(Report) बुन्देलखण्ड में आत्महत्त्याऎं (एक अध्ययन)

बुन्देलखण्ड में आत्महत्त्याऎं
(एक अध्ययन)

अब मैं पेड़ों की डखेतों से काट देने की सजा पाता हूँ।

पंचायत अध्ययन संदर्भ केन्द्र (पास्क)
बलखण्डीनाका बांदा, उत्तर प्रदेश

आपके लिए..

बुन्देलखण्ड विगत 20 वर्षों से सूखा, बाढ़, फसलों मंे कीट उससे उपजी गांव और किसानों में बेरोजगारी और गरीबी परिणामस्वरूप पलायन, कुपोषण, बीमारी और आत्महत्याएं अब बुन्देलखण्ड इन तमाम परिस्थितियों के चलते अपने अस्तित्व के साथ संघर्ष कर रहा है, लेकिन तबाही के यह हालात केवल हमारी सरकारों को ही नहीं बल्कि समाज के जागरूक नागरिक को भी आसानी से समझ में नहीं आते उसी वर्ष बाढ़ और उसी वर्ष सूखा को लोग आश्चर्य से सुनते हैं और फिर ऐसी परिस्थिति को नकार देते हैं।

इस नकारात्मक भाव के चलते बुन्देलखण्ड में गरीबी की पीड़ा अब बेकाबू हो चुकी है सम्भव है लोगों की कालाहाण्डी की यादें पुरानी हो गयी हों अब बुन्देलखण्ड कालाहाण्डी की उन यादों को ताजा करने की ओर निरन्तर अग्रसर है। सरकार ही नहीं स्वैच्छिक सामाजिक संगठन भी विकास की दुष्परिणामों की इतनी गंभीरता को नहीं स्वीकार कर पाते और यहां के लिए जो काम होने चाहिए उस तक पहुंच नहीं पाते।

इन्हीं तमाम स्थितियों को ध्यान में रखते बुन्देलखण्ड में गरीबी के चरमोत्कर्ष और उसके चरम परिणामों भूख, बीमारी और आत्महत्याएं जिनकी संख्या अब यहां दिन में दो चार बार गिनने को मिल जाती हैं इस पर एक अध्ययन करने की आवश्यकता महशूस हुयी। इस अध्ययन में संसाधनों के मद्देनजर पूरे बुन्देलखण्ड की तबाही की एक झांकी प्रस्तुत करने के उद्देश्य से चित्रकूट मण्डल के सभी चार जनपदों बांदा, चित्रकूट, हमीरपुर और महोबा में रोज हो रही आत्महत्याओं का संकलन कर उसका विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है।

पंचायत अध्ययन संदर्भ केन्द्र की अपने सामर्थ और संसाधन अत्यन्त सीमित हैं जिसके चलते यह काम संभव नहीं था लेकिन सहभागी शिक्षण ट्रस्ट लखनऊ के सहयोग और मार्गदर्शन के तहत यह अध्ययन पूरा किया गया जिसकी रिपोर्ट आपके हाथों में है। हमें उम्मीद है गरीबी और बदहाली पराकाष्ठाओं पर पहुंची है इसको ध्यान मंे रख बुन्देलखण्ड को बचाने के लिए आप द्वारा किये जा रहे प्रयासों में यह अध्ययन कुछ नई दिशा दे सके।

यह अध्ययन एक दिन के समाचार पत्र में पांच आत्महत्याओं की खबर से चैकन्ना होकर प्रारम्भ किया गया जिसमें 2003 से आज तक के पास्क के कार्यकर्ताओं, सहयोगियों के अथक प्रयासों की बदौलत पूरा हो सका है जिनके प्रति मैं अपना आभार ज्ञापित करता हूँ। सहभागी शिक्षण ट्रस्ट ने संबल प्रदान कर इस अध्ययन को पूरा करने में आर्थिक संसाधन उपलब्ध कराकर जो सहयोग किया है उसके लिए हम हमेशा आभारी रहेंगे।

अवधेश गौतम
निदेशक

अध्ययन का उद्देश्य

पंचायत अध्ययन संदर्भ केन्द्र (पास्क) उत्तर प्रदेश के दक्षिणी क्षेत्र के लिए एक सहयोगी संगठन के रूप में गठित किया गया है। यहां की सामाजिक, आर्थिक, भौगोलिक तथा भूगर्भीय परिस्थितियां प्रदेश और देश के अन्य किसी भी भू-भाग की परिस्थितियों से एकदम भिन्न हैं। जिसके चलते प्रदेश तथा देश की सरकारों द्वारा विकास के लिए बनाई गयी कोई भी नीति यहां विकास की बजाए विनाश का काम ज्यादा करती है। स्वैच्छिक सामाजिक संगठनों के प्रयास भी यहां बहुत अधिक असरकारी तथा स्थाई प्रभाव नहीं छोड़ पाते।

