बुंदेलखंड की लोक संस्कृति का इतिहास
बुंदेलखंड का सीमांकन (Bundelkhand Ka Seemaankan)
सीमांकन से मेरा तात्पर्य किसी ऐसी कृत्रिम रेखा खींचने से नहीं है, जो किसी राजनीतिक और विधिविहित दृष्टिकोण से नियमित की गयी हो, वरन् ऐसे प्राकृतिक सीमांत से है, जो उस क्षेत्र के ऐतिहासिक परिवेश, संस्कृति और भाषा के अद्भुत ऐक्य को सुरक्षित रखते हुए उसे दूसरे जनपदों से अलग करता हो । राजनीतिक भूगोल के विद्वानों ने सीमांत और सीमा के अंतर को भलीभाँति स्पष्ट किया है ।-१ भौगोलिक सरणियों के प्रति मेरा कोई विशेष आग्रह नहीं है, फिर भी जनपद की एकरुपता के अध्ययन में उसकी प्राकृतिक विशेषताएँ-स्थिति, धरातलीय बनावट, जलवायु आदि सहायक होति हैं । प्रत्येक जनपद भौगोलिक के साथ-साथ ऐतिहासिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और भाषिक इकाई भी होता है । इस दृष्टि से सीमांकन के तीन आधार प्रमुख हो जाते हैं-भु-आकारिक, प्रजातीय और कृत्रिम । भू-आकारिक आधार पर सीमा का निर्धारण पर्वत, नदी, झील आदि से होता है, क्योंकि वे अधिक स्थायी अवरोधक होते हैं । उदाहरण के लिए, बुंदेलखंड के दक्षिण में महादेव, मैकल ऐसे पर्वत हैं जिनको पार करना प्राचीन काल में अत्यंत कठिन था और उत्तर-पश्चिम में भी चंबल के खारों और बीहड़ों की एक प्राकृतिक रुकावट विद्यमान थी । प्रजातीय आधार में जाति, भाषा, संस्कृति और धर्म अर्थात् पूरा सांस्कृतिक वातावरण समाहित है । कभी-कभी जनपद की सांस्कृतिक इकाई भू-आकारिक सीमा को पार कर जाती है, किंतु उसके कुछ ठोस कारण होते हैं । कृत्रिम आधार से मेरा तात्पर्य उन सीमाओं से है, जिन्हें व्यक्ति राजनीतिक सुविधा के लिए स्वयं खींचता है अथवा जो दो भु-भागों के बीच समझौते या संधि से अंकित की जाति हैं । बुंदेलखंड के सीमांकन में इस आधार का महत्त्व नहीं है ।
सीमांकन के प्रयत्न
समशीला इकाई की खोज
सीमांकन के प्रयत्न
बुंदेलखंड के सीमांकन के अनेक प्रयत्न मिलते हैं, जिनके विवरण और विश्तेषण से भी एक स्पष्ट स्वरुप बिंबित होना स्वाभाविक है । भू-आकारिक सीमांकन नये नहीं है, किंतु भौतिक आधार वर निर्धारण नवीन होना संभव है । प्रसीद्ध भूगोलवेत्ता एस.एम. अली ने पुराणों के आधार पर विंध्यक्षेत्र के तीन जनपदों-विदिशा, दशार्ण एंव करुष की स्थिति का परिचय दिया है । उन्होंने विदिशा, का ऊपरी बेतवा के बेसिन से, दशार्ण का धसान और उसकी प्रमुख धाराओं की गहरी घाटियों द्वारा चीरा हुआ सागर प्लेटो तक फैले प्रदेश से तथा करुष का सोन-केन नदियों के बीच के समतलीय मैदान से समीकरण किया है । इसी प्रकार त्रिपुरी जनपद जबलपुर के पश्चिम में १० मील के लगभग ऊपरी नर्मदा की घाटी तथा जबलपुर, मंडला और नरसिंहपुर जिलों के कुछ भागों का प्रदेश माना है ।-२ वस्तुत: यह बुंदेलखंड की सीमा-रेखाएँ खींचने का प्रयत्न नहीं है, किंतु इससे यह पता चलता है कि उस समय बुंदेलखंड किन जनपदों में बँटा था । इतिहासकार जयचंद्र विद्यालंकार ने ऐतिहासिक और भौगोलिक दृष्टियों को संतुलित करते हुए बुंदेलखंड को कुछ रेखाओं में समेटने का प्रयत्न कीया है- " (विंध्यमेखला का) तीसरा प्रदेश बुंदेलखंड है जिसमें बेतवा (वेत्रवती), धसान (दशार्णा) और केन (शुक्तिमती) के काँठे, नर्मदा की ऊपरली घाटी और पचमढ़ी से अमरकंटक तक ॠक्ष पर्वत का हिस्सा सम्मिलित है । उसकी पूरबी सीमा टोंस (तमसा) नदी है ।" -३ यह सीमांकन पुराणों द्वारा नीर्देशित जनपदों की सम्मिलित रेखओं के बहुत नीकट है । वर्तमान भौतिक शोधों का आधार पर बुंदेलखंड को एक भौतिक क्षेत्र घोषित किया गया है और उसकी सीमायें इस प्रकार आधारित की गई हैं-" वह क्षेत्र जो उत्तर में यमुना, दक्षिण में विंध्य प्लेटो की श्रेणियों उत्तर-पश्चिम में चम्बल और दक्षिणा-पूर्व में पन्ना-अज़यगढ़ श्रेणियों से घिरा हुआ है, बुंदेलखंड के नाम से जाना जाता है । उसमें उत्तर प्रदेश के चार जिले-जालौन, झांसी, हमीरपुर और बाँदा तथा मध्यप्रदेश के चार जिले-दतिया, टीकमगढ़, छतरपुर और पन्ना के अलावा उत्तर-पश्चिम में किंभड जिले की लहर और ग्वालियर जिले की भांडेर तरसीलें भी सम्मिलित है ।" -४ ये सीमारेखाएँ भू-संरचना की दृष्टि से उचित कही जा सकती है, किंतु इतिहास, संस्कृति और भाषा की दृष्टि से बुंदेलखंड बहुत विस्तृत प्रदेश है ।