(Report) बुंदेलखंड में 'युवराज' की एक चुनावी सभा

बुंदेलखंड में 'युवराज' की एक चुनावी सभा

कल रात झाँसी में बारिश हुई थी. जाड़े में हुई इस बारिश से मन में रूमानियत के कोई अंकुर नहीं फूटे. ख्याल आया कि चौराहे पर जो अलाव बेघर लोगों के लिए जल रहे थे वो भी बुझ गए होंगे.

जिन किसानों की जमीन थोड़ी निचले इलाके में है उनकी रबी की फसल में पानी जमा होने से और नुकसान हुआ होगा. अभी कुछ दिनों पहले ही हुई तेज़ बारिश से फसलों और किसानों को नुकसान हुआ है. सैंयर गाँव में तो किसान पम्प चला कर खेतों से पानी निकाल रहे थे, ताकि उनकी फसल बच जाये और मोढ़ा-मोढी के लिए साल भर का गेहूं निकल सके. कुछ गाँव में तो ओले भी पड़े थे...बुंदेलखंड के किसानों पर मौसम की बड़ी मार है. इसी बात को सोचते हुए में ऑफिस की ओरे जा रहा था. रात की बारिश के बाद ठंडक बढ़ गई थी और सड़क पर कुहरा भी था. सफ़ेद घने कुहरे में सड़क, जो अलकतरे कि काली चादर ओढ़े थी, बहुत दूर तक नहीं दीख पा रही थी.

ऑफिस मेरे डेरा से थोड़ी दूरी पर ही है, सो टहलता हुआ ही वहां पहुँच जाता हूँ. ऑफिस जाने वाली सड़क के बायीं और सबसे पहले एक बड़े पुलिस अधिकारी का एक बड़ा सा बंगला पड़ता है, फिर वन विभाग के एक अधिकारी का बंगला, फिर एक सड़क और उसके बाद अंग्रेजों के ज़माने के किसी अधिकारी कि कब्र, जिसे लोग नफरत से "कुत्ते की समाधि" भी कहते हैं. बकौल अखबार, मुझे ये जानकारी हुई है की किचनर नाम का कोई अंग्रेज अधिकारी,जो बड़ा जुल्मी था, उसकी ही ये कब्र है. अख़बार में ये कब्र तब चर्चा में आया था जब पुरातत्व विभाग ने ये आरोप लगाया कि इसे एक मंत्री ने हड़प लिया है या हड़पने कि कोशिश करते हुए एक चाहरदीवारी खड़ी कर दी है. तभी मैं भी इसके बारे में जान पाया था.

मामला चाहे जो हो, इस चाहरदीवारी के अंदर देशी शराब का एक ठेका खुला हुआ है. और इस ठण्ड भरी सुबह में कुछ लोग वहां जमे हुए दिखे. उसके आगे एक अंग्रेजी शराब की भी दुकान है, लेकिन वो बंद थी. देशी को थोडा जल्दी सुबह जगने के आदत भी होती है. इन दुकानों के आगे मत्था टेकते हुए आगे बढ़ने पर एक चाय का ठेला लगता है. यहाँ कुछ लोग हमेशा बकैती करते हुए मिल ही जाते हैं. यहाँ चाय कि चुस्की लेते लेते-लेते उनकी बातों को सुनने का रस ही कुछ और होता है. यहीं मुझे सुनने को मिला कि आज शाम झांसी के ऐतिहासिक मुक्ता काशी मंच पर कोई नेता भाषण देने आ रहे हैं. चाय की दो चार चुस्की बाद पता चल गया कि वो नेता कोई और नहीं बल्कि 'युवा' राहुल जी ही हैं. खबर पक्की लगी, सो ये सोचते हुए मैं ऑफिस पहुंचा कि आज शाम इस जनसभा में आये जन को देखने-सुनने जरुर जाऊंगा.