अतः यहां कि समाजार्थिक परिस्थितियों को गहराई से जानने समझने तथा जान समझकर योजना बनाने के उद्देश्य से पास्क के कोर प्रोग्राम में एक ‘शोध एवं अध्ययन’ भी शामिल किया गया था। क्षेत्र की गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी, पलायन जैसी समस्याओं के कारणों को जानने के बाद भी शासन और प्रशासन तथा नीतिकारों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा था या यूं कहें के कारगर तथा स्थाई समाधान नहीं खोज पा रहे थे। स्वैच्छिक संगठनों के सफल प्रयोगों को भी हमारी सरकारों ने कभी स्वीकारा नहीं।

समस्याएं अब अपने चरम पर हैं यहां का आम आदमी अब टूट गया है। भूख, कुपोषण, बीमारी से अब यहां का किसान आत्महत्या करने को भी मजबूर हैं। लेकिन शासन और प्रशासन इन भूख से मौतों तथा आत्महत्याओं को स्वीकारने को तैयार नहीं है। यह स्वीकारने को भी तैयार नहीं है कि उनकी विकास नीतियों में कोई कभी भी रह गयी है। अतः

1. बुन्देलखण्ड की अनियन्त्रित होती जा रही गरीबी और भूख को उजागर करने के लिए।
2. समस्या पर गहराई से समझ बनाने के लिए।
3. सामाजिक कार्यकर्ताओं की क्षमतावृद्धि तथा
4. जनपैरवी के उद्देश्य से यह अध्ययन किया गया।

अध्ययन की पद्धतिः चूंकि समस्याएं काफी पुरानी तथा गंभीर हैं। अतः सेकेण्ड्री डाटा जो पर्याप्त मात्रा में तथा विश्वनीयता के स्तर पर भी खरा है और उपलब्ध संसाधन के मद्देनजर सेकेण्ड्री डाटा के आधार पर यह अध्ययन किया गया है। अध्ययन के प्रथम चरण में किसानों द्वारा की जा रही उन आत्महत्याओं का संकलन किया गया है। जिन लाशों का पोस्टमार्टम किया जाता है। तथा जिनका रिकार्ड पुलिस विभाग में भी मौजूद हैं। दूसरे चरण में साक्षात्कार और फोकस ग्रुप डिस्कशन पद्धति से अध्ययन किया जायेगा।

अध्ययन के क्षेत्रः उत्तर प्रदेश के दक्षिणी खास कर बुन्देलखण्ड की सारी परिस्थितियां एक जैसी ही हैं। अतः संसाधनों के मद्देनजर चित्रकूट मण्डल के 4 जनपदों बांदा, चित्रकूट, हमीरपुर तथा महोबा जनपदों में किसानों द्वारा की गयी आत्महत्याओं का अध्ययन यहां किया गया है।

क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थितियां: यह क्षेत्र विन्ध्य पर्वत श्रंखला में स्थित है यमुना तथा उसकी सहायक उत्तरवाही नदियों से यह क्षेत्र अभिसिंचित है। पठारी तथा नदी घाटी क्षेत्र होने के कारण यहां उपजाऊ मिट्टी के विशाल क्षेत्र हैं। यहां पडुवा, कावर, मार, दुमट तथा कहीं-कहीं रांकड़ भूमि भी है।

अक्षांस देशान्तर विस्तार

जनपद बांदा :
25020 उत्तर (अक्षांस विस्तार )
80022 पूर्व (देशान्तर विस्तार)

चित्रकूट :
25015 उत्तर (अक्षांस विस्तार )
80044 पूर्व (देशान्तर विस्तार)

हमीरपुर :
25058 उत्तर (अक्षांस विस्तार )
80012 पूर्व (देशान्तर विस्तार)
महोबा :
25017 उत्तर (अक्षांस विस्तार )
79054 पूर्व (देशान्तर विस्तार)

नदियों के प्रभाव के कारण यहां भूगर्भ जल काफी नीचे लेकिन नदियों से दूर के क्षेत्रों में जलस्तर काफी ऊपर भी है। यह क्षेत्र खनिज सम्पदा का भी धनी है। ग्रेनाइट, सैण्ड स्टोन, रंगीन पत्थर, उच्च किस्म की मोरम, लोहा, तांबा, सोना तथा हीरे भी यहां पाए जाते हैं।

यहां यमुना, केन, वेतवा, वागैन, पयश्वनी, चन्द्रावली, विरमा, गड़रा, गुन्ता, चम्बल तथा धसान जैसी विशाल और बारहमासी नदियां तथा सैकड़ों की तादाद में बरसाती नाले और नदियों का यहां जाल फैला है।

