(Report) चलाते हें रिक्शा बोलते हैं विलायती
चलाते हें रिक्शा बोलते हैं विलायती
रवीन्द्र व्यास
खजुराहो: इस छोटे से कस्बे का दुनिया में बड़ा नाम है | यहाँ आने वाले हर देशी -विदेशी पर्यटक का यहाँ के रिक्शा चालकों ,हाकरों से वास्ता पड़ता है |हर कोई इनकी वाक् पटुता से मोहित भी होता है | पर जब उसे यह पता चलता है कि विलायती जुबान में बोलने वाले ये लोग पड़े लिखे नहीं बल्कि अंगूठा छाप हैं ,तो उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहता है | पर यह उनकी मार्केटिंग का तरीका है जो ग्राहकों को उन्ही कि भाषा में बोल कर प्रभावित करता है |
यहाँ सौ से ज्यादा रिक्शा ,ऑटो चलाने वाले वा दो सो से ज्यादा हाकर हैं | इनमे
से ज्यादातर सिर्फ अंगूठा छाप हैं | पर जब भी कोई विदेशी टूरिस्ट इन्हें मिलता है
ये उसी कि जुबान में उससे बात करने लगते हैं | अंग्रेजी ,जापानी ,फ्रेंच,स्पेनिश,जर्मन,
गाँव से रोजगार कि तलाश में खजुराहो आये रामलाल को जब कोई काम नहीं मिला तो रिक्शा चलाने लगा | वो अपनी जिन्दगी कि दास्तान कुछ इस तरह व्यक्त करता है कि लोगों को सोचने पर मजबूर कर देता है | कहता है कि जब हमने रिक्शा चलाना शुरू किया था मुझे कोई विदेशी भाषा नहीं आती थी ,इस कारण में सिर्फ देशी सवारियों कि तरफ ही ध्यान देता था | पर इतने में गुजारा नहीं चल पाता था | धीरे-धीरे हमने भी कई भाषाएँ सीख़ लीं हैं | अब हम सबसे पहले यह जानने का प्रयास करते हैं कि वह किस मुल्क का है फिर उससे उसी कि भाषा में बोलकर अपने रिक्शा में बैठने के लिए कहते हैं | जब उसे खजुराहो घुमाते हैं तो उसे कहाँ क्या है , ये सब भी बताते जाते हैं | कई बार अच्छे लोग मिल जाते हैं तो किराया के अलावा कुछ इनाम वगेरह भी मिल जाता है |
"चलना ही जिंदगी है चलती ही जा रही है " जिंदगी कि गाड़ी चलाने के लिए रिक्शा चालकों का यह दर्शन उनकी किस्मत तो चमका ही रहा है |[बुंदेलखंड मीडिया रिसोर्स नेटवर्क ]
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