दिन भर ऑफिस का काम निबटाया, लंच टाइम में अपना काम निबटाया और ठीक ५ बजते ही ऑफिस से निकल आया. एक युवा सहकर्मी ने साथ आने से मना कर दिया क्योंकि उसको ऑफिस से घर जाकर कुछ बच्चों को टयूसन पढ़ाना था. यह आय उसके परिवार के लिए महत्वपूर्ण है शायद. खैर, मेरे कदम तेज़ी से बढ़ रहे थे. ऑफिस से मेरे डेरा कि तरफ आने वाले रास्ते में एक कॉफी की दुकान पड़ती है, जहाँ कुछ युवतियां जमघट लगायें थीं. उसके बाद एक पान की दुकान है. वहां पान खाने के बाद जैसे ही आगे बढ़ा, मुझे हाफ़िज़ नाम का एक नवयुवक दिखाई दिया. वो अपनी ही, या यूँ कहें कि अपने अब्बा के दुकान रुपी ढाँचे के पास खड़ा था. यहाँ साईकिल, स्कूटर का पंक्चर बनता है. दिल किया कि हाफ़िज़ से भी बोलूं कि भाई चलो मुक्ता काशी हो आते हैं. लेकिन मैं उससे नज़र नहीं मिलाना चाहता था. हाफ़िज़ एक पढ़ा लिखा लड़का है, जो कॉमर्स में स्नातक है और कंप्यूटर भी जानता है. पिछले एक साल से उसने मुझसे कह रक्खा है कि कोई उपयुक्त नौकरी मिले तो आप बताना.निःसंदेह उसे अपने अब्बा के दुकान पर काम करना नहीं पसंद है. और मैं इसमें असफल रहा हूँ. आगे वाली दुकान पर एक मुर्गा हलाल हो रहा था. मेरे कदम और भी तेज़ हो गए.

मेरे तेज़ कदम, मेरी नज़र और मस्तिष्क में तेज़ी से रह-रहकर फुदकते हुए विचारों से मात खा जा रहे थे. झुंझलाहट में मैंने लम्बे डग भी भरने शुरु कर दिए. चाहता था कि जल्दी से जल्दी जनसभा स्थल पहुँच जाऊं और अभी ध्यान इधर-उधर कि बातों में ना भटके. फिर लम्बे और तेज़ डगों के सहारे मैंने तनिष्क, टाटा मोटर्स के शो रूम, उन दुकानों में सपने भरे आँखों के साथ घुसते ग्राहक, और उनको मूंह चिढाते एक छोटी सी चाय कि दुकान और उसके नन्हे मालिक को नज़रअंदाज़ करने की कोशिश करते हुए सीधा जा पहुंचा मुक्ताकाशी मंच के बाहर. ऑफिस से कुल डेढ़ किलोमीटर कि दूरी पूरी हो चुकी थी.

जैसा कि अनुमान था, जनसभा स्थल पर गहमा-गहमी थी. पार्टी के पोस्टर थे, झंडे थे, लोग थे,ठेले-खोमचे वाले थे, सशत्र बल थे, मीडिया वाले थे, कुर्सियां थीं, मंच था और हर वो वयस्था उपलब्ध थी जो मुक्ताकाशी मंच को जनसभा स्थल में तब्दील करने के लिए महत्वपूर्ण थे. ऑफिस में अख़बार पढ़ते हुआ पता चला था कि जनसभा स्थल पर जबर्दस्त सुरक्षा व्यवस्था होगी. और ऐसा महसूस भी हुआ. चार से पांच सौ तो जवान रहे ही होंगे.