जलवायुः

अपने अक्षांश तथा देशान्तर विस्तार की वजह से यहां की जलवायु भी अत्यन्त जटिल है। अत्याधिक बरसात वह भी कुछ समय में। अत्याधिक ठण्डक तथा अत्याधिक गरमी।

जनपद औसत वर्षा मिमी औसत आद्रता दर तापमान
न्यूनतम अधिकतम न्यूनतम अधिकतम
बांदा 750 16 60 2oC 50oC
चित्रकूट 875 14 72 2oC 52oC
हमीरपुर 725 16 70 3oC 49oC
महोबा 700 15 65 2oC 49oC

लोगों के अपने प्रयास

जलवायु सम्बन्धी तमाम विसंगतियों के बाद भी लोगों ने अपनी आजीविका के मजबूत आधार विकसित कर लिए थे। यहां की भौगोलिक सम्पदा तथा थोड़े में काम चला लेने की अपनी प्रवृत्ति के बूते यहां किसान और गांव खूब खुशहाल थे। लोगों ने जो प्रयास किए थे वह इस प्रकार थे।

सागर जैसे तालाबः समूचे बुन्देलखण्ड में तालाबों का जाल बिछा है तालाब इतने बड़े और गहरे कि उनका नाम सागर के साथ जुड़ता है। कुएं इतने गहरे इतने बड़े की किसी भी विपदा में धोखा नहीं दिया पेड़ पौधे इतने कि उनके बीच गांव तलाशना मुश्किल। पेड़ लगाना, कुंआ तथा तालाब खुदवाना लोग पुण्य, प्रतिष्ठा और सम्पन्नता दर्शाने के लिए करते थे।

ऊँची चैड़ी मेंड़ेः एक किसान के गांव के चारो तरफ फैले खेत उसे हर किस्म की मिट्टी में खेती करने के अवसर देते थे। खेत के चारो तरफ ऊंची और चैड़ी मेड़े की खेत में घुटनों तक पानी भरा रहे और मेड़ के ऊपर से बैलगाड़ी निकल जाए। इतना ही नहीं इस क्षेत्र में हजारों हजार बीघे की बड़ी-बड़ी बंधियां आज भी अपने खतम होते अस्तित्व के साथ विद्यमान हैं जो पूरे तीन महीने खेतों को पानी से भरकर उनकी मिट्टी को सड़ा उपजाऊ बनाती और भूगर्भ जल का भरण करती थीं।

सुन्दर फसल चक्रः फसल चक्र इतना सुन्दर की विषम से विषम परिस्थितियों में साल भर परिवार को रोटी देने का ठेका खेत ही लेते थे। एक साल एक खेत में रबी तो दूसरे साल उस खेत में खरीफ। वह भी किसी भी फसल में एक जिंस कभी नहीं बुआई कम से कम तीन जिंस मिलाकर यदि एक धोखा देगी तो दूसरी काम चला देगी। और यदि तीनों फसल साथ दे गयीं तो किसान और उसके मजदूरी दोनों की ही एक एक बेटी की सादी निपट ही गयी। जायद की फसल नदी अथवा तालाब के किनारे और नदियों के रेत में लेकिन यह खेती केवल जल जीवी जातियां करेंगी दूसरी जाति के किसी व्यक्ति ने यह खेती की तो समझिए की उसका सामाजिक स्तर गिर गया।

मजबूत सामाजिक व्यवस्थाः सामाजिक व्यवस्थाएं इतनी व्यवस्थित और मजबूत की यदि खेत में थोड़ा भी पैदा हुआ तो आदमी तो क्या गांव में कुत्ते, बिल्ली, पशु पक्षी भी भूखा न सोंए। हुनर वाली जातियां लोहार, बढ़ई, कुम्हार, तमोली कहार, चमार, डोमार सभी का खेती की पैदावार में हिस्सेदारी जब किसान का घर अमीर तब इनका भी और जब किसान का घर गरीब तब इनका भी।
बाजार भी गांव की इस सामाजिक व्यवस्था से नियंत्रित था जो वस्तु गांव में उपलब्ध है तथा जो गांव के लिए लाभकारी नहीं है क्या मजाल कि बड़ा से बड़ा सेठ और साहूकार उन वस्तुओं को बाहर से लाकर गांव में बेंच सके।

तबाही की शुरूआत

बुन्देलखण्ड सृष्टिकाल से ही अपनी परिस्थितिकीय तथा भूगर्भीय सम्पदा के लिए जाना जाता रहा है। यहां की इस सम्पदा से ललचाकर हमेशा ही देश के बाहर से तथा देश के अंदर के भी शासकों ने यहां लूटपाट के लिए आक्रमण करते रहे हैं। यदि विदेशी लुटेरे लूट कर अपने देश वापस चले गए तब भी कोई खास बात नहीं लेकिन यदि लूटपाट के बाद वह यही देश में ही रूककर शासन करने लगे तब तो उन्होंने बुन्देलखण्ड से चुन-चुनकर बदले लिए।

