(Story) एक स्कूल जहाँ दीवालों से मिलता ज्ञान

एक स्कूल जहाँ दीवालों से मिलता ज्ञान

रवीन्द्र व्यास
छतरपुर:
स्कूल की दीवालों पर लिखी किताबी बातों को देख कर हर कोई भ्रमित हो जाता है, कि क्या वह वाकई सरकारी स्कूल में आया है /साफ सुथरा स्कूल ,अनुशासित छात्र,विधालय की हर दीवाल और छत पर किताबी कोर्स का ज्ञान,स्कूल की बाहरी दीवाल पर गांव वालों के लिय ेव्यवहारिक ज्ञान की बातें।

यह सब कर दिखाया है सेना के एक रिटायर्ड जवान राघवेन्द्र पुरोहित ने,रिटायर्डमेन्टके बाद शिक्षक बने इस जवान की पहली नियुक्ती बिजावर विकास ख्ण्ड के मामौन प्राथमिक पाठशाला मे 1998 में हुई थी । स्कूल के नाम पर जो भवन था उसमें गाव के दाउ लोगों का कब्जा था, स्कूल में भुसा भरा था और जानवर बंधते थे । पुरोहित बताते हैं कि पहले दिन मात्र 12 बच्चे स्कूल आऐ ओर यहां पहले से पदस्थ शिक्षक ने बताया कि मात्र इतने ही बच्चे पढने आते हें । हमनें गांव वालों से बात की लोगांे को समझाया दूसरे दिन संख्या बढ कर21 हो गई । गाव के लोगो को भरोसा नही हो रहा था कि हफता पन्द्रह दिन में खुलने वाला स्कूल रोज खुलेगा । कक्षाऐं पेड के नीचे लगती रही ,गांव वालों को समझा बुझा कर किसी तरह स्कूल ेके कमरे खाली करवाए, निकाले गए दरवाजे खिडकी वापस गांव वालों से लेकर,जन सहयोग से स्कूल में लगवाए। अब गांव वालों को भरोसा हो चला था कि नए मासाब हमारे बच्चों के हित में अच्छा ही करेगे। इसी विश्वास के बल पर उन्होंने जन सहयोग से 30$30 का कच्चा कमरा बनवा लिया ।अब कक्षाए पेड के नीचे नही बल्की कमरे में लगने लगी ।

गाव के जो बच्चे स्कूल से भागते थे उन्हें अब स्कूल का इंतजार रहने लगा । पुरोहित गुरू ने स्कूल को सही मायने मे गुरूकुल बना दिया था । रात में भी बच्चे स्कूल में रूकने लगे गुरू जी सुबह 4 बजे बच्चों को उठा देते,5 बजे तक वे अपनी पढाई करते, 5बजे अपने.अपने धर जाते 6 बजे तक तराताजा होकर व नाशता कर वापस स्कूल आ जाते, 6 बजे से शुरू होता व्यायाम और योग का कार्यक्रम 7 बजे से फिर स्कूल की कक्षाऐं शुरू हो जाती।

पुरोहित बताते हैं कि2005 मामौन के इस स्कूल को माध्यमिक स्कूल का दर्जा मिल गया,2006 में भवन बन गया अबनए पुराने को मिलाकर 8 कमरे है,ं।2008 में विधालय को हाई स्कूल का दर्जा मिल गया । अब विधालय दो शिफटों में संचालित होने लगा है । प्राथमिक मे 3 माध्यमिक मे 2 और हाई स्कूल में 3 शिक्षक हैं । विधालय की हर दीवाल ,छत,फर्श मानो बच्चों को ज्ञान का संदेश देता है। वे कहते हैं कि स्कूल की दीवाल पर कक्षा 1 से 8वी तक का सारा सिलेबस लिखवा दिया है, छतों पर ब्रम्हांण्ड की जानकरी बनवाई है। इस के स्कूल की बाउण्डरी वाल के बाहरी भाग पर गाव वालों के लिये संदेश के सूत्र वाक्य लिखवाए गये हें । वे इसके पीछे कारण बतातंे है कि आज विधालय की छात्र संख्या 450 के करीब है, उस हिसाब से शिक्षकों की संख्या कम है। अतः ये सेाचा गया कि जब दीवाल पर पूरी किताब होगी तब छात्र जब उन्हें देखेगा उसे इस बात का ज्ञान हो जायेगा। और पढाने में सुविधा होगी । 1270 की आबादी वाले इस ग्राम पंचायत स्तर के गांव में 1998 तक मात्र 2 लोग ही हायर सेकेण्डरी पास थे,आज कई लोग ग्रेजुएट हो गए है,। इस स्कूल में अब गांव के ही नही आस पास के लोग भी अपने बच्चों को प्रवेश दिला रहें।


इस स्कूल का पिछले दिनों यूनिसेफ वालों ने भी निरीक्षण किया था,यहा की व्यवस्था से खुश होकर उनहोने इसे प्रदेश का आदर्श स्कूल माना था ।ओर डेस्क ,बडी चटाई,कुर्सी,नोटिस बोर्ड,खेल का सामान दिया था,। मंप्रं. के शिक्षण आयुक्त बी.आर.नायडू ने इसे स्वयं आकर देखा था और इस तरह की व्यवस्था प्रदेश मे अन्य जगहों पर लागू करने की बात कही थी।