(Report) बिन जंगल बुन्देलखण्ड की यही कहानी, धरती सूखी, रह गया आंखों मे पानी!
बिन जंगल बुन्देलखण्ड की यही कहानी, धरती सूखी, रह गया आंखों मे पानी!
- पिछले 15 वर्षों में बुन्देलखण्ड के दो जनपदों में वन विभाग कर्मियों की सेलरी का खर्च 22,60,08,621 रूपये
- हर साल करोड़ों खर्च के बाद भी नहीं आबाद हुऐ जंगल
- सबसे कम वन क्षेत्र जनपद बांदा में 1.71प्रतिषत
- हजारों आदिवासियों हो गया विस्थापन
उत्तर प्रदेष हो या केन्द्र सरकार की चर्चा का विषय अथवा विदेषों में भारत की वकालत करने वाले समाजिक कार्यकताओं की बहस का जनमंच बिना बुन्देलखण्ड के बात पूरी हो ही नही सकती और जब मुद्दा हो सूखा, आकाल, कर्ज, पलायन इसके बिना तो बुन्देलखण्ड का वर्तमान अधूरा है।
दिन प्रतिदिन सूखते जल स्रोत, घटते हुए जंगल, बिन पानी तालाब अब तो आदवासियों पर भी बीहड़ हो चुके यहां के हालात भारी हैं कभी जिस धरती में प्रकृति ने खुद को हरा भरा रखा हो और जहां हजारों वर्ग कि0मी0 में खड़े जंगलों की वन सम्पदा विध्याचल पर्वत की शोभा बढ़ाते थे। वे ही अब बुन्देली महुआ की मिठास से अधूरे क्यों हो गये हैं यह एक सवालिया प्रष्न है प्रकृति के रक्षक बन कर खड़े प्रदेष के वन विभागों से। साल दर साल लुटती-पीटती यहां की हरियाली का अब कोई पुरसाहाल नहीं है भले ही जंगलों के यौवन को सुधारने के लिए प्रषासनिक अमलों ने वन विभाग की इकाई को खड़ा कर रखा है परन्तु जिस समय से इस विभाग की उपस्थिर्ती सरकारी महकमें में दर्ज हुई है तब से लेकर आज तक वन क्षेत्रों, वन जीवों की संख्या में इजाफा क्यों नही हुआ है बुन्देलखण्ड की भयावह काल दषा का हिस्सेदार बनता यह विभाग आज अपने ही बनाये आकड़ों की गिरफ्त में है। जन सूचना अधिकार 2005 के तहत सभी प्रमुख जनपदों के लोक सूचना अधिकारियों से हासिल सूचनाऐं यहां के ताजा परिदृष्य की एक बानगी है।
जनपद महोबा एवं हमीरपुर के विभागीय कर्मिकों पर खर्च की गई मासिक सेलरी
जनपद
के स्रजित पद |
वित्तीय वर्ष |
कुल सेलरी व्यय रू0 में |
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महोबा- प्रभागीयवन अधिकारी, उप प्रभागीय वन अधिकारी, क्षेत्रीय अधिकारी, उपराजिक वन दरोगा, वरिष्ठ लिपिक, कनिष्ठ लिपिक, वन रक्षक, वाहन चालक, सर्वे अमीन, चेन मैन, क्षेत्र सहायक, डाकिया |
1996-97 |
1103569 |
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1997-98 |
2909279 |
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1998-99 |
3368152 |
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1999-2000 |
3383699 |
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2000-01 |
3728543 |
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2001-02 |
333509 |
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2002-03 |
3913262 |
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2003-04 |
5680772 |
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2004-05 |
5969714 |
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2005-06 |
7771613 |
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2006-07 |
8322367 |
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2007-08 |
9174770 |
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2008-2009 |