बुन्देलखण्ड प्राकृतिक सम्पदा के साथ ही साथ अपने स्वाभिमान, लड़ाकूपन और कम से कम संसाधनो में जीकर अपनी प्राकृतिक सम्पदा तथा आन-मान-सान की रक्षा में संधर्ष के लिए भी विख्यात रहे है। यही कारण है कि ईस्ट इण्डिया कम्पनी के दमन के खिलाफ बुन्देलखण्ड ने 1856 में आजादी के लिए संधर्ष छेड दिया था। यही कारण है कि ईस्ट इण्डिया कम्पनी के बाद जब वर्तानिया क्राउन ने गद्दी सम्भाली तो उसने यहाॅ को तबाह करने में कसर नहीं छोड़ी।

चूकि शासक विदेशी था अतः लोगों ने संभल-संभल कर अपने गाॅव परिवार उनकी आन-बान अपनी प्राकृतिक सम्पदा तथा प्राकृतिक सम्पदा की रक्षा करने वाली परम्पराओं प्रथाओं की भी किसी तरह से रक्षा कर ली थी। लेकिन वर्तानिया शासन के खात्मे के बाद तो बुन्देले स्वदेशी सरकार के मुरीद हो गयें। बुन्देलों ने सब कुछ अपनी सरकार कहें जाने वाले शासकांे के हवाले कर दिया।

देश को आजादी मिलने के बाद तो हमारे देशी शासकों ने विकास के नाम पर जो नीतियां बनाई उन्होने यहाॅ की आजीविका तथा पर्यावरण संरक्षण की सारी परम्पराओं प्रथाओं को ही नही बल्कि बुन्देलखण्ड के सहजीवन और सहअस्तित्व पर आधारित समाज की जडो को भी हमेशा -हमेशा के लिए नष्ट कर दिया।

विकास की सरकारी नीतियां: व्यक्तिवादी विकास की नीतियों ने यहॅा की संयुक्त परिवार प्रणाली को ही नष्ट कर दिया है। संयुक्त परिवार के विखण्डन के कारण यहाॅ कृषि जोत तथा खेतों के जोत का आकार अत्यन्त छोटा हो गया। खेती करने के मायने केवल खेत जोतना, बोना और काटना मात्र रह गया। पशुपालन तथा कृषि आधारित कुटीर उद्योग समूल नष्ट हो गए।

जोत का आकार छोटा होता देख हमारी सरकार ने चकबन्दी प्रणाली शुरू की जिसने घर-घर रिश्वत का प्रचलन पैदा किया समाज एक दम विखण्डित हो गया। पेड़ों की मजाकिया लागत लगने के कारण खेतों में एक भी पेड़ खड़ा नही रह पाया। खेतो के चारो तरफ ऊँची चैड़ी मेडों केा तोड़ डालने के लिए किसान मजबूर हो गया जो मेडे़ खेतों में महीनो पानी भरे रहने तथा भूगर्भ जल संरक्षण में मदद करती थी। कम्पनियेा और बाजार के दबाव में हमारे शासको ने कृषि नीति बनाई जिसने हमारे पारम्परिक बीजों और पारम्परिक कृषि तकनीक का सफाया हो गया जो दैवी आपदाओं के समय भी यहाॅ के लिए वरदान साबित होते रहे है।

मानवकृत दैवीय आपदाएं: देशी शासकों ने केवल वोट की लालच में अनावश्यक, अवैज्ञानिक तथा धटिया तकनीकि से यहाॅ नदियों में बाॅध, पुल, रपटे तथा चेक डैम बनाए गये जिन्होने बुन्देलखण्ड में उसी वर्ष सुखा और उसी वर्ष बाढ को निरन्तरता प्रदान की।

बुन्देलखण्ड के मशहूर गाॅव-गाॅव में फैले चन्देल कालीन तालाब कूडेदान बन गए जिनमें अब शहरों में मकान और गाॅवों में खेत बना डाले गये। कृषि की उन्नत तकनीकि और बीजो के लिए यहाॅ के किसान को पहले आदी बनाया गया और जब वह आदी हो गया तब वह सारी चीजे किसान की पहुॅच से साजिशन दूर कर दी गयी।

औसत वर्षाः यहां की वार्षिक औसत वर्षा 760 मि.मी. है। जिन सालों में यहां भयंकर सूखा पड़ता है उन सालों में भी यहां राष्ट्रीय वार्षिक औसत वर्षा से अधिक पानी ही बरसता है।

