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बुंदेलखंड : एक सांस्कृतिक परिचय - बुंदेलखंड के रासीकाव्य (Bundelkhand Ke Rasikavya)

बुंदेलखंड : एक सांस्कृतिक परिचय 

बुंदेलखंड के रासीकाव्य (Bundelkhand Ke Rasikavya)

मध्यप्रदेश के पन्ना, छत्तरपुर, टीकमगढ़, दतिया, सागर, दमोह, नरसिंहपुर जिले तथा जबलुपर जिले की जबलपुर एवं पाटन तहसीलों का दक्षिणी और दक्षिण-पश्चिमी बाग ; होशंगाबाद जिले की होशंगाबाद और सोहागपुर तहसीलें, रायसेन जिले की उदयपुर, सिलवानी, गैरतगंज, बेगमगंज, बरेली तहसीलें एवं रायसेन, गौहरगंज तरसीलों का पूर्वी भाग ; गुना जिले की कुरवई तससील और विदिशा, बासौदा, सिरोंज तहसीलों के पूर्वी-भाग ; गुना जिले की अशोकनगर (पिछोर) और मुंगावली तहसीलें और ग्वालियर गिर्द का उत्तर-पूर्वी भाग ; किंभड जिले का लहर तहसील का दक्षिणी भाग ।

उपर्युक्त भूभाग के अतिरिक्त उसके चारों ओर की पेटी मिश्रित भाषा और संस्कृति की है। भाषाविज्ञान की दृष्टि से भी ये सीमायें न्यायसंगत हैं। डॉ० वीरेन्द्र वर्मा ने "हिन्दी भाषा का इतिहास' नामक ग्रंथ में लिखा है - ""बुन्देली बुंदेलखंड की उपभाषा है। शुद्ध रुप में यह झांसी, जालौन, हमीरपुर, ग्वालियर, ओरछा, सागर, नरसिंहपुर, सिवनी तथा होशंगाबाद में बोली जाती है। इसके कई मिश्रित रुप दतिया, पन्ना, चरखारी, दमोह, बालाघाट तथा छिंदवाड़ा के कुछ भागों में पाये जाते हैं ।''

श्री प्रतिपाल सिंह जूदेव ने अपने एक लेख ""बुंदेलखंड की सीमायें'' के अन्तर्गत निम्नलिखित छन्द में बुंदेलखंड की सीमाओं का उल्लेख किया है -

उत्तर समथल भूमि, गंग जमुना सु------ है प्राची दैस कैमूर, सोन कोसी सुलसति हैं। दक्खिन रेवा, विंध्याचल तनशीतल करनी है। पश्चिम में चम्बल, चंचल सोहति मन हरनी, तिनमीहा राजे गिरि, वन सरिता सहित मनोहर । कीर्तिस्थल बुंदेलन को बुंदेलखंड वर ।

इसी प्रकार एक अन्य कवि ने अपनी कविता में बुंदेलखंड का परिचय दिया है-

""खुजराहो, देवगढ़ का दुनिया भर में बखान ।

पत्थर की मूर्तियों को मानो निल गए प्रान।।

चन्देरी, ग्वालियर की ऐतिहासिक कीर्ति-छटा।

तीर्थ अमरकंटक, चित्रकूट, बालाजी महान।।

सोनागिरि, पावा गिरि, पपौरा के धर्म-स्थल।

अपने धर्म-संस्कृति पर हमको भारी घमंड।।

जय जय भारत अखंड जय बुंदेलखंड ।।''

विंध्य पर्वत श्रेणियों के चतुर्दिक विभिन्न सरिताओं के आवेष्टित बुंदेलखंड की प्रकृति भी अत्यन्त स्मरणीय है। भारतवर्ष के ठीक मध्य में यह क्षेत्र चार प्रमुख नदियों के आयात में आबाद है। ये चारों सरिताएं यमुना, नर्मदा, चंबल और बेतवा   भी मानी जाती हैं पर अक्षांशों में २३ ० , ४५ ० , और ५० ० उत्तरीय तथा ७७ ० , ५२ ० , और ८२ ० पूर्वी भू रेखाओं के मध्य यमुना, टोंस, नर्मदा और कालीसिंधु को भी परि----- किया जाता है। कर्क रेखा बुंदेलखंड के दक्षिण में पड़ती है अत: वह सभी तोष्ण कटिबन्ध के गर्भ में पड़ता है। बुंदेलखंड का प्रमुख पर्वत विंध्याचल पुराणों में भी अपनी विशेषता के लिए प्रसिद्ध है। समस्त प्रदेश में पर्वत श्रेणियाँ दृश्यमान है। ये प्रकार की मानी जाती हैं -

