem" 'बुन्देलखण्ड क्यों छला गया'
कविता "Poem" 'बुन्देलखण्ड क्यों छला गया'
हर ओर निराशा के बादल और फैली बदहाली है,
वह वीर प्रसूताओं की भूमि आज हो रही खाली है,
हो रहा पलायन दिनों रात घर गाँव हो रहे वीराने,
सूनापन फैला गलियों में लगी गरीबी मँडराने,
खेत हो रहे सब बंजर जिसमें फसलें लहलाती थीं,
वृक्ष धरा से उखट गये जहँ बैठ के चिड़ियाँ गातीं थीं,
बेगारी के आलम से घर के चूल्हे तक रोते हैं,
कर्ज के नीचे दबे अनेकों कृषक जिन्दगी खोते हैं,
नन्हा बचपन मजबूरी में मजदूरी को जाता है,
देख देख इन द्रश्यों को सुख चैन मेरा छिन जाता है,
जरा बताओ इस मिट्टी का तेज प्रचण्ड क्यों चला गया,
आजादी से अब तक बस बुन्देलखण्ड क्यों छला गया,
जो खनिज संपदा से भरी सोने के जैसी माटी थी,
ह्रदय स्थली भारत की जो वीरों की परिपाटी थी,
जो वाल्मीकि व्यास ब्रम्हा से ऋषियों की तपस्थली थी,
जहँ रामचरित मानस दाता तुलसी की कलम चली थी,
शौर्य पराक्रम शाहष ही जिस मिट्टी के गुण होते थे,
नदी और पर्वत मालाएं जिसके चरणों को धोते थे,
उत्तर दक्षिण से पश्चिम तक जो पर्वत मालाएं थीं,
वीर प्रसूता माटी की वो चारों शौर्य भुजाएं थी,
यमुना चम्बल और बेतवा जिस सीमा से बहती हैं,
सिन्धु नर्मदा उर्मिल तमसा जिसकी गाथा कहती हैं,
जो पहुंज पैसनी और केन से सारी धरा पुरुष्कृत है,
फिर देश के ठेकेदारों से क्यों ये आज तिरष्कृत है,
इसीलिए मैं पूँछ रहा हूँ सत्ता के गलियारों से,
न्याय माँगता भटक रहा हूँ देश के ठेकेदारों से,
आज यहाँ की जनता को कितना लाचार बना डाला,
बुन्देलखण्ड राजनीति का बस बाजार बना डाला,
जो भी दौरा करने आता सिर्फ फेंकने आता है,
जलती बुन्देली लाशों पर हाँथ सेंकने आता है
नाम करोड़ों की राहत तो आवंटित करवाते हैं,
लेकिन ऊपर से नीचे तक खुद ही सब खा जाते हैं,
यहाँ राजनीति के जितने पाई दिखाई देते हैं,
हमको तो सब चोर चोर ये भाई दिखाई देते हैं,
आज यहाँ के लोगों को बस यही बताने आया हूँ,
आज यहाँ के हक की मैं आवाज उठाने आया हूँ
अगर गरीबी इस मिट्टी से तुमको दूर भगाना है,
और कर्ज से दबे किसानों को भी न्याय दिलाना है,
गाँव गाँव व हर कस्बे को गर खुशहाल बनाना है,
रोजगार के साधन भी गर आज द्वार तक लाना है,
उठो बुन्देली वीर न्याय लखनऊ दिल्ली तक माँगो,
भीख नहीं अनुदान नहीं अब आगे बढ़कर हक माँगो
राजनीति के न अब दोहरे मापदण्ड को झेलो तुम,
प्रथक राज्य के दर्जे में बुन्देलखण्ड को ले लो तुम,
'चेतन' नितिन खरे
सिचौरा, महोबा उ.प्र.