(Article) बुन्देलखण्ड: घटते हुए जंगलों व वन्य जीवों की कम होती संख्या से जैव विविधता को खतरा

बुन्देलखण्ड: घटते हुए जंगलों व वन्य जीवों की कम होती संख्या से जैव विविधता को खतरा

आंकड़ों के खेल में सरकारे बनी तमाशबीन

वैश्विक भूमण्डलीकरण व जलवायु परिवर्तन से मचा हुआ चैतरफा हल्ला कोपेनहैगन से लेकर बुन्देलखण्ड की सरजमीन तक आ पहुंचा लेकिन हाल फिलहाल दूर दूर तक इससे उबरने के आसार दिखाई नहीं पड़ते हैं। वो भी ऐसे हालात में जबकि बेतरतीब पहाड़ों का खनन व उनमें प्रवास करने वाले वन्य जीव जन्तुओं का विस्थापन और घटते हुए वन क्षेत्र से भूगर्भ जलस्तर एवं पर्यावरण अपनी यथा स्थिति से तबाही की एक नई इबारत की तरफ लगातार बढ़ता चला जा रहा है। जन सूचना अधिकार 2005 से प्राप्त आंकड़ों पर गौर करें तो हालात बड़े नाजुक व संवेदनषील हैं मगर क्या करें जब प्रषासन में बैठे बिचैलिये और सरकारें संवेदनाहीन हो चुकी हैं ऐसे में नक्कारखाने में ढोल पीटना खुद के सर फोड़ने जैसा है। गौरतलब है कि बुन्देलखण्ड के छः जनपदों में क्रमषः प्रभागीय वनाधिकारियों से जो तथ्य हासिल हुये हैं वे पर्यावरण और ग्लोबल वार्मिंग के लिये किस हद तक जिम्मेवार हैं यह बानगी है इन आंकड़ों की पेशगी।

जनपद बांदा में ही कुल वन क्षेत्र 1.21 प्रतिशत शेष है जबकि राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार किसी भी भू-भाग में 33 प्रतिशत वन क्षेत्र अनिवार्य रखा गया है। वहीं यहां 1995 से लेकर 2009 तक कुल 17 व्यक्तियों को वन्य जीव हिंसा अधिनियम के तहत जीवों पर हत्या के लिये दण्डित किया गया है। इनमें से 6 अपराधियों पर औपचारिक अर्थदण्ड की कार्यवाही करते हुए 10 व्यक्तियों का मामला अभी भी मान्नीय न्यायालय में विचाराधीन है और 1 व्यक्ति बतौर मुल्जिम 2009 से फरार है। यहां विलुप्त होने वाले जीवांे में चील, गिद्द, गौरेया व तेंदुआ है इसके साथ-साथ दुर्लभ प्रजाति के काले हिरन जो कि बुन्देलखण्ड के सातों जनपद में सिर्फ बांदा, हमीरपुर व चित्रकूट में ही पाये जाते हैं की संख्या जनपद बांदा मंे 59 है। जनपद चित्रकूट मंे 21.8 प्रतिशत वन क्षेत्र है। यहां पायी जाने वाली अति महत्वपूर्ण वन औषधियां गुलमार, मरोड़फली, कोरैया, मुसली, वन प्याज, सालम पंजा, अर्जुन, हर्रा, बहेड़ा, आंवला और निर्गुड़ी हैं। वर्ष 2009 की गणना के मुताबिक यहां काले व अन्य हिरनों की कुल संख्या 1409 है। यहां का रानीपुर वन्य जीवन विहार 263.2283 वर्ग किमी0 के बीहड़ व जंगली परिक्षेत्र में फैला है जिसे कैमूर वन्य जीव प्रभाग मिर्जापुर की देखरेख में रखा गया है।

जनपद महोबा में 5.45 प्रतिषत वन क्षेत्र है और यहां तेंदुआ, भेड़िया, बाज विलुप्त होने की कगार पर हैं। जनसूचना के अनुसार जनपद महोबा में काला हिरन नहीं पाया जाता है तथा महत्वपूर्ण वन्य औषधियां सफेद मूसली, सतावर, ब्राम्ही, गुड़मार, हरसिंगार, पिपली यहां की मुख्य वन्य औषधि हैं जो कि अब विलुप्त होने की स्थिति में हंै। महोबा सहित पूरे बुन्देलखण्ड में वर्ष 2008-09 में विशेष वृक्षारोपण अभियान कार्यक्रम मनरेगा के तहत 10 करोड़ पौधे लगाये गये थे। इस जनपद के विभिन्न विभागों द्वारा 70.7 लाख पौध रोपण कार्य किया गया है। जिसमें कि 59.56 लाख पौध जीवित है। इस वृक्षारोपण में शीशम, कंजी, सिरस, चिलबिल, बांस, सागौन आदि के वृक्ष रोपित किये गये हैं। इसके साथ ही जनपद झांसी में 70.50 लाख का लक्ष्य रखा गया था। जिसके सापेक्ष 71.61 लाख वृक्षारोपण किया गया और वर्तमान में 65.744 लाख पौध जीवित है जो कि कुल पौधरोपण का 91.81 प्रतिषत है। ऐसा प्रभागीय वनाधिकारी डाॅ0 आर0के0 सिंह का कहना है कि महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि बुन्देलखण्ड के अधिकतर जनपदों ने इस तथ्य को छुपाया है कि उनके यहां कितने प्रतिषत पौधरोपण हुआ और कितना जीवित है। यह पूर्णतः सच है कि 10 करोड़ पौधे भी आकाल और पानी की लड़ाई लड़ने वाले बुन्देलखण्ड में जंगलो को आबाद नहीं कर सकी हैं।