१.      दक्षिण में विंध्याचल श्रेणी पश्चिम से पूर्व तक फैली है। इसकी चौड़ाई १२ मील और समुद्र सतह से ऊँचाई दो हजार फीट या इससे अधिक है ।

२.      पन्ना श्रेणी

३.      माडर का पहाड़

४.      कैमूर श्रेणी - इसकी चौड़ाई १० से ३० मील तक तथा समुद्र सतह से ऊँचाई एक हज़ार फीट से तीन हज़ार फीट तक है। बुंदेलखंड की पर्वतीय सीमाओं में उत्तर में विंध्याचल और दक्षिण में सतपुड़ा पर्वत को भी माना जाता है।

बुंदेलखंड के एक नाग "दशार्ण' के आधार पर स्पष्ट है कि "ॠण शब्द दुर्ग भूमि जले च इति यादव' के समान्तर दशार्णों देश: नदी च दशार्णो की उक्ति कें कात्यायान वस्तुत: पश्चिम के दशार्ण की चर्चा कर रहा था । कालिदास ने मेघदूत में दशार्ण संबन्धी दो श्लोक लिखे हैं जो बुंदेलखडं की प्रकृति का परिचय देते हैं -

पाण्डुच्छायोपवन वृत्तय: केतकै सूचि भिन्नै -

नीडारम्र्गुह बलि भुजा माकुल ग्राम चैत्या

त्वय्था सन्नै परिणत कल श्याम जम्बू वनान्ता

संपत्स्यन्ते कतिपय दिन स्थायि हंसा दशार्णा

तेषां दिक्षु प्रथित विदिशा लक्षणां राजधानी,

गत्वा सद्य: फलम विकलं

कामुकत्वस्य लब्धा

तीरोपान्तस्तनित सुभगं पास्यसि स्वदयास्मात्

सुभभंग मुखमिवे पयोवेत्रक्त्याशच लोमि ।

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बुंदेलखंड : एक सांस्कृतिक परिचय - बुंदेलखंड का सीमांकन (Bundelkhand Ka Seemankan)

बुंदेलखंड : एक सांस्कृतिक परिचय

बुंदेलखंड का सीमांकन (Bundelkhand Ka Seemankan)

सीमांकन का अर्थ यहा पर किसी ऐसी कृत्रिम रेखा से नहीं है, जो किसी राजनीतिक और विधिरहित दृष्टिकोण से नियमित की गयी हो, वरन ऐसे प्राकृतिक सीमांत से है, जो उस क्षेत्र के ऐतिहासिक परिवेश, संस्कृति और भाषा के अद्भुत ----- को सुरक्षित रखते हुऐ उसे दूसरे जनपदों से अलग करता हो। राजनीतिक भूगोल के विद्वानों ने सीमांत और सीमा के अंतर को भलीभाँति स्पष्ट किया है।

किसी भी जनपद के सीमांकन के लिए तीन आधार प्रमुख होते हैं -

भू-आकारिक, प्रजातीय और कृत्रिम ।

भू-आकारिक आधार पर सीमा का निर्धारण पर्वत, नदी, झील आदि से होता है, क्योंकि वो अधिक स्थायी अवरोधक हैं। उदाहरण के लिए बुंदेलखंड के दक्षिण मे महादेव, मैकेल ऐसे पर्वत हैं जिनको पार करना प्राचीन काल में अत्यन्त कठिन था और उत्तर-पश्चिम में भी चंबल के खारों और बीहड़ों की एक प्राकृतिक रुकावट विद्यमान थी । प्रजातीय आधार में जाति भाषा, संस्कृति और धर्म अर्थात पूरा सांस्कृतिक वातावरण समाहित है। कभी-कभी जनपद की सांस्कृतिक इकाई भू-आकारिक सीमा को पार कर जाती है, किंतु उसके कुछ ठोस कारण होते हैं। कृत्रिम आधार से मेरा तात्पर्य उन सीमाओं से है, जिन्हें व्यक्ति राजनीतिक सुविधा के लीए स्वयं खींचता है अथवा जो दो भू-भागों के बीच समझौते या संधि से अंकित की जाती है। बुंदेलखंड के सीमांकन मे इस आधार का महत्व नही है।