फिर भी सूखाः इस क्षेत्र में वार्षिक वर्षा की कुल वारिस का पानी दो से पांच दिनों के अंतराल ही में बरस जाता है। शेष साल सूखा रहता है चूकि मेड़े और बंधियां सब टूट गयी हैं अतः बरसात का पानी अपने साथ खेतों की उपजाऊ मिट्टी भी बहाता हुआ नदियों के साथ सागर में समा जाता है। और साल भर के लिए यहां सूखा छोड़ जाता है।

सूखा और बाढ़ एक साथः यह आश्चर्य जनक किन्तु सत्य है कि इस क्षेत्र में सूखा और बाढ़ एक साथ ही अपना साम्राज्य कायम करता है। एक साथ बरसा पानी नदियों में भीषण बाढ़ और उससे तबाही मचाता है और फिर शेष दिनों मंे पानी न बरसने के कारण यहां सूखा रहता है।

चरम पर गर्मी और ठण्डकः कहने को तो समसीतोष्ण जलवायु का क्षेत्र है लेकिन इस क्षेत्र का तापमान 20ब न्यूनतम तथा 520ब अधिकतम तक पहुंचता है। तापमान की इस विचित्रता के कारण वह वनस्पति जो क्षेत्र में आद्रत सन्तुलन में सहायक होती थी अब पूरी तरह से विलुप्त होती जा रही है।

आद्रता संकटः बाढ़ और सूखा के पदचाप अब तो सबको सुनाई दे जाते हैं लेकिन क्षेत्र में आद्रता दर की गिरावट की किसी को खबर नहीं है जो हमारी फसलों के बरबाद होने का एक कारण तो है ही साथ ही यहां के लोगों को पालतू जंगली पशुओं के स्वास्थ्य और स्वाभाव में भी जबरजस्त रूप से प्रभाव डालता है।

यहां फरवरी और मार्च में आद्रता दर मात्र 14 से 21 रह जाती है जो यहां की प्रमुख फसल रवी में पौधों में दानों पड़ने का समय फरवरी मार्च का ही होता है उस समय वातावरण में आद्रता की कमी मिट्टी और हवा दोनों की ही नमी सुखा देती है जिससे फसले अपरिपक्व अवस्था में पक जाती है। फसलें देखने में तो खूब अच्छी लगती है लेकिन पैदावार बिल्कुल नहीं होती।

फिर भी जिंदा रहने की कोशिश : यहाॅ के किसानो ने पहले तो घर में जमीन के अन्दर गडे धन को खोद कर बेचा काम चलाया, फिर खेत बेचा, देश के कोने कोने में भटक कर मेहनत मजदूरी से अपने बीवी बच्चो का पेट चलाया अब वहाॅ भी गुॅजायश नही तो सरकारी गैर सरकरी कर्ज लिए। लेकिन अब कर्जे की अदायगी अैार पेट की भूख के कारण किसान को सस्ता सरल आसान तरीका मिल गया है आत्महत्या!

वर्ष 2002 में किसानेा की आत्म हत्याओं का ग्राफ अचानक बढ गया। स्थिति की भयंकरता के मद्देनजर पंचायत अध्ययन संदर्भ केन्द्र ने मुद्दे पर एक अध्ययन करने की योजना बनायी और इस अध्ययन के लिए सहभागी शिक्षण ट्रस्ट ने सहयोग का आश्वासन दिया जिसके आधार पर यह अध्ययन प्रारम्भ किया अध्ययन की यह रिपोर्ट 1 जनवरी 2003 से अगस्त 2006 तक का प्रकाशित की जा रही है।

तथ्य संकलन : किसान की खेती कितनी हानिकारक हुर्ह। फसल किस किसान की कितनी कम हुई यह पता लगाना कठिन ही नही वरन बेमानी भी होगा वह इसलिए कि सरकारी आॅकड़ों में प्रतिवर्ष प्रति व्यक्ति आय में लगातार वृद्धि गुणात्मक वृद्धि हो रही है। इसी प्रकार वर्षा शुरू होने के पहले ही वर्षा की सम्भावना मात्र से कृषि उपज के आकड़े प्रस्तुत कर देते है।

इसलिए कृषि उपज वृद्धि और प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि ने किसानों और गाॅव पर क्या प््राभाव छोड़ा इस बात की जानकारी करने की आवश्यकता महसूश की गयी थी। गाॅव और किसान की विकास दर को जानने के लिए गाॅव छोड़ रोजी की तलाश में बाहर जाने वालों के आकड़े एकत्र किए गए।

पलायन:

सरकार के आकड़ों मंे यह दर्ज है कि रोजी की तालाश में कितने लोग घरों में ताले डाल कर ईट की चीमनियों के लिए अथवा सूरत और पंजाब कमाई के लिए चले जाते है। कोई किसान अपना घर परिवार गाॅव कुटुम्ब छोड़कर तब जाता है जब गाॅव में उसका जीवन दूभर हो जाता और उसकेा अपने जीवन में अन्धकारा दिखाई देने लगता है। सरकार के आकड़ों में ऐसे कितने परिवार है जिनको अपना जीवन अन्धकार में दिखाई पड़ता है यह सारणी बताती है।