11608915 |
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2009-10 (31 मार्च तक) |
16286008 |
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जनपद हमीरपुर |
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1999-2000 | 4361932 | ||
2001-02 |
51881556 |
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2002-03 |
6023208 |
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2003-04 |
6872663 |
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2004-05 |
7853000 |
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2006-07 |
11088573 |
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2007-08 |
10841907 |
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2008-09 |
12702781 |
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2009-2010 |
16817900 |
जनपद महोबा का सृजन वर्ष 1995 में हुआ था तब से यहां वन विभाग कार्यरत है। जहां जिले सभी आला अधिकारीयों की तैनाती है। जंगलों, वन जीवों, संरक्षित वन क्षेत्र की सुरक्षा और सम्वर्धन की नैतिक जिम्मेदारी भी इसी विभाग को दी गई है। राष्ट्रीय वन नीति के मुताबिक किसी भी जनपद का वन क्षेत्र 33 प्रतिषत होना अनिवार्य है जो कि पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से एक समान दषा है। लेकिन जिले का वर्तमान वन क्षेत्र 5.45 प्रतिषत मात्र है वहीं वन क्षेत्रों पर बढ़ती आबादी की निर्भरता, विगत वर्षों में उत्पन्न सूखे स्थिति अनियंत्रित पशु चारण, अन्य जमीनी कारणों से जंगल का वन क्षेत्र कम होना लाजमी है। वर्ष 2008.09 बुन्देलखण्ड के लिए एक खास साल था जब कि उत्तर प्रदेष सरकार द्वारा प्रमुख सातों जनपदों में स्पेषल ट्री प्लान्टेषन कार्यक्रम मनरेगा योजना के तहत करवाया गया था। जनपद महोबा में विभिन्न विभागों द्वारा 70.7लाख पौध रोपण किया गया जिसके सापेक्ष 59.56लाख पौध उनके अनुसार जीवित है और इसमें विभाग द्वारा 3459015 पौधों पर 717.63 लाख रूपये की धनराषि खर्च की गई थी परन्तु ये भी जानना आवष्यक है कि 20.56 लाख पौधे कहां चले गये जिनको बचाने की जिम्मेदारी वन विभाग की थी।
विभाग के जन सूचना अधिकरी ने बताया कि इस विषेष अभियान में नीम, षीषम, कंजी, सिरस, चिलबिल, बांस, सागौन आदि के वृक्ष पौध रोपित किऐ गऐ थे। ये अलग बात है कि आज महोबा में जंगलों से वीरान चंदेलों की धरती पहले की तरह वनों से बहुत दूर है। वहीं दूसरी ओर र जनपद हमीरपुर के लोक सूचना अधिकरी ललित कुमार गिरी से मिली जानकारी के अनुसार जनपद में 33 प्रतिषत के मुकाबले 3.6 प्रतिषत वन क्षेत्र शेष है उन्होने कहा कि वनों पर जैविक दबाव, अन्ना पशुओं की बढ़ती संख्या इसका एक कारण है। सूचना में लिखित रूप से कहा गया कि वर्ष 2008.09 में मनरेगा तहत 70 लाख पौध लगाई गई थी जो अब 69.30 लाख जीवित है प्रति हेक्टेयर 1100 पौध तीन मी0 की दूरी पर लगाई गई तथा 7.46 करोड़ इनके ऊपर व्यय किया गया वहीं जनपद हमीरपुर के मौदाहा में कुनेहटा के जंगलों में पाये जाने वाले काले हिरणों की संख्या महज 36 शेष बची है इसके साथ ही यहां पायी जाने वाली कबूतरा जनजाति के कारण भरूवा सूमेरपुर से गिद्धों की संख्या विलुप्त होने की कगार पर है।