बुंदेलखंड के सीमांकन के अनेक प्रयत्न मिलते हैं, जिनके विवरण और विश्लेषण से भी एक स्पष्ट स्वरुप बिंबित होना स्वाभाविक है. भू-आकारिक सीमांकन नये नही हैं, किन्तु भौतिक आधार पर निर्धारण नवीन होना संभव है। प्रसिद्ध भूगोलवेत्ता एस० एम० अली ने पुराणों के आधार पर विंध्यक्षेत्र के तीन जनपदों -विदिशा, दशार्ण एवं करुष का सोन-केन से समीकरण किया है। इसी प्रकार त्रिपुरी लगभग ऊपरी नर्मदा की घाटी तथा जबलपुर, मंडला तथा नरसिंहपुर जिलों के कुछ भागों का प्रदेश माना है। वस्तुत: यह बुंदेलखंड की सीमा-रेखाएँ खींचने का प्रयत्न नहीं है किंतु इससे यह पता चलता है कि उस समय बुंदेलखंड किन जनपदों में बंटा था ।

इतिहासकार जयचंद्र विद्यालंकार ने ऐतिहासिक और भौगोलिक दृष्टियों को संतुलित करते हुए बुंदेलखंड को कुछ रेखाओं में समेटने का प्रयत्न किया है -

""(विंध्यमेखला का), तीसरा प्रखंड बुंदेलखंड है जिसमें बेतवा (वेत्रवती), धसान (दशार्ण) और केन (शुक्तिगती) के काँठे, नर्मदा की ऊपरली घाटी और पंचमढ़ी से अमरकंटक तक ॠक्ष पर्वत का हिस्सा सम्मिलित है। ॠक्ष पर्वत का हिस्सा सम्मिलित है। उसकी पूरबी सीमा टोंस (तमसा) नदी है।''

वर्तमान भौतिक शोधों के आधार पर बुंदेलखंड को एक भौतिक क्षेत्र घोषित किया गया है और उसकी सीमायें इस प्रकार आधारित की गई हैं - ""वह क्षेत्र जो उत्तर में यमुना, दक्षिण   में विंध्य पलेटो की श्रेणियों, उत्तर-पश्चिम में चम्बल और दक्षिण-पूर्व में पन्ना-अजयगढ़ श्रेणियों से घिरा हुआ है, बुंदेलखंड के नाम से जाना जाता है। उसमें उत्तर प्रदेश के चार जिले - जालौन, झांसी, हमीरपुर और बाँदा तथा मध्य-प्रदेश के चार जिले - जिले दतिया, टीकमगढ़, छत्तरपुर और पन्ना के अलावा उत्तर-पश्चिम में किंभड जिले की लहर और ग्वालियर जिले की मांडेर तहसीलें भी सम्मिलित है।'' ये सीमारेखाएं भू-संरचना की दृष्टि से उचित कही जा सकती हैं, किन्तु इतिहास संस्कृति और भाषा की दृष्टि से बुंदेलखंड बहुत विस्तृत प्रदेश है।

बुंदेलखंड की भौगोलिक, सांस्कृतिक और भाषिक इकाइयों मे अद्भुत समानता है। भूगोलवेत्ताओं का मत है कि बुंदेलखंड की सीम स्पष्ट हैं और भौतिक तथा सांस्कृतिक रुप में निश्चित हैष वह भारत का एक ऐसा भौगोलिक क्षेत्र है, जिसमें न केवल संरचनात्मक एकता, भौम्याकार और सामाजिकता का आधार भी एक ही है। वास्तव में समस्त बुंदेलखंड में सच्ची सामाजिक, आर्थिक और भावनात्मक एकता है।

बुंदेलखंड में निम्नलिखित जिले और उनके भाग आते हैं और उनसे इस प्रदेश की एक भौगोलिक, भाषिक एवं सांस्कृतिक इकाई बनती है।