जिला पलायन करने वाले परिवार जनसंख्या अनुमानित
बांदा 1964 9820
हमीरपुर 3249 16245
महोबा 7103 35515
चित्रकूट 1578 7890
योग 13894 69470

परिवार सहित पलायन के यह आंकड़े सरकारी लेकिन अतर्रा स्थित एक स्वैच्छिक सामाजिक संगठन कृष्णार्पित सेवा संस्थान ने अपने कार्य के लिए बाॅदा जिले के महुआ विकास खण्ड़ की कुछ ग्राम पंचायतों में पलायन करने वालों का अध्ययन किया था। जिसके तुलनात्मक अध्ययन से निम्न तथ्य उजागर होता है कि सरकारी आंकड़ों की तुलना में पलायन कहीं बहुत अधिक है।

पलायन-विवरण

गांव का नाम पलायन करने वाले परिवारों की संख्या  पलायने करने वाले सदस्यों का विवरण
 मनीपुर 186 292
 माधौपुर 48 55
पिथौराबाद 40 40
 जरर 68 68
 रागौल 33 50
गोबिन्दपुर 32 53
योग 407 558

आत्महत्याएं

किसान अपने तथा परिवार की बेहतरी के लिए निरन्तर और बेहतर प्रयास करता है। लेकिन इन कोशिसों में वह एक प्रयास जरूर करता है कि लोग यह न जान पाए कि वह गरीब हो गया हे या उसके परिवार के सामने भूखों मरने या कर्ज देने वाले से वेइज्जत होने वाला हैं। यह मामला उसके परिवार तथा उसके परिवार की सामाजिक प्रतिष्ठा और उसकी आन-बान-शान से जुड़ा हुआ हैं।

लेकिन सब कुछ गवां देनेके बाद भी वह अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा नही बचा पाता उसकी आन-बान-शान मिट्टी में मिलने लगती है तब फिर वह आत्महत्या करने को तैयार होता हैं । और फांसी पर झूल जाता हंै।

आत्महत्या के जिन आकड़ो का विश्लेषण यहाॅ किया गया है। आत्महत्याओं की यह संख्याऐं पुलिस विभाग में इस लिए मौजूद है चुकिं विश्लेषण में वही आत्महत्याएं सामिल की गयी है जिनका पोस्टमार्टम कराया जाता है। मृतक का लिंग, उसकी उम्र, उसका पता, आत्म हत्या का कारण तथा आत्महत्या का माध्यम वहीं अकिंत किया गया है जो परिवार के लोगों के द्वारा पुलिस को सूचना देते समय और पोस्टमार्टम हाऊस में परिवार के लोगों द्वारा समाचार संकलन के लिए मौजूद पत्रकारों को बताया जाता है।

जिलेवार आत्महत्याएं: सारणियों को देखने से प्रतीत होता है कि बाॅदा जिले में सर्वाधिक गरीबी और आत्महत्याएं है जब कि ऐसा है नही। चूकिं पंचायत अध्ययन संन्दर्भ केन्द्र का मुख्यालय बाॅदा में स्थित है और बाॅदा में रहकर यह कार्य प्रारम्भ किया गया रिर्पोट भी समाचार पत्रों में प्रकाशित है। इस लिए बाॅदा के पत्रकार संवेदित होकर आत्महत्या के बाद पोस्टमार्टम के लिए आने वाली प्रत्येक लाश को प्रमुखता के साथ अपने समाचारेां में स्थान दिया यह कार्य हमीरपुर, महोबा तथा चित्रकूट जनपदों में शायद नही हो पाया।

आत्महत्या के सारे आकड़े चूकिं समाचार पत्रों से ही लिए गए हैं इसलिए बाॅदा में अधिक बाकी जिले में कम आत्महत्याएं दिखाई पड़ती है।

आत्माहत्याओं का मामला अत्यन्त संवेदनशील मामला है। अतः पक्के सबूतों के साथ काम करने के तहत ही समाचार पत्रों द्वारा मिली जानकारी का उपयोग किया गया । समाचार पत्रों में वही आत्महत्याएं प्रकाशित होती है जिनका पोस्टमार्टम होता है अतः समाचार पत्रों के साथ ही पुलिस के पास भी ये आकड़े मौजूद है