जनपद बांदा के लोक सूचना अधिकारी नुरूल हुदा के मुताबिक यहां र्सिफ 1.71 प्रतिषत ही वन क्षेत्र शेष रह गया है भौगोलिक क्षेत्रफल 446000 हेक्टेयर है। समसामयिक स्वामित्व में 5420.556 हेक्टेयर वन क्षेत्र है वहीं 2008.09 में मनरेगा कार्यक्रम से बुन्देखण्ड में लगाये गये 10 करोड़ पौधे के सापेक्ष यहां 793.97 हेक्टेयर वृक्षा रोपड़ कार्य किया गया कुल रोपित पौधों की संख्या 629790 थी दिसम्बर 2009 में कराई गयी गणना में 556235 पौध जीवित पाई गई है जो कुल का 88.50 प्रतिषत है वही स्थानीय पं0 जवाहरलाल नेहरू कालेज बांदा के खेल मैदान में विभाग द्वारा कराये गये 2009.10 की वृक्षा रोपण में 150 ब्रिकगार्ड में लगाये गये पौधों पर 189000 की धन राषी खर्च हुई मगर ताजा घटना क्रम यह है कि हरे भरे पुराने खडे़ वृक्षों को भी कालेज द्वारा कटवा कर उस भूमी पर कंक्रीट की इमारत खड़ी की जा रही है लगभग 350000 रूपये कागजों में ही खर्च हो गये। बांदा में काले हिरण अब मात्र 59 शेष बचे हैं।
जनपद चित्रकूट वन प्रभाग के वी0के0चोपड़ा ने बताया कि यहां 21.6 प्रतिषत वन क्षेत्र है 2008.09 में 77 लाख पौधे लगवाये गये थे जिसमें 807 लाख रूपये व्यय किया गया वहीं यहां पाये जाने वाले काले हिरणों की संख्या 1456 है।
जनपद झांसी में लोक सूचना अधिकारी डा0 आर0 के0 सिंह ने कहा कि 1990 से 2009 तक कुल
20 व्यक्तियों को वन्य जीव हिंसा में दण्डित किया गया है यहां कुल क्षेत्रफल 5024
वर्ग कि0मी0 है अर्थात 502400 हेक्टेयर है जो कि कुल का 6.66 प्रतिषत है इस प्रकार
लगभग 26.34 प्रतिषत वन क्षेत्र होना शेष है। झांसी वन प्रभाग ने 2008.09 में मनरेगा
से 71.50लाख लक्ष्य के लिए 71.61 लाख पौध रोपित की जो अब 65.744लाख शेष हैै। यह एक
बड़ा सच है कि तत्कालिक नगर आयुक्त लखनऊ विजय शंकर पाण्डेय द्वारा गठित सोषल आडिट
टीम के सदस्य अपर आयुक्त चन्द्रपाल अरूण ने जनपद ललितपुर.झांसी के तालबेहट विकास
खंड में जब लगाये गये पौधों की गिनती कराई तो 70 हजार के सापेक्ष 35 हजार पौध जीवत
पाई गई और जो शेष बची थी उनमें पत्तियां व जड़े भी नहीं थी। वहीं जनपद जालौन के वन
संरक्षक बी0सी0 तिवारी ने सूचना में कहा कि यहां 5.6 प्रतिषत वन क्षेंत्र शेष है
लेकिन हैरत की बात है कि विभाग के पास न तो लगाये गये पौधों के आकड़े है और न ही
कार्मिकों पर खर्च किऐ गये व्यय का ब्योरा है।
गौर तलब है कि एक दफा फिर बुन्देलखण्ड पैकेज से व जापान इन्टरनेषनल कारपोरेषन
एजेन्सी (जायका) से हरियाली लाने की दस्तक हो चुकी है इनमें शामिल सातों जनपदों के
स्वयं सेवी संगठन, वन विभाग स्वयं समाजिक वानिकी करण का कार्य करेगा लेकिन प्रष्न
तब खड़ा होता है जब कि जनपद बांदा में ही 21 लाख पौधों को विद्यालय, संगोष्ठी, जन
प्रतिनिधियों द्वारा खाना पूर्ती करके लगा दिया हो। बिगड़ते हालात के चलते यदि एक
कारगर रणनीति से वन विभाग यहां की सूखी धरती को, उजड़ चुके जंगलों को और पहाड़ों को
नही बचाता है तो विकास के आधे अधूरे माॅडल से बनी फोर लाइन सड़कें और उनके किनारे खड़े
हजारों कि0मी0 के हरे वृक्षों की कुरबानी यहां सूखे.पलायन का प्रमुख कारण बनेगी। हो
सकता है कि हमारी सरकारों के बुन्देलखण्ड में पानी को बेचे जाने की योजना तैयार हो
आखिर जब जंगल नही होगे तो पानी कहां से होगा यह एक अदना सा अनसुलझा प्रष्न है जो कि
हल ही नहीं होता है।
आषीष सागर, प्रवास.बुन्देलखण्ड
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