(Report) तो फिर छला गया बुंदेलखंड

Bundelkhand

तो फिर छला गया बुंदेलखंड _______अब हमार का हुई, मुक्यमंत्री धोखा दीन है!

बाँदा - बीते  कल मुलायम सिंह के जनम दिवस पर पचास हजार किसानो के कर्ज माफ़ी की घोषणा कर समाज वादी पार्टी घूम - घूम कर हल्ला मचा रही है की उसने चुनाव के समय किये गए किसानो से वादे को पूरा किया है, मगर बुंदेलखंड के कर्ज , मर्ज और बेकारी की संघर्स यात्रा में मजबूर किसान जो साल भर बरसात के सहारे किसानी पे दाव लगाता है के साथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंतरी ने महज छल ही किया है, अकेले बाँदा की ही बात करे तो तीन लाख किसानो में मात्र बाईस सो सत्रह किसानो का ही कर्ज माफ़ हो सकेगा इस  दकियानूसी कर्ज माफ़ी घोषणा में , साफ तस्वीर ये है की बाँदा  से 31 मार्च 2012 तक 1600 करोड़ रूपये किसानो पर कर्ज अलग - अलग बैंको से बकाया है जिसमे की बैंक आफ बड़ोदा से 9 करोड़ , बैंक आफ इंडिया से 80 करोड़ , एच . डी .एफ . सी . बैंक से 10 करोड़ , पंजाब नेशनल बैंक से 1.62 करोड़ ,स्टेट बैक आफ इंडिया से 81 करोड़ , यूनियन बैंक आफ इंडिया से 450 करोड़ ,इलाहाबाद यू . पी . ग्रामीण बैंक से 465 करोड़ , सेन्ट्रल बैंक आफ इंडिया से 11.50 करोड़ और भूमि विकास,अर्बन कोपरेटिव बैंक से 498 करोड़ रुपया कर्ज किसानो का है जो किसान क्रेडिट कार्ड और अन्य से लिया गया है , कल मुख्यमंत्री ने जो कर्ज माफ़ी की घोषणा की है उसके मुताबिक जिस किसान ने भूमि विकास , सहकारी बैंक से कर्जा लिया है उसका ही कर्ज इस शर्त के साथ माफ़ होगा की उसने लिए गए कर्ज का दस प्रतिसत जमा कर दिया हो या फिर अपनी जमीन बैंक के पास गिरवी रखी हो , बुंदेलखंड में भूमि विकास सहकारी बैंक के मात्र 2217 किसान ही है यानि बुंदेलखंड के सातों जिलो में किसानो के साथ महज छल ही किया गया है, इधर जिला प्रशासन ने अधिकारियो जो किसान क्रेडिट कार्ड का अतिरिक्त टारगेट दिया था उसमे कैंप लगाकर और क्रेडिट कार्ड कर्ज की सुविधा लेने के लिए बना दिये गए है यानि सरकार की मंशा साफ है की पहले कर्जा लो और फिर हम कर्ज माफ़ी की छल पूर्ण की गई घोषणा से वोटो की मंदी पर सियासत का खेल करेगे , आखिर बुंदेलखंड का ही किसान हर बार - बार बार क्यों ठगा जाता है ये बड़ा सवाल है इन अवसर वादी सरकारों से जो किसानो को सिर्फ अपना वोट बैंक ही मानती है , उसको किसान की जिंदगी के रोज मर्रे की उथल पुथल से लेना - देना नही है , वह सरकारों से ये ही पूछते है की निजामो हमें ही क्यों अपनी कुर्सी को हथियाने का साधन मानते हो ?

आशीष सागर सामाजिक कार्यकर्ता बुंदेलखंड - बाँदा