जनपद हमीरपुर में कुल 3.6 प्रतिषत ही वन क्षेत्र शेष हैं यहां भालू, चिंकारा, चीतल, तेंदुआ, बाज, भेड़िया, गिद्ध जैसे वन्य जीव आज षिकारियों के कारण विलुप्त होने की कगार पर हैं। दुर्लभ प्रजाति का काला हिरन यहां के मौदहा कस्बे के कुनेहटा के जंगलों में ही पाया जाता है जिनकी संख्या सिर्फ 56 रह गयी है। जनपद जालौन में 5.6 प्रतिषत वन क्षेत्र है और यहां पर काले हिरन नहीं पाये जाते हैं। इस वन प्रभाग नें 1990 से लेकर 2010 तक वन्य जीव हिंसा मंे दण्डित किये गये सभी आरोपियों की अनुसूचि को जनसूचना में शायद इसलिये उजागर नहीं किया ताकि विलुप्त होते जंगल और जीवों की फेहरिस्त मंे अपराधियों का नाम दर्ज न हो।

जनपद झांसी से मिली जानकारी के अनुसार कुल क्षेत्रफल 5024 वर्ग किमी0 है। अर्थात 502400 हेक्टेयर जिसका 33 प्रतिषत (165792) क्षेत्रफल 33420.385 हेक्टयेर अर्थात यहां पर कुल 6.66 प्रतिशत वन क्षेत्र शेष है इस प्रकार 26.34 प्रतिषत हेेक्टेयर वन क्षेत्र शेष होना बाकी है। आंकड़ों की दौड़ कुछ भी बयान करती हो लेकिन यह एक जमीनी हकीकत है कि जनपद बांदा व महोबा के प्रभागीय वनाधिकारियों ने यह तो मान ही लिया है कि गिरते हुए जलस्तर, बढ़ते हुए तापमान, घटते हुए वन के साथ दुर्लभ प्रजाति के वन जीवों का विलुप्त होना और पहाड़ों के खनन से उनका विस्थापन पर्यावरण के लियेे आसन्न भयावह स्थिति के सूचक हैं। हमारे वातावरण में विभिन्न औद्योगिक निर्माण इकाईयों, प्रदूशित जीवन शैली से बढ़ रहे उपकरण व वस्तुओं के प्रयोग से उत्पन्न होने वाला अपषिष्ट अवयवों के निरन्तर घुलने से पारिस्थिकीय तंत्र बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। ग्रीन हाउस गैसे का निरन्तर उत्सर्जन व तापमान में वृद्धि भविष्य मंे मानव रहित वन्य जीवन के अस्तित्व की कठिन समस्या के रूप में प्रकट होकर जलवायु परिवर्तन का एक मात्र कारण बनेगा प्रभागीय वन अधिकारी बंादा नुरूल हुदा का मानना है कि प्राकृतिक छेड़छाड़ से बायोडायवरसिटी, (जैविक विविधता) असन्तुलित होकर मानव अस्मिता पर प्रष्नवाचक चिन्ह खड़ा कर देगी। इसका ताजा तरीन उद्धरण है कि इस वर्ष बुन्देलखण्ड के समस्त सातों जनपद में पिछली अधिक वर्षा के बाद भी खेतों में उपज के फलस्वरूप पैदा हुआ अनाज बीज की लागत के अनुरूप न होकर बहुत ही पतला और स्वादहीन है। एक दो नहीं ऐसे सैकड़ों किसान इस बात की गवाही देते नजर आते हैं कि कहीं न कहीं प्रकृति की बनावट से खिलवाड़ और वातावरण में मनुष्य का अधिक हस्ताक्षेप आज उसकी ही असमाधानहीन समस्या का विकराल रूप ले चुका है। जिसके स्थायी समाधान ढूढ पाना सम्भवतः आने वाली पीढ़ी के लिये अतिश्योक्ति पूर्ण कार्य होगा।

‘‘जंगल को जिन्दा रहने दो, नदियों को कल कल बहने दो’’

आशीष सागर, प्रवास बुन्देलखण्ड

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इस प्रजाति पर जो मौजूदा संकट है, उसके परिप्रेक्ष्य में आशीष दीक्षित जी का यह लेख उपयोगी जानकारी उप्लब्ध करा रहा है, और सरंक्षण के लिए प्रेरित भी, बशर्ते कथित वन्य जीव सरंक्षकों व सरकारी मुलाजिमों के कानों में जुँवे रेंगते है या हमेशा की तरह....