आकड़ो के मुकाबलें आत्महत्याएं कई गुना: आकड़ो में जो आत्महत्याएं शामिल है वह मात्र वो है जिनका पोस्टमार्टम होता है जो आत्महत्याओं की वास्तविक संख्या से बहुत ही कम है आत्महत्याओं के इन आकड़ो में वह आत्महत्याएं शामिल नही है जिन आत्महत्याओं के बाद पुलिस लाशों का पंचनामा करके उन्हे परिजनों को अन्तिम संस्कार के लिए सौप देती है इन आत्महत्याओं में वह संख्याएं भी शामिल नही है जो आपसी समझ वाले गाॅव मंे आत्महत्या के बाद पुलिस को सूचना दियें बिना ही लाशों का अन्तिम संस्कार कर दिया जाता है उनके साक्ष्य भी कहीं मौजूद नही है।

अगर किसानों द्वारा की जा रही आत्महत्याओं के वास्तविक आंकड़े एकत्र किए जाएं तो उनकी संख्या दसियों हजार भी पहुंच सकती है।

Age group wise Suicide Case Between 2003 to 24 Aug 2006

Year District Age Total
    0-20 20-40 40-100 Age not found  
2003

Banda
Chitrakoot
Hamirpur
Mahoba

24
03
06
01
86
04
11
18
17
01
02
02
51
03
03
06
178
11
22
27
 
2004 Banda
Chitrakoot
Hamirpur
Mahoba
 
31
02
17
07
 
132
21
39
23
 
19
01
07
05
 
18
01
02
03
 
200
25
65
38
 
2005 Banda
Chitrakoot
Hamirpur
Mahoba
22
03
08
03
 
23
05
40
17
 
22
06
09
03
 
91
03
02
21
 
158
17
59
44
 
2006 Banda
Chitrakoot
Hamirpur
Mahoba
17
02
12
05
 
58
07
23
16
 
16
01
04
03
 
16
04
06
06
 
14
14
45
30
 
  Total 163 523 118 236 1040

ऊपर की टेबिल से स्पष्ट होता है कि शून्य से बीस वर्ष के बच्चे और किशोर भी आत्म हत्याएं कर रहें है। इनमें अधिकांश तो वह संख्या सामिल है जिनमें पूरे परिवार ने जहर खाकर या िफर मा ने बच्चों सहित आग लगाकर या कुए में कूद कर आत्म हत्याएं की है। इसमें बालिकाओं की संख्या अधिक है।

जीवन की जिम्मेदारियां सम्भालते ही गरीबी का सामना, हमाशा तथा परिवार की माली हालत खराब होने पर बटवारें के कारण 20 सेे 40 वर्ष के वयस्क सर्वाधिक आत्म हत्याएं कर रहें है। बीमारी गरीबी के कारण इलाज न करापाने अथवा परिवार की दयनीय आर्थिक हालात में भी बहुओं द्वारा बटवारे की जिद या फिर बैंकों के कर्जे की वसूली से तंग आकर बुजुर्ग भी आत्म हत्याएं कर रहे है।

Reason wise Suicide Case Between 2003 to 24 Aug 2006

Year District Dowry Family Tension Illness Poverty Unknown Total
2003

Banda
Chitrakoot
Hamirpur
Mahoba

4
0
1
1
81
4
9
6
10
0
0
5
23
1
0
5
60
6
12
10
178
11
22
27
2004 Banda
Chitrakoot
Hamirpur
Mahoba
2
0
0
0
107
8
20
21
19
2
4
3
24
2
11
3
48
13
30
11
200
25
65
38
2005 Banda
Chitrakoot
Hamirpur
Mahoba
1
0
0
0
74
6
26
12
18
1
2
3
19
1
8
10
46
9
23
19
158
17
59
44
2006 Banda
Chitrakoot
Hamirpur
Mahoba
1
0
2
0
41
8
14
12
11
1
5
2
3
3
0
9
45
5
21
13
107
14
45
30
  Total 12 459 86 122 371 1040

इस टेबिल से यह स्पष्ट होता है कि पारिवारिक तनाव से ग्रस्त होकर अधिकांश आत्म हत्याएं हो रही है। ऐेसे कारणों से आत्म हत्या करने वालों के परिवारों का फौरी अध्ययन करने पर पता लगता है कि परिवारों में तनाव गरीबी के कारण ही पैदा होता है। लेकिन परिवार की प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए लोग गरीबी न बता कर उसके परिणाम को ही पुलिस तथा पोस्ट मार्टम के समय पत्रकारों को बताते है।

आत्म हत्या करने के अज्ञात कारणों की संख्या भी कम नहीं है। इसमें सन्देह नही की गरीबी से ऊबकर की गयी आत्म हत्या को लोग अज्ञात बताते है। यह भी पाया गया है कि अवैध सम्बन्धों, जुआं-शराब के लती लोगों की आत्म हत्या करने वालों के परिवारी जनो ने कुछ केशेज में अज्ञात कारण बताया।

बीमारी और दहेज के कारणेां से में बहुत बड़ा योगदान यहाॅ की गरीबी है। गरीबी के कारण की गयी आत्महत्याओं में केवल बैंक के साहूकारों के कर्जे या फिर भुखमरी के शिकार लोगों के द्वारा यह आत्महत्याएं की गयी हैं!

