(Story) केन नदी कर रही पुकार, मत रोको नदियों की धार

केन नदी कर रही पुकार, मत रोको नदियों की धार

  • सैकड़ो मूर्तियों के जल विर्सजन से कराह रही कर्णवती
  • केवट बिरादरी ने किया केन का उद्धार
  • पंगु हो चुका है बुंदेलखंड का जिला प्रषासन

प्रकृति सम्यक जल संरक्षण की कड़ी में सामाजिक संगठन प्रवास ने एक मर्तबा फिर बुंदेलखंड के उन लोगो को साथ लेकर चित्रकूट धाम बांदा जनपद में केवट बिरादरी के साथ एक जल स्वच्छता अभियान की शुरूआत की जिसमें उस तबके ने अभियान का साथ दिया जो वास्तव में पानी की कीमत अपने जीवन की रोजी रोटी से जोड़कर देखते है। बीते दिनों नवरात्रि दुर्गा पूजा के पष्चात सैकड़ो मूर्तियो द्वारा न सिर्फ केन की जल धारा को रोका गया बल्कि दो सैकड़ा मूर्तियों से जिन्हे रंग बिरंगे केमिकल युक्त पदार्थ, कांच की चूड़िया, भारी भरकम बांस बल्लियों के ढांचे के साथ बहाया गया पाट दिया था।

बताते चले कि पिछले साल की तरह इस दफा भी संगठन ने एक जनअपील जारी करते हुये स्थानीय मूर्ति संगठनों से जल विर्सजन न करने की अपील की थी। लेकिन हुआ वही जो कि पानी को अपाहिज बना देने वाले प्रषासन की मंषा के अनुरूप अपने धार्मिक उन्माद को पूरा कर लेने में ही खुषी का अवसर मानते है। साल दर साल हजारो टन मिट्टी जिस प्रकार से केन की जलधारा में मिलाकर उसे पूरने का कार्य अंजाने में ही सही खुद बंुदेलो द्वारा किया जा रहा है उसे देखकर शब्द यह कहने के लिये विवष हो उठता है कि कर्णवती को केन बनाया, बंुदेलों ने नही बचाया, कभी सूखा तो कभी जल संकट, बंुदेली किस्मत में ही क्यों अकाल समाया ? जन अभियान की शुरूआत बिना किसी सरकारी मदद व संसाधन से की गयी जिसको अमली जामा पहनाने में नदी के तट पर बसने वाले निषाद समाज ने अपने पसीने की आहूति देकर सफल बनाने से की।

कहीं न कहीं बधाई के पात्र जनपद के वे मीडिया कर्मी, टी0वी0 चैनल्स भी है जो बंुदेलखंड में गुजरे तीन दषको से जीवन प्रत्याषा के साथ खत्म हो रहे पानी को देखते है। निषाद कुनबे के श्रीलाल, विजय, कल्लू, त्यागी, अजीत, योगेन्द्र, महेष, प्रबोध, विवेक कुमार ने जिस तरह से बीच दलदल में जाकर जिस अथक लगन में डूबकर मूर्ति, मलबे, नुकीले तारो के जाल हटाकर वहां फैली तमाम तरह की प्रदूषण जनित सामग्री को आग के हवाले किया है वह संदेष उन लोगो से जन अपील ही है कि अगले वर्ष 2011 में इसकी पुनरावृत्ति न हो ताकि दिनो दिन बढ़ते हुये अधार्मिक और प्राकृतिक विनाषकारी कार्य को प्रकृति के समर्थन में परमार्थ के लिये पूर्ण विराम दिया जा सके। करोड़ो रूपयों की पानी को बचाने वाली उन योजनाओं को ऐसे नजीर बनाने वाले दुस्साहसिक कामों से सीख लेनी चाहिये जिनके लिये करोड़ो का बजट महज विकास को बंद बोतलों के पानी बेचे जाने की योजना के साथ तैयार किया जाता है। जल जीवन का वह महत्वपूर्ण अंग है जिसे यदि मानव शरीर से अलग कर प्रदूषणयुक्त बना दिया जाये तो निष्चित ही मनुष्य की जिंदगी को नासूर कहना अनुचित नही है।

आषीष सागर, प्रवास