मंच था. मंच के उपर भी एक मंच था. यह अनुमान लगाना कठिन नहीं था कि मंच के उपर वाले मंच से राहुल जी का भाषण होना तय है. मुक्ताकाशी मंच की पृष्ठभूमि में वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई का किला है. सुबह का कोहरा शाम में धुंध बनकर लौट आया था. मंच और किले की ओर जाती सड़क के दोनों ओर चाट-पकौड़े, टिकिया, गुटखा, सिगरेट आदि के खोमचे लगे थे. गुब्बारे भी बिक रहे थे. जाहिर सी बात थी कि आने वाले श्रोताओं कि सुविधा का पूरा-पूरा ख्याल रक्खा गया था. और आखिर में जनसभा स्थल पर पहुंचा और एक कुर्सी में जा धंसा. थोडा थक गया था.

बाजू में बैठे कुछ बुज़ुर्ग लोगों की बातें मेरे कान तक तरंग कि तरह पहुँचीं. नज़र घुमाकर देखा. धोती, कुरता, सदरी और कांगरेसी टोपी. पक्के और पुराने कार्यकर्ता थे. ४-५ कि संख्या में वे आपस में बातचीत कर रहे थे. एक ने कहा पराशूट से कूद आये हैं प्रत्याशी....दुसरे ने हामी भरी, तीसरे ने कहा कौन अपनी ज़िन्दगी देगा पार्टी के लिए. समझते देर नहीं लगी कि ये लोग वर्त्तमान प्रत्याशी के बारे में बात कर रहे हैं जो हाल ही में पार्टी में आया है और उसी के समर्थन में राहुल जी वोट मांगने आ रहे. सभास्थल का मुआएना करना जरुरी था. १२-१४ हज़ार लोगों कि क्षमता वाले इस मैदान में २-३ हज़ार लोग आये थे. अधिकतर युवा थे. मंच के आगे बल्लियाँ लगीं थीं. अलग अलग दीर्घा बने थे और मीडिया के लोग रणनीतिक जगहों पे कैमरा लगाये थे. श्रोता समूहों में बैठे थे और रह-रह कर नारे बाज़ी कर रहे थे. नारों से स्पष्ट था कि दल के अंदर, बाहरी प्रत्याशी और आंतरिक आकांक्षाओं के बीच सामंजस्य नहीं था. फिर भी, लोग राहुल जी को सुनने के लिए इक्कठे हुए थे. हाँ, झंडे बहुत ऊँचे-ऊँचे लगे थे. कपडे कि पट्टी बहुत बड़ी थी. ऐसे में भ्रम पैदा हो रहा था कि बहुत से लोग झंडे के कारण दिखाई नहीं दे रहे हैं. उधर सड़क से रह- रह कर अलग अलग गुट झंडा लिए ज़िन्दाबाद- ज़िन्दाबाद के नारे लगते हुए जा-आ रहे थे. हर गुट में १०-१५ लोग जरुर थे.

मंच पर एक माइक खड़ा था लेकिन कोई हलचल नहीं थी. मंच के उपर जो मंच था वहां हवा के कारण कुछ हलचल दिख रही थी. शामियाने का पर्दा हिल रहा था. पृष्ठभूमि में दिखने वाला किला अब ओझल होता जा रहा था. छोटे-छोटे बच्चे भी मौजूद थे. उनके झुण्ड का इरादा वहां झंडे के कपडे पर झपट्टा मारकर लूटने का था. लेकिन सभा कि समाप्ति के बाद. तबतक वो खेल-कूद रहे थे. उन्ही के खेल-कूद को देखने में मग्न हो गया मैं.

