(Report) खंडहर हो गई ब्रिटिश कालीन कपास मिल

खंडहर हो गई ब्रिटिश कालीन कपास मिल

"धराशायीः ब्रिटिश काल में बनी मिल की शेष बची चिमनी"
महोबा। कोई हाट न कारोबार फिर भी बड़ीहाट के नाम से मशहूर शहर का मुहाल बड़ीहाट ब्रिटिश काल में कपास एवं देसी घी का प्रमुख केंद्र रहा है। यहां अंग्रेजों के समय स्थापित की गई कपास मिल रखरखाव व कुशल प्रबंधन के अभाव में आज खंडहर में बदल चुकी है। किसी जमाने में हजारों मजदूरों की रोजी रोटी का इंतजाम करने वाली मिल पूरे देश में जानी जाती थी। देश के प्रमुख शहरों को माल भेजा जाता था। बदलते वक्त के साथ सब कुछ खत्म हो गया और चिमनी के रूप में पुरानी यादें ही रह गई हैं।

[ Kapas Mill ]

शहर के मुहाल बड़ीहाट में तकरीबन 1860 से 1945 तक बड़े पैमाने पर कपास व दशी घी की खरीद फरोख्त की जाती थी। काफी बड़े क्षेत्र में हाट लगती थी। जिसके चलते मुहाल का नाम ही बड़ीहाट पड़ गया। आज भी इसे इसी नाम से ही जाना जाता है। हालांकि अब हाट के नाम पर यहां सन्नाटा ही है। दुर्जन सिंह व कस्सी राठौर उस समय के कपास के सबसे बड़े व्यवसायी थे। वे किसानों से कपास व घी के अलावा गेंहू, अलसी सहित अन्य खाद्यान्न की खरीद भी करते थे। मुहाल में तेल पिराई का काम भी किया जाता था। तकरीबन आधा सैकड़ा घरों में कोल्हू मशीनें लगी थीं। जिले में सिचाई के साधन सुलभ होने के कारण आसपास के ग्रामीण अंचलों के किसान बड़े पैमाने पर कपास की पैदावार करते थे और बड़ीहाट में लाकर बेचते थे। कपास के कारोबार को ध्यान में रखते हुये उस समय के बड़े रईस शिवचरण तिवारी ने नगर के मुहाल रायकोट में कपास मिल की स्थापना की थी।

कुछ लोगों का मानना है कि गया प्रसाद तिवारी ने मिल की स्थापना की थी। मिल में सैकड़ों श्रमिक कार्य करते थे। माल ढोने वालों, बेचने वालों को अलग-अलग अप्रत्यक्ष रूप सेकाम मिलता था। यहां से तैयार माल मुंबई, दिल्ली, भोपाल तक जाता था। श्री तिवारी की मृत्यु के बाद मिल बंद हो गई। तब देश की आजादी का दौर था। देखरेख के अभाव और कुशल प्रबंधन न होने से मिल में लगी मशीनें तथा अन्य सामान धीरे-धीरे चोरी हो गया। मिल और गोदाम खंडहर में तब्दील हो गया। ब्रिटिश कालीन मिल आज पूर्ण रूप से खंडहर में बदल चुकी है। मिल की चिमनी ही प्रतीक के रूप मे खड़ी अपनी पुरानी बुलंदी की दास्तां बयां कर रही है।


[Azhar Khan]

Comments

The story of mill is represented the current situation of every village of Bundelkhand. In my view , the people of Bundelkhand are responsible for these all, because they are not so active as they must be, about our history and our present infrastructure. I don't know when Bundelkhand is so back in progress. After our freedom since 1947, the minister or the person, who have had taken the position to take our village and district in good position with other state, were all lazy or un-educated. Politics of Cast and Religious is very powerful in Bundelkhand , that is more important to make Bundelkhand in back stage. Right candidates has never been selected for Bundelkhand Development. whenever I goes to my village I feel, I'm in the place of India, which still waiting for freedom.