Suicide Case According to Weather wise (BANDA)

ऊपर की दोनों सारणियों सभी चार जनपदों में वर्ष 2003 से अगस्त 2006 तक की गयी आत्म हत्याओं का मौसम के अनुसार विश्लेषण प्रस्तुत करती हैं। उक्त सारणियों से स्पष्ट है कि आत्महत्याओं की संख्या अप्रैल से जून और उसके बाद फिर अक्टूबर से दिसम्बर के मध्य सर्वाधिक आत्महत्याएं हुयी हैं।

बुन्देलखण्ड में अप्रैल से जून की तिमाही में ही यहां की प्रमुख रबी की फसल खेत से कटकर खलिहान में, खलिहान से मड़कर घर में आती है। फसल खेत से घर तक लाने में किसान पूरे साल की योजना बनाता है। वह इस साल बिटिया की शादी कर लेगा, कुछ कर्जा अदा कर देगा, बेटे को पढ़ने के लिए बाहर भेजेगा, बाप का इलाज किसी बड़े डाक्टर से करा देगा लेकिन फसल की हालत देख उसका कलेजा सूख जाता है। इसी बीच उसकी जीवन संगनी सहयोग के लहजे में कहती है ‘इस साल भी जेवर रेहन से नहीं छूट पायेंगे’ किसान या मजदूर के पास आत्महत्या के अलावा और कौन रास्ता है।

इसके बाद सबसे अधिक आत्महत्याएं अक्टूबर से दिसम्बर के बीच होती है। इस समय तक किसान और मजदूर के घर खाने की दिक्कत होती है परिवार को जिलाने के लिए अनाज अब क्या बेंच कर लाए। और वह अधिकतम आत्महत्याएं करता है।

आत्महत्याएं तो साल भर होती हैं इसका एक प्रमुख कारण है कि बैंक कर्जे या फिर माल गुजारी के लिए तहसीलों की गाड़ियों की आवाज सुनकर किसान कोने कतरे छिप जाता है। वर्ना उसे अमीन का चपरासी उसे बांधकर 14 दिन के लिए हवालात में डाल देगा।

आखिर वह कब तक भागे। आत्महत्या के अलावा उसके पास क्या रास्ता है। शुक्र है कि अभी तक किसान न तो संगठित हुआ और न ही तहसील के कर्मचारियों की सामूहिक हत्याएं की।

विश्लेषण

आत्महत्या के कारणः उपरोक्त सारणियों का विश्लेषण करने पर यह ज्ञात होता है कि किसानों द्वारा की गयी आत्महत्याओं के पीछे मूल और प्रमुख कारण गरीबी ही है। आत्महत्या के जो कारण परिवार के लोगों द्वारा पुलिस अथवा पत्रकारों को आत्महत्या के जो कारण बताए जाते हैं वह या तो गरीबी है या फिर गरीबी के परिणाम।

आत्महत्या की उम्रः आत्महत्या करने वालों की उम्र के हिसाब से अगर देखें तब भी यही संकेत मिलते हैं कि जिस उम्र में व्यक्ति के ऊपर परिवार की जिम्मेदारी का भार पड़ता है तभी उसे गरीबी का अभास होता है और कहीं रास्ता न सूझता देख वह आत्महत्या कर लेतें हैं।

मौसमवार आत्महत्याएं: मौसम के अनुसार यदि आत्महत्याओं का विश्लेषण यदि किया जाए तो जिस समय में खेत से फसल किसान के घर में आती है उस समय यह संख्या अधिक बढ़ जाती है। रवी तथा खरीफ की फसलों तथा इसके अतिरिक्त भी सादी व्याह के मुहूर्त और स्कूलों में दाखिली के समय जब परिवार का मुखिया अपनी उन जिम्मेदारियों का निर्वाह नहीं कर पाता तब वह आत्महत्या करता है। लेकिन कर्ज की वसूली तो साल भर चलती है जिसके चलते लोग आत्महत्या करते हैं।

निष्कर्ष

ऊपर के विश्लेषण से स्पष्ट है कि बुन्देलखण्ड में निरन्तर घाटे में जा रही खेती के कारण किसान अब बदहाली से ऊबकर आत्महत्याएं करने को ही एक मात्र विकल्प के रूप में देख रहे हैं। निरन्तर कुपोषण के कारण लोग बीमार पड़ते हैं। गरीबी और बीमारी की पीड़ा एक साथ न झेल पाने के कारण भी लोग आत्महत्या कर लेते हैं।