तभी माइक की घडघडाहट की आवाज़ से मेरा ध्यान टूटा. मंच के नीचे वाले मंच से किसी नेता से दिखने वाले ने घोषणा कि की राहुल जी को आने में अभी थोडा ही समय बचा है, सो तब तक अन्य वक्ता आपसे गुफ्तगू करंगे. और वक्ता आये, उन्होंने जय-जय कर किया, कभी भारत माता कि, कभी अपने पार्टी की जिसने आज़ादी की लड़ाई लड़ी, नमन किया मौलाना आज़ाद को, सुभाष चन्द्र बोस को, और महात्मा गाँधी को और राजीव जी को, इंदिरा जी को को, लाल बहादुर जी को.....आदि. कुल मिलाकर स्थानीय नेताओं के भाषण में बहुत से अनैतिहासिक तथ्य थे. बहुत से तथ्यों का प्रयोग स्थानीय नेताओं द्वारा बुंदेलखंड के जातीय समीकरणों को ध्यान में रखकर किया जा रहा था. घंटा दर घंटा निकला और नेता दर नेता बदले, युवा ह्रदय सम्राट नहीं आये, मंच से बार बार माफ़ी मांगी जा रही थी. और सारा दोष सुबह के गहरे कुहरे पर मढ़ा जा रहा था. श्रोता नेताओं को बोलने ही नहीं दे रहे थे, और नेता कम से कम मीडिया को संबोधित करके भाषण जरुर देना चाहते दिख रहे थे.

क्या इतिहास, क्या भविष्य! वैसे भी कांग्रेस के लक्षित मतदाताओं की उम्र उतनी ही थी जितने वर्षों से वो उत्तरप्रदेश में सत्ता से बहार रही है. सो युवा श्रोताओं को इतिहास से ज्यादा मतलब भी नहीं दिख रहा था. बस एक ही मांग थी जल्दी से राहुल जी को बुलाओ. समय काटने के लिए आयोजकों ने जय हो का धुन बजा दिया, युवा मस्त होकर नाचने लगे.....अब एक लम्बे समय तक मांग नहीं उठी. कुछ देर बाद लगभग आठ , साढ़े आठ बजे घोषणा हुई कि युवा ह्रदय सम्राट आ चुके.

युवराज आये, मंच के उपर वाले मंच पे चढ़े, विपक्ष को लताड़ा, हाथी-साइकल, साइकल-हाथी किया, और जाति कि राजनीति से उपर उठकर विकास कि राजनीति को चुनने का सलाह दिया, जो कि स्थानीय नेताओं के द्वारा दिए गए भाषण और समीकरण के खिलाफ था. मैं भ्रमित था.

बुंदेलखंड के दलितों के घर खुद के खाने का गुण-गान किया और ऐसा लगा कि उनके खाने के पीछे दूरदर्शिता काम कर रही थी. गरीबी कि भी बात हुई, लेकिन मुक्ताकाशी मंच पर उनके श्रोता शांत ही रहे जब गरीबी और गरीबों कि बात आई. ऐसा लगा कि मतदाता समूह गरीबो के प्रति युवराज के भाषण से इत्तेफाक नहीं रखता. थोडा शोर शराबा हुआ तो किसी नेता ने घोषणा कि की नेहरु युवा दल के युवा, कांग्रेस सेवा दल के युवा, एन.एस.यु.आइ के युवा शांत बैठ जाएँ. मतलब साफ़ था, जो युवाओं का समूह था वो दल का ही कैडर था. धत तेरे की......

भाषण ख़त्म हुआ, नेता लोग जाने लगे. लेकिन बहुत से युवा श्रोता कूद कर ऐसे भागे जैसे उन्हें बंधक बना रखा गया था.

रात ज्यादा हो चुकी थी, कोई नौ के आसपास समय हो रहा था. वीरांगना झाँसी की रानी का का किला अँधेरे में खो चुका था, और खो गए थे उस अँधेरे मैं मेरे सवाल भी, जो सुबह से ही मेरे नज़रों के सामने आ आ कर खड़े होते चले गए थे. अब सर्द हवा और तेज़ बहने लगी थी और बारिश का भी अंदेशा फिर बढ़ गया...

By: कुमार रतन.

Comments

i think indians have got a genes of slavery imbibed in them, so no wonder the so called yuvraj and so called janta of indian type of loktantra did what they were expected to do.One comes and poops out something written on paper and some people who are being offered country liquor have to withstand torture for couple of hours.Anyways the article was ok , could have been more penetrative and critical had the writer not wasted the day in office and came directly to mukta kashi manch.