१.  उत्तर प्रदेश के जालौन, झाँसी, ललितपुर, हमीरपुर जिले और बांदा जिले की नरैनी एवं करबी तहसीलों का दक्षिण-पश्चिमी भाग ।

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बुंदेलखंड : एक सांस्कृतिक परिचय - बुन्देलखण्ड की महिमा (Bundelkhand Ki Mahima)

बुंदेलखंड : एक सांस्कृतिक परिचय 

बुन्देलखण्ड की महिमा (Bundelkhand Ki Mahima)


यह बुन्देलखण्ड की धरती है, हीरे उपजाया करती है।
कालिन्दी शशिमुख की वेणी, चम्बल, सोन खनकते कंगना।
विन्ध्य उरोज साल बन अंचल, निर्मल हंसी दूधिया झरना।
केन, धसान रजत कर धौनी, वेत्रवती साड़ी की सिकुड़न।
धूप छांह की मनहर अंगिया, खजुराहो विलास गृह उपवन।
पहिन मुखर नर्मदा पैंजनी, पग-पग शर्माया करती है।
यह बुन्देलखण्ड की धरती, हीरे उपजाया करती है।

परमानन्द दिया ही इसने, यहीं राष्ट्रकवि हमने पाया।
इसी भूमि से चल तुलसी ने, धर-धर सीताराम रमाया।
चित्रकूट देवगढ़ यहीं पर, पावन तीर्थ प्रकृति रंगशाला।
झांसी के रण-बीचि यहीं पर, धधकी प्रथम क्रान्ति की ज्वाला।
पीछें रहकर यह स्वदेश को, नेता दे जाया करती है।
यह बुन्देलखण्ड की धरती, हीरे उपजाया करती है।

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(E-BOOK) Bundelkhand Developing a Marketing Strategy for Fisheries Intervention aiming at Livelihood Promotion in Bundelkhand Region of India

(E-BOOK) Bundelkhand Developing a Marketing Strategy for Fisheries Intervention aiming at Livelihood Promotion in Bundelkhand Region of India

CONTENTS

Abbreviations And Acronyms........................................................................3
1 Executive Summary.....................................................................................4
2 About The Study........................................................................................9
2.1 Inland Fisheries And Livelihoods In India................................................9
2.2 Initiatives Of Oxfam In Bundelkhand Region Of India..............................9
2.3 Context Of The Study ............................................................................10
2.4 Vrutti Livelihood Resource Centre..........................................................10

2.5 Study Objectives......................................................................................11
2.6 Scope & Methodology.............................................................................12
3 Findings Of Literature Review.....................................................................13
3.1 Inland Fisheries In India ..........................................................................13
3.2 Freshwater Fish Market In India .............................................................14
4 Existing Value Chain...................................................................................15
4.1 Predominant Inland Fish Value Chains In The Project Area...................15
4.2 Current Marketing Practices By Cooperatives .......................................15
4. 3 Activities, Actors And Enterprises............................................................17
4.4 Key Actor – Commission Agent Cum Trader ............................................19
4.5 Key Actor – Retailers.................................................................................20
4.6 Bds Providers............................................................................................20
4.7 Experience Across Cooperatives In Marketing .........................................21
5 Findings Of The Study..................................................................................22
5.1 Consumer Profile & Fish Markets.............................................................22
5.2 Market Channels .....................................................................................23
5.3 Margins ...................................................................................................25
5.4 Market Potential......................................................................................27
5.5 Role & Involvement Of Women ..............................................................29
5.6 Gap In Market Access..............................................................................30
5.7 Gap In Capacities Of Fishing Communities..............................................32
6 Recommendations.....................................................................................33
6.1 Summary Findings..................................................................................33
6.2 Proposed Marketing Strategy ................................................................34
7 Risk Factors................................................................................................36
8 Limitations Of The Study ..........................................................................37
Annexure 1: Profile Of Respondents............................................................38

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बुंदेलखंड : एक सांस्कृतिक परिचय Bundelkhand : Ek Sanskritik Parichay

बुंदेलखंड : एक सांस्कृतिक परिचय Bundelkhand : Ek Sanskritik Parichay

Courtesy: इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र

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Alternatives (DA), the world's first social enterprise dedicated to sustainable development, is a research and action organisation striving to deliver socially equitable, environmentally sound and economically scalable development outcomes.

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