Bundelkhand
किसान आत्महत्याओं का थोक विक्रेता बुन्देलखण्ड ?
बुन्देलखण्ड में लगातार पड़ रहे सूखे ने किसानो की कमर तोड दी है
। अपनी गाढ़ी कमाई पहले ही लुटा चुका किसान कर्ज लेकर इस उम्मीद में फसल उगाता है कि
इस बार कुछ बोझ हल्का कर सके, लेकिन हर बार नियति के खेल मे प्रकृति की मार से छला
जा रहा है यहां का किसान। किसान आत्महत्या पर एक पड़ताल।
बुन्देलखण्ड - किसान असंगठित वर्ग है, वह सिर्फ भीड़ है, 90 करोड़
की भीड़ जिसकी शक्ति को जातीयों मे बांटकर किसान का शोषण सरकार और व्यवसायिक बाजार
कर रहे है। आज सत्ता और समाज की ठेकेदारी का आधार सैद्धान्तिक रूप से जाति नही बल्कि
अंक गणित की दहाई की गिनती है फिर भी राजनीति में जाति शब्द की स्वीकार्यता है।
यह
व्यवस्था सिर्फ इसलिये है कि 90 करोड़ किसान, गांववासियों को जाति की घुट्टी देकर
मुट्ठी भर शोषक बेबस और बदहाल मजलूम किसान का शोषण करते रहे किसान शोषण, गरीबी, और
कर्ज से तंग आकर जब आत्महत्यायें करता है तब शोषक वर्ग अपने मिशन पर गौरवान्वित होता
है । और उसके भरोसे को मजबूती मिलती है। इस वर्ग में एक सोच ऐसी भी है जो मानती है